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Showing posts from January, 2024

थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग-2

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थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग- 2   पिछले लेख में हम हरिद्वार स्थित चंडी देवी के दर्शन करके आगे बढ़ रहे थे यानी कि उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल से अब कुमाऊँ मंडल की सीमाओं में प्रवेश कर रहे थे बता दें कि उत्तराखंड के इस एक मंडल को दूसरे से जोड़ने के लिए बीच में उत्तर प्रदेश की सीमाओं को भी छूना पड़ता है इसलिए आपको अपने आप बोली भाषा या भूगोल या वातावरण की विविधताओं का ज्ञान होता रहेगा।     कुमाऊँ में अल्मोडा, नैनीताल, रानीखेत, मुक्तेश्वर, काशीपुर, रुद्रपुर, पिथौरागढ, पंत नगर, हल्दवानी जैसे बहुत से प्रसिद्ध स्थान हैं लेकिन इस बार हम केवल नैनीताल नगर और नैनीताल जिले में स्थित बाबा नीम करौली के दर्शन करेंगे और साथ ही जिम कार्बेट की सफ़ारी का अनुभव लेंगे।   225 किलोमीटर का सफर हमें लगभग पांच से साढ़े पांच घंटों में पूरा करना था जिसमें दो बच्चों के साथ दो ब्रेक लेने ही थे। अब जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे बच्चे भी अपनी आपसी खींचतान में थोड़ा ढ़ीले पड़ रहे थे। इसलिए बच्चों की खींचतान से राहत मिलते ही कभी कभी मैं पुरानी यादों के सफर में भी घूम रही थी।     कुमाऊँ की मेरी ये तीसर

शॉपिंग की लत Shopping addiction

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शॉपिंग की लत 'सेल सेल सेल...छूट छूट छूट...'   ऐसा सुनना अब बहुत सामान्य हो गया है। ये इतने मनभावन शब्द हैं कि साल भर में जितनी बार भी सुने उतनी बार अच्छा लगता है। सच में, आज हम न जाने कितनी बार इन शब्दों को देखते और सुनते हैं। होली, दिवाली और नये साल पर तो छूट होती ही थी लेकिन अब चाहे 15 अगस्त हो या 26 जनवरी मुझे लगता है कि ये सेल वाला मौसम वर्ष भर किसी न किसी रूप में आता है।    ऑनलाइन बाजार तो सर्दी की सेल, गर्मी की सेल, बरसात की सेल, बसंत की सेल यहाँ तक कि सारी ऋृतुओं को सेल के रूप में परोस देता है और अब तो खास दिन की भी सेल होती है जैसे कि ब्लैक फ्राईडे सेल।  इन्ही सब के चलते हमारे अपने शॉपिंग के कीड़े भी सेल के लालच से बार बार बाहर निकलते रहते हैं। फिर धीरे धीरे ये हमारी आदत बन जाती है और बाद में लत।    क्या आपको भी लगता है कि बार बार की खरीदारी खासकर कि ऑनलाइन वाली ये भी एक लत जैसी ही है इसीलिए हम बार बार इन आकर्षक भीड़ में खो जाते हैं। चूंकि लत में भी किसी एक काम को करने की प्रबल इच्छा होती है तो बार बार आकर्षक फैशन की ओर भागना भी तो लत ही हुआ।   

मायके का एक्स्ट्रा थैला

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मायके का एक्स्ट्रा थैला   ऐसा मेरे साथ अक्सर होता है कि जब भी मायके जाओ तो एक बैग और आओ तो दुगुने से तिगुने बैग। ये हाल तब है जब कि मायके की दूरी घंटे भर की है। भले ही मायके कुछ घंटे के लिए जाना हो लेकिन साथ में एक झोला वापसी में न बंधे ऐसा मेरे साथ शायद ही कभी हुआ हो।      अपनी प्रतिदिन की व्यस्त दिनचर्या से इतर मायके में पूरा दिन कहाँ निकल गया पता ही नहीं चलता। पता तब ही चलता है जब अगले दिन या अगले पल वापसी होती है वो भी एक "एक्स्ट्रा थैले" के साथ। सच में शगुन के नाम पर ये थैले, पैकेट या पुड़िया के रूप में ये अनुपम भेंट 'एक्स्ट्रा' नहीं अपनी खास सखी लगती है। भले ही उनमें कुछ भी हो।    मुझे लगता है कि ये मेरा मायके से मोह होगा या फिर माँ बाबू जी का प्रेम लेकिन हर छोटी बड़ी चीजों का जो मुझे या मेरे परिवार को पसंद हो उनका उन झोलों में साथ आना तय हो जाता है। ये फल सब्जी मिठाई भाजी या फिर कुछ भी समान जो मायके से साथ आता है उसे अन्य चाहे कोई लालच समझे या कुछ और लेकिन बेटियों के लिए ये छोटे बड़े झोले खुशियों और प्रेम के बड़े बड़े पिटारे होते हैं ज