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शांत से विकराल होते पहाड़...

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शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

100th Special: Thank You

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100th Special: Thank You & Happy Diwali         आज का लेख मेरे लिए बहुत खास है क्योंकि ये 100वां लेख है और वो भी सबसे खास त्यौहार दिवाली के साथ। भले ही ये आंकडा बहुत बड़ा न हो लेकिन 'शतक' की तो अपनी पहचान है। कितने लोग मेरा लेख पढ़ते हैं या नहीं भी पढ़ते, कितने लोग मुझे जानते हैं और कितने नहीं भी जानते लेकिन उन सभी की शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद।    पिछले लगभग दो ढाई सालों से अच्छा बुरा जो भी मन किया बस वो लिख दिया। न कोई विषय विशेष न कोई व्यक्ति विशेष, बस जैसा लगा वैसा लिख दिया लेकिन एक चीज थी जो बड़ी ही सामान्य थी वो थी संतुष्टि। हर एक पोस्ट के बाद एक तसल्ली मिलती थी, एक खुशी होती थी कि मैंने अपने लिए समय निकालकर कुछ तो लिखा है. भले ही इसके लिए हफ्ते दो हफ्ते का समय लगा हो!   लिखने का सफर भी कोरोना काल से ही आरंभ हुआ है जो बहुत लंबा तो नहीं है लेकिन न भूलने वाला है। यह समय सभी के लिए बहुत कठिन और कष्टदायी था लेकिन इस कठिन समय ने बहुत कुछ सिखाया भी।    कोरोना के समय लॉक डाउन में जहाँ सभी परेशान थे वहीं सुकून ...