शिव पार्वती: एक आदर्श दंपति

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शिव पार्वती: एक आदर्श दंपति  हिंदू धर्म में कृष्ण और राधा का प्रेम सर्वोपरि माना जाता है किंतु शिव पार्वती का स्थान दाम्पत्य में सर्वश्रेठ है। उनका स्थान सभी देवी देवताओं से ऊपर माना गया है। वैसे तो सभी देवी देवता एक समान है किंतु फिर भी पिता का स्थान तो सबसे ऊँचा होता है और भगवान शिव तो परमपिता हैं और माता पार्वती जगत जननी।    यह तो सभी मानते ही हैं कि हम सभी भगवान की संतान है इसलिए हमारे लिए देवी देवताओं का स्थान हमेशा ही पूजनीय और उच्च होता है किंतु अगर व्यवहारिक रूप से देखा जाए तो एक पुत्र के लिए माता और पिता का स्थान उच्च तभी बनता है जब वह अपने माता पिता को एक आदर्श मानता हो। उनके माता पिता के कर्तव्यों से अलग उन दोनों को एक आदर्श पति पत्नी के रूप में भी देखता हो और उनके गुणों का अनुसरण भी करता हो।     भगवान शिव और माता पार्वती हमारे ईष्ट माता पिता इसीलिए हैं क्योंकि हिंदू धर्म में शिव और पार्वती पति पत्नी के रूप में एक आदर्श दंपति हैं। हमारे पौराणिक कथाएं हो या कोई ग्रंथ शिव पार्वती प्रसंग में भगवान में भी एक सामान्य स्त्री पुरुष जैसा व्यवहार भी दिखाई देगा। जैसे शिव

घी संक्रांति में अरबी पत्तों के पतोड़ ( Taro/Colacosia leaves Snack)

घी संक्रांति में अरबी पत्तों के पतोड़ 

   कहते हैं कि सबसे सुंदर होता है बाल मन, न कोई चिंता और न चालाकी। न किसी से द्वेष न रोष। न किसी के प्रति दुर्भावना और न ही किसी तरह की हिचक। बस स्वछंद प्रकृति और मासूम दिल। ये अहम, द्वेष, बड़प्पन जैसे रोग तो बड़ों ने अपने दिल और दिमाग में पाले होते हैं।

    चूंकि उत्तराखंड में अभी कोरोना ढीला पड़ा है तो इसी हफ्ते से बेटी जिया को भी बाहर खेलने की ढील दी गई है। क्या करें आखिर कब तक घर और गाड़ी के अंदर तक ही सैर करते सो चार महीनों बाद थोड़ी आजादी दे दी गई और इसी तरह जब खेल खेल में उसने अपनी सहेली के घर अरबी के बड़े बड़े पत्ते देखे तो तुरंत अपनी आंटी से उन पत्तों को मांग लिया और जब मैंने रसोई में उन हरे हरे चौड़े अरबी के पत्तों को देखा तो बहुत खुशी हुई लेकिन जब पता चला कि जिया किसी से मांग कर लाई है तो थोड़ी अहम को ठेस लगी। उसको समझा ही रही थी कि ऐसे कोई भी चीज मत लेकर आया करो लेकिन साथ ही सोच रही थी कि ये तो छोटे बच्चे हैं इन्हें अभी से बड़ों के गुण अवगुण का पाठ क्यों पढ़ा रही हूं? ये अपने आप समय के साथ समझ जाएंगे और वैसे भी पड़ोसी से कोई पैसा उधार लेकर नहीं आई है अपनेपन में सिर्फ इन पत्तों की ही तो मांग की है।
    वैसे बता दूं कि जिया को इन पत्तों से कोई लेना देना नहीं है और न ही उसे ये पसंद हैं। वो तो सिर्फ इन पत्तों के प्रति हमारे मोह को भली भांति जानती है तभी तो बेचारी किसी और की बगिया से इन्हें मांगकर ले आई। चलो कोई नहीं, मोहल्ले की ही तो बात है शायद इससे थोड़ी हमारी झिझक खुल जाए और हमारा अहम भी टूट जाए। 
   हां, तो बात हो रही थी इन बड़े बड़े अरबी के पत्तों की कि आखिर इन पत्तों को देखकर खुशी क्यों हो रही थी। तो पहली बात तो ये कि अरबी के पत्तों से प्रचलित और स्वादिष्ट पकवान पतोड़े की याद आना और दूसरा उन पत्तों का उत्तराखंड के लोकपर्व घी संक्रांति के ठीक एक दिन पहले मिलना। 

