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शांत से विकराल होते पहाड़...

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शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

इगास: उत्तराखंड की दिवाली (Igas: The Diwali of Uttarakhand)

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   इगास: उत्तराखंड की दिवाली  9 नवम्बर 2024 से उत्तराखंड की रजत जयंती वर्ष (25 वर्ष) का आरंभ हो रहा है। इस विशेष अवसर पर हम सिर्फ अपने राज्य की स्थापना का ही नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, सपनों और अटूट जज़्बे का जश्न मना रहे हैं। मन में उल्लास है और विश्वास भी कि उत्तराखंड विकास के पथ पर निरंतर अग्रसर रहेगा और अपनी अनोखी संस्कृति और परंपराओं को भी संरक्षित रखेगा। आआज का लेख इसी संस्कृति के साथ जुड़ा है, उत्तराखंड का लोकपर्व इगास।     अभी तो दिवाली समाप्त हुई है लेकिन उतराखंडियों के लिए दिवाली की जगमगाहट फिर से आ रही है। शुभ दिन, इगास के साथ।    नवरात्रि से शुभ दिनों का आगमन आरंभ हो जाता है। पहले माँ जगदंबा के दरबार में मन पवित्र होता है उसके बाद प्रभु राम का गुणगान। सच मानो तो त्योहारों की झड़ी लग जाती है और मन में खुशियोँ की फुलझड़ी तो जैसे कभी खत्म ही नहीं होती बस जगमगाती ही रहती है। ऐसे में लगता है कि दिवाली की खुशियाँ कभी समाप्त ही न हो।   जैसे कि दिवाली तो चली गई लेकिन इस फुलझड़ी की जगमगाहट उत्तराखंड में इगास तक रहती है। इगास उत्तराखं...

उत्तराखंड का लोक पर्व: इगास (पहाड़ी दिवाली)

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उत्तराखंड का लोक पर्व: इगास (पहाड़ी दिवाली)     शहरी दिवाली तो मना चुके हैं अब बारी है पहाड़ी इगास बग्वाल मनाने की। इगास का अर्थ है एकादशी। गढ़वाली में एकादशी को इगास कहा जाता है और बग्वाल को दिवाली। दिवाली के 11 दिन बाद आने वाली शुक्ल एकादशी को गढ़वाल में इगास का उत्सव होता है। उत्तराखंड का यह खास त्यौहार इगास भी प्रकाशपर्व है। जैसे दिवाली को दीपोत्सव माना जाता है वैसे ही इगास पहाड़ की दिवाली है इसलिए दीपक तो जलेंगे ही और पकवान भी बनेंगे ही। इगास क्यों मनाया जाता है  पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खबर गढ़वाल में 11 दिन बाद मिली इसी कारण से गढ़वाल में दिवाली 11 दिन बाद मनाई गई। वैसे कहा जाता है कि गढ़वाल में चार बग्वाल दिवाली होती है। पहली कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी फिर अमावस्या वाली बड़ी दिवाली जो पूरा देश मनाता है। इस दिवाली के 11 दिन बाद आती है इगास बग्वाल और चौथी बग्वाल बड़ी दिवाली के एक महीने बाद वाली अमावस्या को मनाते हैं। चौथी बग्वाल जौनपुर प्रतापनगर, रंवाई जैसे इलाकों में मनाई जात...