Posts

शांत से विकराल होते पहाड़...

Image
शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

महिलाएं बच्चों को प्रकृति के साथ कैसे जोड़ें

Image
महिलाएं बच्चों को प्रकृति के साथ कैसे जोड़ें How to connect children with nature...      ये तो आप सभी मानते ही हैं कि बच्चा सबसे पहले अपने घर परिवार से सीखता है और उस परिवार में भी बच्चों के प्रति एक माँ का दायित्व अन्य की तुलना में अधिक माना जाता है। इसीलिए एक माँ ही अपने बच्चे की प्रथम मित्र और शिक्षिका दोनों होती है।      अब जिस प्रकार से माँ और बच्चे का संबंध बहुत ही महत्वपूर्ण है इसी तरह से हर मनुष्य का एक और महत्वपूर्ण संबंध है जो होता है प्रकृति माँ से। प्रकृति माँ के बिना भी मनुष्य की कल्पना करना असंभव है। ये प्रकृति माँ ही हैं जो हमें बचपन से इस सुंदर दुनिया का आभास कराती है।    अपनी आने वाली पीढी़ को भी एक सुंदर और स्वस्थ वातावरण देने के लिए अपने बच्चों को बचपन से ही प्रकृति माँ से जुड़ने की प्रेरणा हमें समय समय पर देनी चाहिए। इसके लिए बच्चों की आयु वर्ग के अनुसार आप नए नए विकल्प खोज सकती हैं जो बच्चों को प्रकृति माँ से जुड़ने की प्रेरणा दे।   जिसका आरंभ हमें सबसे पहले प्रकृति शब्द के स्थान पर प्रकृ...

स्वदेशी खादी

Image
स्वदेशी खादी     नये नये कपड़े पहनने की चाह हमेशा से ही हर दिल में रहती है तभी तो चाहे कितने भी कपड़े हो लेकिन हमारे लिए हमेशा कम ही होते हैं। खासकर कि महिलाएं, जिनके पास घर में कपड़ों के ढ़ेरों विकल्प होते हैं लेकिन समय पर एक भी विकल्प नहीं भाता!! आज बाजार में रंग, फैब्रिक, डिजाइन सब तरह के विकल्प उपलब्ध हैं इसीलिए तो वस्त्र उद्योग आज चरम पर है।     2800 ईसा पूर्व से ही वस्त्रों के विकास की जो झलक सिंधू घाटी सभ्यता से मिली उसने यह सिद्ध कर दिया कि वस्त्र उद्योग भारत के प्राचीन उद्योगों में से एक है। धीरे धीरे समय बीतता गया और तकनीकी ज्ञान के साथ वस्त्र उद्योग भी आगे बढ़ता गया।    भले ही तकनीक और अपने प्रयोगों से तरह तरह के कपड़े बन रहे हैं लेकिन आज भी हाथ से बने हुए कपड़ों का अपना एक विशिष्ट स्थान है। जैसे कि खादी। खादी एक ऐसा स्वदेशी वस्त्र है जो हाथ से कते हुए सूत से बनाया जाता है और जो हमें भारतीयता से जोड़ता है। जिस समय भारत अपनी आजादी के लिए लड़ रहा था। उस समय खादी एक आंदोलन की तरह उभरा जो पूरे भारत में एकता की मिसाल की तरह फैल गया। म...

गणपति का संदेश....

Image
गणपति का संदेश....        गणपति महोत्सव की धूम केवल दक्षिण भारत में ही नहीं अपितु उत्तर भारत में भी खूब है। भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी से आरंभ होकर ये उत्सव अनंत चतुर्दशी को समाप्त होता है। इन दस दिनों तक चलने वाले उत्सव में भगवान गणेश घर घर लाये भी जाते हैं, पूजे भी जाते हैं और विसर्जित भी किये जाते हैं और अगले वर्ष तक फिर से गणपति जी की प्रतिक्षा की जाती है। सभी भक्तों के उत्साह के बीच इस पूजन और विसर्जन के बाद "गणपति बप्पा मोरया" की गूँज हर भक्त के कानों में बस जाती है और उनकी मनमोहक छवि मन में। सच में, हमने भगवान को कभी सामने देखा नहीं है। लेकिन उनकी छवि अपने मन और मंदिरों में बना रखी है और उन्हें उसी रूप में पूजकर मन को संतुष्टि भी होती हैं।     सनातन धर्म में हम भगवान को सगुण और निर्गुण दोनों ही तरह से पूजते हैं लेकिन सगुण रूप हमें अधिक प्रिय होता है क्योंकि उनकी छवि हमें उनके अधिक निकट ले जाती है। हर किसी की छवि में कुछ न कुछ विशेष होता है जो उस देव की पहचान होती है और जिन्हें हम उसी रूप में पूजना प्रिय है जैसे सिर पे मोरप...

