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शांत से विकराल होते पहाड़...

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शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

पर्यावरण नियम सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य के लिए (Environmental rules for a safe and healthy future)

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पर्यावरण नियम: Reduce, Re-use and Recycle   पिछले हफ्ते एक दिन फोन देखकर बहुत खुशी मिल रही थी क्योंकि हर कोई अपनी फोटो लगा रहा था। वैसे तो अपने दोस्त और बंधुओंकी फोटो देखकर हमेशा अच्छा ही लगता है लेकिन इन फोटो में एक खास बात यह थी कि हर किसी की फोटो में प्रकृति की रक्षा का संदेश था।     सच में,  बहुत अच्छा लगता है जब किसी को देखती हूं कि वो अपनी बागवानी में पौधों के बीच में है, कोई फूलों के साथ है, कोई बेलों की देखभाल में लगा हुआ है, किसी ने घर के आंगन में पौधा लगाया तो किसी ने छत पर किचन गार्डन बनाया। सच में, ऐसा लगा कि सभी को पर्यावरण की चिंता है तभी तो सभी लोग प्रेरित कर रहे हैं कि धरती को बचाओ और पेड़ पौधे लगाओ।       यह दिन था 5 जून का जिसे हम सभी विश्व पर्यावरण दिवस (world environment Day) के रूप में मनाते है। पर्यावरण दिवस अपने आसपास के पर्यावरण को स्वस्थ, सुरक्षित और संरक्षण रखने के लिए एक जागरूक अभियान है। इस वर्ष का विषय ही पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली है जिसे संयुक्त राष्ट्र ने एक दशक तक 2021- 2030 तक मनाने क...