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शांत से विकराल होते पहाड़...

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शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

Women's Special " From Fabric to Feelings: "

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 महिला विशेष: भावनात्मक वस्त्रों का प्रबंधन "Women's  Special " From Fabric to Feelings: "   कपड़े केवल तन ढकने का काम करते हैं लेकिन वेशभूषा हमारी छवि का निर्माण करती है। ये हमारे स्वरुप को निखारते है और आत्मविश्वास भी बढ़ाते  हैं । असल में ये हमारे व्यक्तित्व का दर्पण है जो अन्य लोगों को हमारे चरित्र से लेकर सामाजिक स्थिति तक का आभास कराते हैं वहीं इन वस्त्रों में अगर भावनाएं भी जुड़ जाएं तो ये उस व्यक्ति के लिए बहुत खास बन जाते हैं।    फिर तो समय के साथ आगे बढ़ते हुए भले ही कितने फैशन बदले, रंगों का चलन बदले या पहनने ओढ़ने का प्रचलन। ये कपड़े कभी भी पुराने नहीं लगते क्योंकि तब ये केवल कपड़े का टुकड़ा नहीं बल्कि यादों का पिटारा बन जाते है जिन्हें जितनी बार खोलो एक नई चमक आँखों के आगे घूमने लगती है।     तब इन्हे पहनने से अधिक आनंद तो उन्हें  संभालने के सुख में होता है। इसीलिए तो कितनी ही बार हम उन कपड़ों को भी सहेज के रखते है जिन्हे हम न तो पहनते है और  न ही किसी को देने की हिम्मत रखते है बस बरसों से घर में संभाले रखते हैं ताकि जब भी...