हाउसकीपिंग: शौच नहीं सोच की सफाई

Image
हाउसकीपिंग: शौच नहीं सोच की सफाई    भारत में आज भी बहुत से लोगों की मानसिकता है कि होटल में हाउस कीपिंग का अर्थ है ........का काम। शायद ये शब्द सुनकर किसी वर्ग विशेष की भावनाओं को ठेस भी पहुंचे क्योंकि अब सुप्रीम कोर्ट में भी इस पद का नाम सुपरवाइजर कर दिया है। लेकिन हम हैं कि अभी भी अपने दिमाग से हाउसकीपिंग के प्रति नकारात्मक विचारों का सफाया नहीं कर पा रहे हैं। कहाँ हम लोग चाँद पर रहने की बात सोच रहे हैं और कहाँ अभी भी किसी पिछड़े जमाने की सोच को लादे हुए हैं! !       तभी तो आज भी अधिकतर लोग होस्पिटालिटी क्षेत्र में काम करने वाले हाउस कीपर्स को केवल एक सफ़ाईकर्मी से अधिक नहीं सोच पाते हैं, उनकी सामान्य सोच हाउसकीपर को केवल झाड़ू पोछे लगाने वाले लोग समझते हैं। जबकि हाउसकीपिंग होटल का एक बहुत ही महतवपूर्ण विभाग है और उसका काम करने वाले लोग (हाउसकीपर) होटल का महत्वपूर्ण अंग। जिसके बिना किसी भी होटल की कल्पना असंभव है।     लोगों के लिए भले ही यह केवल साफ सफाई से अधिक कुछ न हो लेकिन यकीन मानिये हाउसकीपर की सोच साफ सफाई से कहीं अधिक अप...

नेता जी का overtime

Image
    नेता जी का overtime      गिरती हुई बल्लियों से लगा कि आखिरकार आज तो राहत मिल जायेगी क्योंकि बल्लियों पर टंगे हुए भैय्या जब रस्सियों को खोल रहे थे तो पता चल गया कि आज राज्य के विकास की चर्चा परिचर्चा समाप्त हो चुकी है और नेता जी अब अगले विधान सभा सत्र में क्या क्या विकास के विषय होंगे, उन पर ध्यान लगाएंगे।      विकास का तो पता नहीं लेकिन चलो इस विधानसभा सत्र के दौरान सब नेता लोगों की राजी खुशी का पता तो चल ही जाता है। नहीं तो आम जनता को भला इस सत्र के दौरान और मिलता क्या है??    अरे हाँ, ट्रैफिक जाम भी तो इसी सत्र में मिलता है। खैर! हम तो इसी में संतुष्ट हो जाते हैं कि चलो नेता जी को हमारी चिंता है इसी लिए सत्र में आते हैं लेकिन नेता जी थोड़ी सी चिंता और कर लें तो इस सत्र के दौरान होने वाले ट्रैफिक से भी हमें उबार लें। हाँ ये चिंता थोड़ी सी कष्टकारी हो सकती है लेकिन जब नेता जी जनता की सेवा के लिए ही हैं तो क्या थोड़ा सा कष्ट उठाया जा सकता है??    गुस्ताखी माफ, लेकिन अगर ये सत्र रात में चले तो!! मतलब ...

जीवन: चिंता नहीं चुनौती

Image
जीवन: चिंता नहीं चुनौती       हमें लगता है कि दूसरों की जिंदगी बड़ी अच्छी है, वो कितनी आसानी से और कितने सुख से अपना जीवन जी रहे हैं। हमें दिखता है कि वे सभी अपने जीवन में बहुत खुशी से हैं। वे सभी हँसते हैं, मुस्कुराते हैं, घूमने जाते हैं और तरह तरह का खाना खाते हैं लेकिन सच मानें बाहर से दिखने वाली ये सरल सी जिंदगी कठिनाई भरी भी होती है। उन लोगों की ये जिंदगी बाहर से भले ही सुलझी दिखाई दे लेकिन अंदर से उलझनों का एक कोना हमेशा लोगों के अंदर सुरक्षित रहता है। बस ये उनका जीवन जीने का अपना ढंग है और अपनी परेशानी या लड़ाई लड़ने का अपना तरीका। ये उनका अपना हुनर है कि वो इस जीवन को चिंता या तनाव के साथ गंभीरता से लें या फिर सहज तरीके से चिंता छोड़कर इन चुनौतियों को पार करें।     जिंदगी किस की आसान है, शायद किसी की भी नहीं। ऐसा कौन है जो बिना किसी चिंता, तनाव, डर, असुरक्षा के हो! समाज का हर तबका चाहे छोटा हो या बड़ा किसी न किसी तरीके से या किसी भी रूप में अपनी उलझनों में फँसा हुआ है। कोई अधिक तो कोई कम लेकिन छोटी बड़ी परेशानियाँ तो है ही। क...

