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शांत से विकराल होते पहाड़...

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शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

क्रिसमस पर हर्षिल (मिनी स्विजेरलैंड) की यात्रा का अनुभव (भाग - २)Experience of Harshil (Mini Switzerland) visit on Christmas (part 2)

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पिछले लेख में मैंनें अपनी हर्षिल तक पहुँचने का वर्णन किया था और ये भी कहा था कि असली हर्षिल तो देखना अभी बाकी है। इसीलिए अब आगे बढ़ते हैं कि क्या था हर्षिल में जो हम इतनी दूर चले आये।।।।     थकान के कारण काफी देर के बाद नींद आयी थी। इसीलिए बेसुध होकर सो रही थी। अचानक से खिड़की की ओर से कुछ शोर सुनाई दिया, खिड़की पीटने का सा और नींद टूट गई। खिड़की की ओर देखा तो  रोशनी आ रही थी और साथ ही साथ विकास की आवाज भी, " जल्दी बाहर आओ" बस इतना बोलना हुआ कि बच्चे भी उठ गए और खिड़की की ओर चल पड़े। सुस्ताते हुए सोचा कि अब विकास को क्या मिल गया है यहाँ!! तभी तन्नु भी चिल्लाई,"वाऊ " बस उसका 'वाऊ' काफी था मुझे अपनी गर्म रजाई छोड़ने के लिए। खिड़की से बाहर झांका तो विकास और मन्नु दोनों गेस्ट हाउस में टहल रहे थे। सामने से बर्फ से ढ़के पहाड़ दिख रहे थे और सुबह सुबह उस दृश्य को देखने से ही मेरा पूरा दिन बन गया। अभी सिर्फ खिड़की से ही निहार रही थी कि मेरे दोनों बच्चें भी मुझे बाहर नज़र आ गए।     उन्हें तो सिर्फ बर्फ से मतलब था, क्योंकि 'स्नोमैन' जो...

क्रिसमस पर हर्षिल (मिनी स्विजेरलैंड) की यात्रा का अनुभव Experience of Harshil (Mini Switzerland) visit on Christmas

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सुबह के 8:15 बज गए है और हम सब चल पड़े हैं अपनी गाड़ी से हर्षिल की ओर। 2347 रुपए का पेट्रोल डाला गया और गाड़ी के पेट्रोल की डिग्गी हो गई फुल। जितना पेट्रोल गाड़ी में उससे कहीं अधिक गाड़ी में सामान। बड़ा बैग, छोटा बैग, ट्रॉली बैग, हैंड बैग, एक चादर, एक कंबल और एक रजाई भी। ऐसा लग रहा है कि हमारी गाड़ी एक मालवाहक गाड़ी में बदल गई। और जो पड़ोसियों ने हमें देखा होगा उन्हें तो लगा होगा कि हम महीने भर के लिए कहीं जा रहें हैं, लेकिन क्या करें  इस यात्रा में मेरे दो बच्चें जो मेरे साथ हैं एक 10 साल की बेटी जिया और एक 3 साल का बेटा जय। इसीलिए क्या करूँ, कुछ 'एक्स्ट्रा केयर वाली फीलिंग' हर माँ को होती ही है। कोरोना आने के बाद बच्चों का शहर से बाहर घूमने की यात्रा पहली बार थी, इसीलिए मास्क, सैनिटाइजर और सीख साथ साथ चल रही थी। जिया का उत्साह तो दो दिन पहले से ही बन गया था और भोले-भाले लेकिन चतुर जय को कुछ नहीं पता था हर्षिल के बारे में लेकिन जिया ने अपने छोटे भाई को भी बर्फ का नाम ले-लेकर उत्साहित कर दिया था। बस जैसे ही गाड़ी में बैठे बातूनी जय का राग अलापना शुरू हो गया,,,,''पाप...