    उत्तराखंड के इस लोकपर्व में पहाड़ी व्यंजन तो बनते ही हैं इसके साथ साथ इस पर्व में घी का बड़ा महत्व है। घी त्यार के दिन घर के बड़े लोग अपने से छोटों के सिर पर आशीर्वाद के रूप में घी रखते हैं और नवजात शिशुओं के पैर तलों में घी मलते हैं साथ ही आशीर्वचन गाते हैं ,,, जी रया,,,जागी रया (जीते रहो, सजग रहो)।। उत्तराखंड के इस पर्व में खीर पकोड़े तो बनते ही हैं लेकिन साथ ही खाने के साथ घी परोसना भी जरूरी होता है। उत्तराखंड में ऐसी लोक मान्यता है कि अगर इस दिन घी का सेवन न किया जाए तो अगले जन्म में घोंघा (snail) बनना पड़ता है। 

    (बड़ा अजीब सा तर्क है न!! वैसे तो हर बात का कुछ न कुछ तर्क तो होता ही है बस उसको घूमा फिरा कर किया जाता है। मुझे तो लगता है कि बरसात में दूध दही के सेवन से लोग बचते हैं क्योंकि संक्रमण का खतरा रहता है शायद इसीलिए घी खाने पर जोर दिया जाता होगा ताकि शरीर बलिष्ठ रहे और इन सब चीजों को घोंघे से जोड़ दिया होगा क्योंकि बरसात में सबसे अधिक दिखने वाला और कमजोर सा प्राणी घोंघा ही होता है। साथ ही बालों में घी इसलिए लगाया जाता होगा कि बरसात में बालों के गिरने की समस्या बड़ी आम होती है और कहते हैं कि गुनगुने देसी घी से बालों की मालिश से बालों को पोषण मिलता है और साथ ही मानते हैं कि पैर के तलों में लगाने से गैस और अपच दूर होती है।) 

   खैर, पहाड़ के इस घी त्यार की मान्यता है तो इसे एक धरोहर के रूप में आगे ले जाना कोई बुरी बात नहीं है तर्क चाहे जो भी हो। वैसे भी उत्तराखंड के ऐसे ही लोक पर्व और कौथिग (मेला) हाशिए पर हैं। एक और खास बात है कि इस दिन लोग अपने खेत खलियान की मौसमी सब्जी और फल अपने पितरों को भी चढ़ाते हैं और साथ ही अपने प्रियजनों को भेंट में भी देते हैं तो इसीलिए इन अरबी के पत्तों को भेंट स्वरूप देने के लिए श्रीमति भावना पंत जी का धन्यवाद।
   
  घी संक्रांत था तो कुछ उत्तराखंडी व्यंजन बनने थे ही तो इस बार ताजे अरबी के पत्तों के पतोड़ बनना तय था। पतोड़ उत्तराखंड का पारंपरिक पकवानों में से एक है जो केवल मौसम के अनुरूप ही खाया जाएगा। वैसे ऐसा ही पकवान अन्य राज्यों में भी बनते हैं। यह पत्ते सावन से मिलना शुरू हो जाते हैं। इसलिए यह उत्तराखंडियों के लिए सावन का कुरकुरा और नर्म दोनों तरह का स्नैक है।  

