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शांत से विकराल होते पहाड़...

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शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

अग्नि टोली और होलिका दहन

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अग्नि टोली और होलिका दहन     बच्चे भी न मोबाइल से कहां दूर हो पाते हैं जब बड़े ही बिना मोबाइल के ऐसे तड़पते हैं जैसे बिन पानी के मछली। वैसे भी जब से ऑनलाइन पढ़ाई का चक्कर हुआ है तभी से बच्चों का इंटरनेट की दुनिया में जाना तो स्वाभाविक ही था।    इसीलिए आज का लेख हमारी गली के बच्चों के लिए जिन्होंने विशेषकर कहा कि इस बार का लेख हमारी होलिका दहन पर। शायद वो भी इस वर्चुअल दुनिया में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहते हैं।    हमारी गली में छोटे बड़े सब साइज के बच्चे मिलेंगे। कुछ 14 से 16 साल के हट्टे कट्टे तो कुछ 10 से 12 साल के फुर्तीले। कुछ बच्चे 7-8 साल के पिदके हैं तो कुछ 3-4 साल के टिंडे जिसमें जय और उसका दोस्त हैरी भी आता है। पिछले दो साल तो बच्चों ने अपना खेल कोरोना के किश्तों में खेला लेकिन अब तो बिंदास खेल कूद कर रहे हैं। लड़के कहीं क्रिकेट में तो लड़कियां कभी बैडमिंटन या स्टापू खेलती नजर आती हैं।      बच्चे तो बच्चे होते हैं इनमें क्या फर्क कि कौन लड़का और कौन लड़की लेकिन फिर भी बहुत समय से लड़कियों को अलग ही खेलते हुए देखा था। इ...