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Showing posts from May, 2021

थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग-2

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थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग- 2   पिछले लेख में हम हरिद्वार स्थित चंडी देवी के दर्शन करके आगे बढ़ रहे थे यानी कि उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल से अब कुमाऊँ मंडल की सीमाओं में प्रवेश कर रहे थे बता दें कि उत्तराखंड के इस एक मंडल को दूसरे से जोड़ने के लिए बीच में उत्तर प्रदेश की सीमाओं को भी छूना पड़ता है इसलिए आपको अपने आप बोली भाषा या भूगोल या वातावरण की विविधताओं का ज्ञान होता रहेगा।     कुमाऊँ में अल्मोडा, नैनीताल, रानीखेत, मुक्तेश्वर, काशीपुर, रुद्रपुर, पिथौरागढ, पंत नगर, हल्दवानी जैसे बहुत से प्रसिद्ध स्थान हैं लेकिन इस बार हम केवल नैनीताल नगर और नैनीताल जिले में स्थित बाबा नीम करौली के दर्शन करेंगे और साथ ही जिम कार्बेट की सफ़ारी का अनुभव लेंगे।   225 किलोमीटर का सफर हमें लगभग पांच से साढ़े पांच घंटों में पूरा करना था जिसमें दो बच्चों के साथ दो ब्रेक लेने ही थे। अब जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे बच्चे भी अपनी आपसी खींचतान में थोड़ा ढ़ीले पड़ रहे थे। इसलिए बच्चों की खींचतान से राहत मिलते ही कभी कभी मैं पुरानी यादों के सफर में भी घूम रही थी।     कुमाऊँ की मेरी ये तीसर

केदारनाथ,,,जहां के कण कण में शिव है।

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जय बाबा केदारनाथ ,,The power of Kedarnath     मेरा पिछला लेख भगवान बद्रीनाथ जी को समर्पित था तो इस बार बाबा केदार का सुमिरन किए बिना नहीं रहा जा सकता क्योंकि कहते हैं कि बिना केदारनाथ की यात्रा किए बद्रीनाथ जी के दर्शन अधूरे हैं। यह क्षेत्र भी तो बद्रीनाथ क्षेत्र की भांति केदारखंड ही कहलाता है और केदारखंड में भी लिखा गया है,,, 'अकृत्वा दर्शनम् वैश्वय केदारस्याघनाशिन:, यो गच्छेद् बदरी तस्य यात्रा निष्फलताम् व्रजेत्' ( केदारनाथ जी के दर्शन किए बिना अगर कोई बद्रीनाथ जी की यात्रा करता है तो उसकी  यात्रा निष्फल /व्यर्थ होती है।)      भले ही मैं अभी किसी प्रकार की यात्रा नहीं कर रही हूं लेकिन उनके नाम और धाम के सुमिरन करके भी मन को थोड़ा संतोष तो मिल ही रहा है कि अगर मैं धाम की यात्रा नहीं कर सकती तो क्या हुआ! कम से कम बाबा बद्री-केदार की आध्यात्मिक यात्रा पर तो निकल ही सकती हूं और मुझे लगता है कि इस प्रकार से आप भी बहुत यात्राएं कर सकते हैं जैसे मैंने की।।। Books are the plane, and the train, and the road. They are the destination, and the journey. They are home.....

बद्रीनाथ/बद्रिकाश्रम/बद्रिनाथपुरी/बद्रीविशाल,,, भगवान नारायण की तपोभूमि

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जय बद्री विशाल।।   बद्रीनाथ : भगवान नारायण की तपोभूमि (जानकारी, महत्व, पौराणिक कथा)    कोरोना का कहर जैसे जैसे बढ़ रहा है वैसे वैसे हमारी भी ईश्वर के प्रति आस्था भी बढ़ रही है। अब तो काले कोरोना का एक अलग से सिर दर्द बना हुआ है इसीलिए अब जितना कोरोना बाहर फैला हुआ है उतना ही डर मन के अंदर भी है। अब तो सभी अपने अपने ईश्वर को याद कर रहे हैं जिससे कि मानसिक शांति और शक्ति दोनों मिले।     अप्रैल, मई से ही देश में हाहाकार बढ़ गया और मई से ही सुख, शांति और मोक्ष के धाम कहे जाने वाले बद्रीनाथ जी के कपाट भी 18 मई को खुल गए। इसी के साथ विश्वास भी बढ़ गया कि भगवान अब सबकी प्रार्थनाएं सुनेंगे और अब सब ठीक हो जाएगा।      वैसे तो सभी को पता है कि हिंदू संस्कृति में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा चार मठ स्थापित किए गए जिनमें कि दक्षिण के तमिलनाडु राज्य में  रामेश्वरम, गुजरात में द्वारिका, उड़ीसा में जगन्नाथ पुरी और उत्तराखंड में बद्रीनाथ है। इन्हीं चार मठों को हम चार धाम के नाम से जानते हैं। लेकिन उत्तराखंड में बद्रीनाथ धाम समेत और भी तीन धाम गंगोत्री, यमनोत्री और केदारनाथ भी हैं जिन्हें हम