   वैसे पतोड़ बनाने में समय तो लगता है इसीलिए मैंने किश्तों में बनाया क्योंकि भले ही यह उत्तराखंड का लोकपर्व है लेकिन कोई राजकीय अवकाश नहीं था तो ऑफिस जाना भी जरूरी था इसलिए सुबह ही इन पत्तों को धोकर साफ किया। उसके बाद हरी मिर्च, अदरक, लहसुन, हींग, भुना जीरा, नमक सब सिल में साथ पीसकर बेसन के गाढ़े घोल में नींबू के रस के साथ मिला लिया और फिर पत्तों को बारी बारी से बेसन लगाते हुए एक के ऊपर एक रखते हुए कस कर लपेटा और फिर रोल बना दिया। उसके बाद एक भगोने में पानी गर्म करके कुछ मिनट तक भाप में पका दिए। बस उस हींग और लहसुन की खुशबू लिए मैं भी ऑफिस चली आई। पतोड़ पकाने और खाने का इतना चाव था कि बेचारी खीर कब हांडी में चढ़ेगी इसका पता ही नहीं था!!
    शाम को ऑफिस से घर पहुंचते ही तवा गैस पर रखा और थोड़ा तेल डालकर गर्म किया फिर उत्तराखण्डियों की रसोई का तड़का किंग जखिया डाला और फिर नशे से दूर रहने वाले भांग के दाने भी। उसके बाद पतोड़ के रोल को गोल टुकड़ों में काटकर तवे में सेंके फिर दोनों तरफ से कुरकुरे होने पर गरमा गर्म चाय के साथ परोस भी दिए।

इसी के साथ घी संक्रांति में मसालेदार कुरकुरे पतोड़ और खीर परोसकर हमारा घी संक्रांति पूरा हो गया।  

    उत्तराखण्डियों के लिए पतोड़ बनाना तो बड़ा सामान्य है लेकिन फिर भी मेरे अन्य मित्र और शुभचिंतकों के लिए झटपट विधि साझा कर रही हूं। आशा करती हूं कि आप भी उत्तराखंड के खास अरबी के पत्तों के पतोड़ का आनंद लेंगें।इस रक्षाबंधन और आने वाली जन्माष्टमी में भी इस पकवान को एक बार तो अवश्य बनाएंगे।

अरबी के पत्तों के पतोड़ बनाने की विधि:

. 8 से 10 अरबी के पत्ते को धोकर साफ करें और पत्तों को पलटकर उनके बीच की मोटी डंडी पर बेलन की सहायता से चपटा करें।
. एक बड़ा कटोरी बेसन का गाढ़ा घोल बनाएं।
. एक चम्मच अदरक लहसुन का पेस्ट, चुटकी भर हींग, छोटा चम्मच भुना जीरा, दो बड़े चम्मच नींबू रस, एक छोटा चम्मच मिर्च, स्वादानुसार नमक इस घोल में मिला दें।
. भाप के लिए बर्तन तैयार करें और गैस पर रख दें
. सबसे बड़े पत्ते पर बेसन फैलाएं, उसके ऊपर दूसरा पत्ता लगाएं और फिर बेसन लगाएं। ऐसे ही सभी पत्तों को एक के ऊपर एक लगाएं। 
. इन पत्तों को कसकर लपेटते हुए गोल (रोल) घुमाएं।
. 20 मिनट तक तेज आंच में भाप में पकाएं।
. ठंडा करके गोल टुकड़ों में काटें।
. तवे या कढ़ाई में दो बड़े चम्मच तेल डालकर जखिया और भांग का छौंक लगाकर इन टुकड़ों को कुरकुरे होने तक हल्का तलें या भूने। 
. गर्म परोसे और आनंद ले अरबी पत्तों के पतोड़ (पत्युड) का।



एक - Naari
    
    
   
   

Comments

  1. Majedaar Kurkure patod ka to jawaab nahin Uttarakhand ki sanskriti ye tyohar hi hain.

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  2. You are a great story teller... Beautifully written

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  3. कुरकुरे मजेदार पौष्टिकता से भरपूर पतौड़ ।रेसिपी देने के लिए धन्यवाद

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  4. Uttarakhand ke festival or pakwan ke baare mein bahut achchi jaankari de hai. ... Waah.. Maja a gaya

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  5. Waah..maza aa gaya.very nice keep it up.

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