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शांत से विकराल होते पहाड़...

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शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

उत्तराखंडी अनाज.....झंगोरा (Jhangora: Indian Barnyard Millet)

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उत्तराखंडी अनाज.....झंगोरा   गहत (कुलथ) का फाणू, भटवाणी, बाड़ी, झोली, कढ़ी, डुबका, आलू के गुटके, कद्दू का रैठू, काखड़ी का रैला, चैंसू, कंडाली का साग, पिंडालू के पत्तों की काफली, आलू का झोल, आलू/ मूली की थिंच्वाणी, तिल/भंगलू की चटनी,कचमोली, कद्दू की सब्जी, झंगोरे की खीर, अरसा, सिंगौड़ी . ... नाम तो सुने ही होंगें आपने। हाँ, ये नाम उनके लिए नये हो सकते हैं जो उत्तराखंड से नहीं है। बता दे कि ये सारे नाम है उत्तराखंडी व्यंजनों के। इनके तीखे, खट्टे और मीठे स्वाद का तो हर पहाड़ी दीवाना है। अगर आप उत्तराखंड से हैं और अगर इनमें से एक पकवान भी आपके जिव्हा तक नहीं पहुँचा है तो मैं तो ये समझूँगी कि आप उत्तराखंड में सिर्फ रह रहे हैं आप उत्तराखंडी नहीं हैं।     वैसे तो हर राज्य की अपनी एक अलग पहचान होती है, वहाँ का रहन सहन, वहाँ की वेशभूषा, वहाँ का खान पान का अपना अलग महत्व होता है। ऐसे ही उत्तराखंड के लोगों का खान पान भी बहुत साधारण किंतु स्वास्थ्यवर्धक होता है। उत्तराखंड में गेंहू, धान, मंडुआ, झंगोरा, दाल, कौणी, चीणा नामक अनाज की खेती होती रही है, लेकिन आज का ये ले...