भगवान का सोना

Image
Short Story: भगवान का सोना      एक गांव में एक बहुत बड़े संत महात्मा पधारे। वे लोगों का दुख दूर करके उनका कल्याण करते थे। दूर दराज से लोग संत से मिलने आये और अपनी समस्या का निवारण पूछने लगे। उसी गाँव के सूरज और ललित भी संत से मिलने पहुंचे। उन्होंने संत से अपनी गरीबी के निवारण हेतु उपाय पूछा। संत ने उनकी समस्या जानकर उन्हें अगले दिन आने के लिए कहा।    अगले दिन संत ने सूरज को सात अलग अलग पोटलियाँ दी और कहा कि ये भगवान् का प्रसाद है। इसे तुम रात को पानी में भीगा देना और अगली सुबह भगवान् का नाम लेकर इन पोटलियों को खोलना। 3 महीने में ये सोना बन जायेगी और तुम्हारी दरिद्रता चली जायेगी। लेकिन हाँ, जब मैं अगली बार यहाँ आऊँ तो तुम दान स्वरूप इस भेंट का कुछ हिस्सा मुझे भी देना। अब तुम ईश्वर का नाम जपते रहना और अपने काम करते रहना। तुम्हारा कल्याण हो।   ठीक ऐसा ही उपाय संत ने ललित को भी बताया।  6 महीने बाद वह संत एक बार फिर से उस गांव में आये। सूरज और ललित भी एक बार फिर से उन संत महाराज जी के पास गए। सूरज ने सात अलग अलग प्रकार के अनाज औ...

तीज: प्रकृति का तप, पुरुष का संकल्प!!

Image
पुरुषों के संकल्प के बिना अधूरा है तीज व्रत!!         कहने को तीज भले ही महिलाओं का पर्व माना जाता हो किंतु तीज पुरुष के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि महिलाओं के लिए। यह कठिन व्रत भले ही महिलाओं द्वारा लिया जाता हो किंतु इस व्रत का आधार पुरुष ही है। दोनों के तप और संकल्प के साथ ही तीज व्रत संपूर्ण होता है।     तीज का व्रत सुहाग और घर परिवार की कुशलता के लिए महिलाओं द्वारा लिया जाने वाला व्रत है। इस दिन बिना अन्न जल ग्रहण किये भगवान शिव और माता पार्वती की परिवार सहित आराधना की जाती है।     यह महिलाओं का तप ही तो है जो इस कठिन व्रत को सफल बनाता है लेकिन इसके लिए उस पुरुष का संकल्प भी आवश्यक है। पुरुष के संकल्प के बिना स्त्री का यह कठोर व्रत फलदायी नहीं है। जहाँ स्त्री अपने अखंड सौभाग्य के लिए तप रूपी व्रत करती हैं वहीं पुरुष का अपनी स्त्री के प्रति पूर्ण भाव से संकल्पित होना भी उसी व्रत को पूर्ण करता है।     ये संकल्प होता है अपनी स्त्री के प्रति भगवान् शिव की भाँति निष्ठा का, उसके मान का, उस...

घी संक्रांति में अरबी पत्तों के पतोड़ ( Taro/Colacosia leaves Snack)

Image
घी संक्रांति में अरबी पत्तों के पतोड़     कहते हैं कि सबसे सुंदर होता है बाल मन, न कोई चिंता और न चालाकी। न किसी से द्वेष न रोष। न किसी के प्रति दुर्भावना और न ही किसी तरह की हिचक। बस स्वछंद प्रकृति और मासूम दिल। ये अहम, द्वेष, बड़प्पन जैसे रोग तो बड़ों ने अपने दिल और दिमाग में पाले होते हैं।     चूंकि उत्तराखंड में अभी कोरोना ढीला पड़ा है तो इसी हफ्ते से बेटी जिया को भी बाहर खेलने की ढील दी गई है। क्या करें आखिर कब तक घर और गाड़ी के अंदर तक ही सैर करते सो चार महीनों बाद थोड़ी आजादी दे दी गई और इसी तरह जब खेल खेल में उसने अपनी सहेली के घर अरबी के बड़े बड़े पत्ते देखे तो तुरंत अपनी आंटी से उन पत्तों को मांग लिया और जब मैंने रसोई में उन हरे हरे चौड़े अरबी के पत्तों को देखा तो बहुत खुशी हुई लेकिन जब पता चला कि जिया किसी से मांग कर लाई है तो थोड़ी अहम को ठेस लगी। उसको समझा ही रही थी कि ऐसे कोई भी चीज मत लेकर आया करो लेकिन साथ ही सोच रही थी कि ये तो छोटे बच्चे हैं इन्हें अभी से बड़ों के गुण अवगुण का पाठ क्यों पढ़ा रही हूं? ये अपने आप समय के साथ समझ जाएंगे और वैसे भी ...

