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शांत से विकराल होते पहाड़...

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शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

Travelogue यात्रा के रंग: परिवार, धर्म, अध्यात्म

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यात्रा के रंग: परिवार, धर्म, अध्यात्म (Part 2)  क्या, आपके साथ भी ऐसा होता है कि ट्रेन से उतरने के बाद भी ऐसा लगे कि मानों अभी तक हम ट्रेन में ही है। आँखें बंद करने के बाद भी लग रहा था कि मैं हिल ही रही हूँ। एक विभ्रम (illusion) की स्थिति हो रही थी।  दिन के एक बजे देहरादून से बैठना और अगली सुबह छ: बजे प्रयागराज पहुँचना यानी कि 16 -17 घंटों के सफर के बाद  घर पहुँचने पर ऐसा होना शायद स्वभाविक होता होगा!   थकान दूर होते ही निकलना था उसी आवश्यक काम के लिए जिसके लिए हम देहरादून से प्रयागराज आये थे। मैं पहली बार किसी सरकारी ऑफिस में सेवानिवृत्ति के कार्यक्रम में उपस्थित हो रही थी। इससे पहले केवल सेवानिवृत्ति की दावतों में ही शामिल रही हूँ। ए जी ऑफिस, एकाउंटेंट जनरल ऑफिस एक बहुत बड़ा सरकारी कार्यालय है। (यह कार्यालय उत्तर प्रदेश राज्य के लेन देनो के लेखे एवं हकदारी के कार्य - कलाप निष्पादित करता है।)    एक बड़े से सभागार में हम सभी घर वालों को आमंत्रित किया गया था। बहुत से लोग इस हॉल में जुट रहे थे। इस हॉल में नर्म और बैठने पर फच्च वाली आवाज़ वाले सोफे में हम सब...