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Showing posts from August, 2021

थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग-2

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थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग- 2   पिछले लेख में हम हरिद्वार स्थित चंडी देवी के दर्शन करके आगे बढ़ रहे थे यानी कि उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल से अब कुमाऊँ मंडल की सीमाओं में प्रवेश कर रहे थे बता दें कि उत्तराखंड के इस एक मंडल को दूसरे से जोड़ने के लिए बीच में उत्तर प्रदेश की सीमाओं को भी छूना पड़ता है इसलिए आपको अपने आप बोली भाषा या भूगोल या वातावरण की विविधताओं का ज्ञान होता रहेगा।     कुमाऊँ में अल्मोडा, नैनीताल, रानीखेत, मुक्तेश्वर, काशीपुर, रुद्रपुर, पिथौरागढ, पंत नगर, हल्दवानी जैसे बहुत से प्रसिद्ध स्थान हैं लेकिन इस बार हम केवल नैनीताल नगर और नैनीताल जिले में स्थित बाबा नीम करौली के दर्शन करेंगे और साथ ही जिम कार्बेट की सफ़ारी का अनुभव लेंगे।   225 किलोमीटर का सफर हमें लगभग पांच से साढ़े पांच घंटों में पूरा करना था जिसमें दो बच्चों के साथ दो ब्रेक लेने ही थे। अब जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे बच्चे भी अपनी आपसी खींचतान में थोड़ा ढ़ीले पड़ रहे थे। इसलिए बच्चों की खींचतान से राहत मिलते ही कभी कभी मैं पुरानी यादों के सफर में भी घूम रही थी।     कुमाऊँ की मेरी ये तीसर

कृष्ण जन्माष्टमी: भगवान कृष्ण के साथ माता यशोदा का पूजन

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कृष्ण जन्माष्टमी:  भगवान कृष्ण के साथ माता यशोदा का पूजन (Krishna Birthday)       Pic courte: freepik      कृष्ण जन्माष्टमी है तो कृष्ण का ही सुमिरन होगा। भादौ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान कृष्ण का जन्मदिवस एक पर्व होता है जिसे घर घर में उत्सव के रूप में मनाया जाता है। चाहे मंदिर हो, घर हो, पास पड़ोस का आंगन हो या किसी गली मोहल्ले का मैदान कृष्ण की लीलाओं की झांकी तो दिख ही जाती है। जितनी लीलाएं उतने नाम। चारों ओर बस कृष्ण-कृष्ण और बस राधे-राधे।     कृष्ण की तो इतनी विशेषताएं हैं कि उनको गिना नहीं जा सकता और न ही उनके जैसा बना जा सकता है क्योंकि वे तो मानव अवतार में स्वयं भगवान विष्णु जी हैं और भगवान बनना हम मानवों के बस की बात नहीं तो बस आंख मूंद कर उनका स्मरण करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि जिसप्रकार से भगवान कृष्ण ने लोगों की संकट में सहायता की वैसे ही वे हम सभी के कष्ट हरेंगे।    लेकिन कृष्ण जन्माष्टमी में हम किसी भी दुख या कष्ट के लिए सुमिरन नहीं करते। जन्माष्टमी तो उत्सव होता है भगवान कृष्ण के जन्म का तो इस समय जो भावनाएं होती है उनमें कृष्ण नहीं कान्हा होते

स्वतंत्रता दिवस...उड़ना अभी बाकी है।।

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स्वतंत्रता दिवस...उड़ना अभी बाकी है।।     74 साल तो हो चुके हैं भारत को आजाद हुए लेकिन आज भी स्वतंत्रता दिवस मनाने की खुशी भारत के हर नागरिक को पहले जैसी ही है। आज भी जब इस दिन लालकिले पर लहराते हुए तिरंगे को देखते हैं तो लोग उतने ही गर्वित होते हैं जितना आजादी के समय हुआ करते थे और जब बैंड के साथ राष्ट्रीय गान की धुन कानों में पड़ती है तो दिल में देश के प्रति समर्पण का भाव स्वतः ही उमड़ पड़ता है और इसी के साथ ही याद दिलाता है भारत के अनेक वीरों को जिनके अथक प्रयासों से हमें कभी मुगल तो कभी अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली।      भारतीयों का स्वतंत्रता दिवस में इसप्रकार से खुश होना, गर्वित होना, उमंग से भर जाना बड़ा ही सामान्य है क्योंकि प्रत्येक नागरिक चाहे वह किसी भी देश का हो अपने देश के प्रति प्यार और समर्पण का भाव हमेशा दिल में संजोए रखता है और अपने देश भक्ति का ये उत्साह तो तब और भी दुगना हो जाता है जब वह परदेस में हो।     ऐसा ही जज्बा और जोश हमने अभी हाल ही में आयोजित ओलंपिक खेलों में भी दिखाई दिया। जब भारत के खिलाड़ी टोक्यो 2020 प्रतिभाग के लिए गए। उन्हें देख कर ऐसा

तीज... हर सुहागन के लिए खास दिन

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तीज... हर सुहागन के लिए खास दिन     महिलाओं को सजने संवरने का बस एक मौका चाहिए होता है और बस वे झट से इन मौकों को ढूंढ भी लेती हैं। तभी तो चाहे किसी का ब्याह हो या जन्मोत्सव या फिर कोई भी त्योहार बिना श्रृंगार के महिलाओं के लिए ये सभी उत्सव फीके हैं। भारत में तो कितने व्रत भी ऐसे हैं जो महिलाओं को उनके सुहाग और श्रृंगार के बने रहने के लिए हैं।     ऐसा ही एक त्योहार सावन में आने वाले हरितालिका तीज का भी है जो पति की दीर्घायु, सुखी दांपत्य और घर की सुख शांति के लिए होता है। इस वर्ष का तीज व्रत 10 अगस्त की शाम से आरंभ हो रहा है।     हरियाली से प्रेरित इस व्रत का उद्देश्य भी प्रकृति की भांति सुहाग के हमेशा हरे भरे और फले फूले की कामना के लिए होता है। जहां सुहागिने अपने अखंड सौभाग्य के लिए तो कुंवारी लड़कियां अपने भावी पति की कामना के लिए करती हैं। तीज व्रत की पौराणिक मान्यता   माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कई वर्षों तक कठोर तपस्या की थी और भगवान शिव ने श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को माता पार्वती को अपनी पत्नी रूप में स्वीकार किया थ