अहिंसा परमो धर्म:

Image
स्वतंत्रता दिवस:   अहिंसा परमो धर्मः     15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस मतलब कि देश का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पर्व। जो हमेशा हमें राष्ट्र प्रेम की खुशी का अनुभव कराता है। चाहे ये खुशी आसमान में उड़ती पतंगों में, हवा में लहराते गुब्बारों में, घर, गाड़ी या ऑफिस की मेज़ में या टीवी पर आने वाले किसी कार्यक्रम में दिखाई दे और साथ ही तिरंगे से सजी मिठाई में मिले। सभी में देश प्रेम का अंश अवश्य देखने को मिलेगा। जब इतना सब कुछ एक देश के लिए तो फिर एक देश के निवासियों में इतने मतभेद और नफरत क्यों?? यह कहा जा सकता है कि सबसे बड़ी जनसंख्या के साथ भिन्न भिन्न धर्म जाति, संप्रदाय, संस्कृति सभ्यता, आचार विचार के साथ रहते हुए तर्क तो होते ही हैं किंतु कुतर्क के साथ हिंसा क्यों?? अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को कष्ट देना उचित है क्या?? क्या नफरत और हिंसा के साथ देश का विकास संभव है??   जहाँ हमें, अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परं तपः । अहिंसा परमं सत्यं यतो धर्मः प्रवर्तते ॥ ( अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा परम तपस्या (तप) है, और अहिंसा परम सत्य है और जिसके द्व...

मित्रभेद: मित्रलाभ:

Image
मित्रभेद: मित्रलाभ: Friendship Day.... Short Story     पूरे मोहल्ले की बिजली अचानक चले जाने पर घर में अंधेरा छा गया। लेकिन मोहल्ले के बच्चों का एक साथ एक सुर में शोर भी सुनाई दिया और चंद मिनटों में सारे बच्चे अपने घरों से बाहर आकर नुक्कड़ पर इकट्ठे हो लिए। बारी थी बिजली के चले जाने पर उनके प्रिय छुपन छुपाई खेल की लेकिन महेश घर की छत की ओर भागा।    अरे महेश! आज तुम गली के बजाए छत पर कैसे आ गए। आज खेलने नहीं जाना?  नहीं चाचा, ये सब बच्चे बहुत बुरे हैं। लेकिन कल तक तो तुम सब साथ थे फिर क्या हो गया?  चाचा आपको पता है, पहले तो सब दोस्त मेरे साथ ही थे लेकिन जब से वो आकाश आया है न तब से सब उसी के आगे पीछे रहते हैं। आकाश के साथ ही खेलते हैं और उसी की सुनते हैं। कौन आकाश?? क्या वही जो सामने वाले घर में रहता है। वही आकाश न? हाँ, वही आकाश, जो गर्मियों की छुट्टियों से अपने मामा के यहाँ ठहरा हुआ और अभी तक जाने का नाम भी नहीं ले रहा। लेकिन पहले तो तू भी रोज उसके साथ घूमता था, खेलता था । आज क्या हो गया?? कुछ नहीं चाचा लेकिन कल रेस में मैं जीत...

संरक्षण: प्रकृति और मानव का (World Nature Conservation Day)

Image
28 July: world nature conservation day विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस चलो एक ऐसा दिन तो है जहाँ हम प्रकृति के संरक्षण के बारे में भी सोचते हैं। नहीं तो हमें प्रकृति के उपयोग के स्थान पर केवल दोहन करने से ही फुर्सत नहीं मिल पा रही थी।    कितने स्वार्थी हो गए हैं न हम!! केवल अपना अपना सोचते सोचते कितने जंगल काट दिये, कितने पशु पक्षी का अस्तित्व खतरे में डाल दिया, कितनी नदियों को खनन से खोखला कर दिया और धरती के गर्भ में प्लास्टिक नाम का कचरा भर दिया। यही नहीं यहाँ तक कि अनियंत्रित चहलकदमी से ग्लेशियर पिघला दिये और तरह तरह के प्रदूषण से अपनी सुरक्षा छतरी यानी कि ओजोन परत को भी छलनी कर दिया। तभी तो मौसम में कभी अति गर्मी तो कभी गर्मियों में सर्दी, सर्दियों में गरम, बरसात में सूखा और कभी तीनों मौसम एक साथ। इससे समझ जाएं कि पृथ्वी का मिजाज़ बदल रहा है।     अब इतना सब कुछ करने के बाद भी अगर हम अभी भी प्रकृति के संरक्षण के बारे में नहीं सोचेंगे तो तय मानिये कि आने वाला समय प्रकृति के लिए नहीं मानव जाति के लिए कठिन होगा जिसके गम्भीर परिणाम आगे दिखाई दे...