काफल (Kafal)(Bayberry)' काफल पाको, मिन नी चाखो'

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  काफल (बेबेरी) Bayberry, Myrica Esculenta  ' काफल पाको, मिल नी चाखो'     अभी दो चार दिन पहले ही व्हाट्सएप पर एक स्टेटस देखा जिसमें लिखा था,, ' काफल पाको,  मिल नी  चाखो' (काफल पक गया लेकिन मैंने नहीं चखा) और इसी के साथ मुझे भी घर बैठे बैठे पहाड़ के फल, काफल की याद आ गई।     छोटे-छोटे बेर जैसे लाल -लाल और खट्टे-मीठे स्वाद लिए रसदार होते हैं काफल और ऊपर से उसमें थोड़ा सा तेल और हल्का नमक लगा कर खाने में तो और भी मजेदार हो जाता है। सच में! हमारा पहाड़ तरह तरह के कुदरती फल और औषधियों से बिलकुल भरा पूरा है।     कहने को तो काफल जंगली फल है, लेकिन अपने गुणों से यह कई शाही फलों को भी पीछे छोड़ता है, तभी तो यह उत्तराखंड का राजकीय फल है और वैसे भी पहाड़ी लोग तो अपने जंगल से ही जीवित हैं, यहां की वनस्पति, यहां का पानी, यहां की हवा, यहां की बोली भाषा सब कुछ मिलकर ही तो एक आम आदमी भी खास पहाड़ी बनता है और वो पहाड़ी ही क्या जिसने कभी काफल का स्वाद ही नहीं लिया।    इसकी लोकप्रियता ऐसी है कि इसपर लोक गीत और लोक कथाएं भी है। 'बेडू पाको बारामासा, नरैणा काफल पाको चैत

ऑक्सीजन बढ़ाने के तीन मूल मंत्र (Three Mantras to Increase Oxygen)

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ऑक्सीजन बढ़ाने के तीन मूल मंत्र (Three Mantras to Increase Oxygen)      हर तरफ सिर्फ एक ही शब्द सुनने को मिल रहा है और वो है, , ऑक्सीजन । सच में, यह इतनी आवश्यक है कि अगर ऑक्सीजन न मिले, तो हम मिट्टी में मिले ।    प्राणवायु है ऑक्सीजन , यह तो सभी को पता है लेकिन इसकी गंभीरता का अंदाजा आज लोगों को पता चल पा रहा है जब कोरोना संकट में लोग ऑक्सीजन को लेकर तरस रहे हैं। कहीं ऑक्सीजन सिलेंडर को लेकर अफरा तफरी मची हुई है तो कहीं बिना ऑक्सीजन के ही आग लगी हुई है। रोजाना खबरें तो पढ़ने को मिल जाती हैं कि ऑक्सीजन के बिना कितने लोगों की जान चली गई है। अब हालात तो यह है कि प्रतिदिन फोन और मैसेज तो आते ही है जो सिर्फ ऑक्सीजन के इंतजाम के लिए होते है। हम लोग भी जितना हो सके मदद करते हैं और कभी तो चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते सिवाय ऐसे संदेशों को आगे बढ़ाने के। ऐसा ही हाल शायद आप में से बहुत लोगों का भी हो।     आज जो हम कर सकते हैं अपने और दूसरों के लिए वो है प्रार्थना लेकिन प्रार्थना के साथ साथ अगर हम कुछ जीवनोपयोगी मंत्र भी अपना लें तो आने वाली स्थिति से लड़ने के लिए भी तैयार भी रहेंगे।