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शांत से विकराल होते पहाड़...

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शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

जन्माष्टमी विशेष: कृष्ण भक्ति: प्रेम्, सुख, आनंद का प्रतीक

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कृष्ण भक्ति:  प्रेम्, सुख, आनंद का प्रतीक  भारत में मनाये जाने वाले विविध त्यौहार और पर्व  यहाँ की समृद्ध संस्कृति की पहचान है इसलिए भारत को पर्वों का देश कहा जाता है। वर्ष भर में समय समय पर आने वाले ये उत्सव हमें ऊर्जा से भर देते हैं। जीवन में भले ही समय कैसा भी हो लेकिन त्यौहार का समय हमारे नीरस और उदासीन जीवन को खुशियों से भर देता है। ऐसे ही जन्माष्टमी का त्यौहार एक ऐसा समय होता है जब मन प्रफुल्लित होता है और हम अपने कान्हा के जन्मोत्सव को पूरे जोश और प्रेम के साथ मनाते हैं।  नटखट कान्हा का रूप ही ऐसा है कि जिससे प्रेम होना स्वाभाविक है। उनकी लीलाएं जितनी पूजनीय है उतना ही मोहक उनका बाल रूप है। इसलिए जन्माष्टमी के पावन उत्सव में घर घर में हम कान्हा के उसी रूप का पूजन करते हैं जिससे हमें अपार सुख की अनुभूति होती है।  कान्हा का रूप ही ऐसा है जो मन को सुख और आनंद से भर देता है। कभी माखन खाते हुए, कभी जंगलों में गाय चराते हुए, कभी तिरछी कटी के साथ मुरली बजाते हुए तो कभी गोपियों के साथ हंसी ठिठोली करते हुए तो कभी शेषनाग के फन पर नृत्य करते ...

कान्हा से कृष्ण बने

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कान्हा से कृष्ण बने     Follow Krishna...Respect women    नटखट कान्हा को तो सभी प्रेम करते हैं। माखन खाते हुए, मोरपंख सजाते हुए, बंसी बजाते हुए या फिर ग्वाल बाल के साथ गइया चराते हुए । उनका हर बाल रूप दिव्य और अलौकिक है और उनकी बाल लीलाएं अद्भुत। उनका यही स्वरूप तो मन को मोह लेता है इसीलिए कान्हा को मनमोहन भी कहा जाता है। इसी मनमोहिनी छवि से प्रेरित प्रत्येक बाल मनमोहन लगता है इसीलिए जन्माष्टमी के अवसर पर बालक कान्हा बनते हैं और सभी से खूब लाड और प्यार पाते हैं।   मनमोहन का बाल स्वरूप आगे चलकर एक निष्काम कर्मयोगी का बनता है तो यही कान्हा हमारे पूजनीय कृष्ण बनते हैं और जो हमारे वंदनीय होते हैं उनका अनुसरण हमें करना ही चाहिए। जैसे हम बाल रूप में कान्हा बनते हैं तो उसी तरह से समय के साथ आगे बढ़कर हमें अपने कर्मपथ का कृष्ण बनना चाहिए। हमें कृष्ण बनना है,, स्त्री का सम्मान करना है... Follow Krishna: Give Respect to Woman    हमें वही कृष्ण बनना है जिन्होंने कर्म को ही सर्वोपरि माना इसलिए हमें भी अपने कर्म में निरंतर बढ़ते रहना चाहि...