प्रतिस्पर्धा की चुनौती या दबाव

Image
प्रतिस्पर्धा की चुनौती या दबाव    चूंकि अब कई परीक्षाओं का परिणाम आ रहा है तो बच्चों और अभिभावकों में हलचल होना स्वभाविक है। हाल ही में ऐसे ही एक परीक्षा जेईई (Joint Entrance Test/संयुक्त प्रवेश परीक्षा) जो देशभर में सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण इंजिनयरिंग परीक्षा है उसी का परिणाम घोषित हुआ है। इसी परीक्षा की एक खबर पढ़ी थी कि जेईई मेन में 56 बच्चों की 100 पर्सन्टाइल, है...कितने गर्व की बात है न। एक नहीं दो नहीं दस नहीं पूरे 56 बच्चों के अभिभावक फूले नहीं समा रहे होंगे।    56 बच्चों का एक साथ 100 परसेंटाइल लाना उनके परीक्षा में आये 100 अंक नहीं अपितु ये बताता है कि पूरी परीक्षा में बैठे सभी अभ्यार्थियों में से 56 बच्चे सबसे ऊपर हैं। इन 56 बच्चों का प्रदर्शन उन सभी से सौ गुना बेहतर है। अभी कहा जा सकता है कि हमारे देश का बच्चा लाखों में एक नहीं अपितु लाखों में सौ है।    किसी भी असमान्य उपलब्धि का समाज हमेशा से समर्थन करता है और ये सभी बच्चे बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं इसलिए सभी बधाई के पात्र हैं। परसेंटेज जहाँ अंक बताता है वही परसेंटाइल उसकी गुणवत्ता बताता है।

अहिंसा परमो धर्म:

स्वतंत्रता दिवस: अहिंसा परमो धर्मः

    15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस मतलब कि देश का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पर्व। जो हमेशा हमें राष्ट्र प्रेम की खुशी का अनुभव कराता है। चाहे ये खुशी आसमान में उड़ती पतंगों में, हवा में लहराते गुब्बारों में, घर, गाड़ी या ऑफिस की मेज़ में या टीवी पर आने वाले किसी कार्यक्रम में दिखाई दे और साथ ही तिरंगे से सजी मिठाई में मिले। सभी में देश प्रेम का अंश अवश्य देखने को मिलेगा। जब इतना सब कुछ एक देश के लिए तो फिर एक देश के निवासियों में इतने मतभेद और नफरत क्यों?? यह कहा जा सकता है कि सबसे बड़ी जनसंख्या के साथ भिन्न भिन्न धर्म जाति, संप्रदाय, संस्कृति सभ्यता, आचार विचार के साथ रहते हुए तर्क तो होते ही हैं किंतु कुतर्क के साथ हिंसा क्यों?? अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को कष्ट देना उचित है क्या?? क्या नफरत और हिंसा के साथ देश का विकास संभव है?? 
 जहाँ हमें,
अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परं तपः ।
अहिंसा परमं सत्यं यतो धर्मः प्रवर्तते ॥ ( अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा परम तपस्या (तप) है, और अहिंसा परम सत्य है और जिसके द्वारा धर्म की प्रवृत्ति आगे बढ़ती है।) की नीति पर चलना चाहिए वहीं हम धार्मिक हिंसा (धर्म हिंसा तथैव च:) की नीति पर आगे बढ़ रहे हैं। जो राष्ट्र हित के लिए उचित नहीं है। 
  मनुष्य के दिमाग में इतनी हिंसा भर गई है कि ये आने वाले समय में इस तरह का उपद्रव देश की शांति के लिए खतरा तो बनेगा ही साथ ही आने वाली पीढ़ी के नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक विकास को भी बाधित करेगा।    हमें अपने बच्चों को एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण देना है जहाँ वो सकारात्मक सोच के साथ आगे बढे, न किसी हिंसा का शिकार बनें और न ही किसी भी नकारात्मक सोच के शिकार। हमें समझना होगा कि विकासशील भारत हिंसा की नकात्मक छवि के साथ आगे तो नहीं बढ़ सकता। एकता जो देश का मुख्य आधार है उस पर प्रश्नचिंन्ह का लगना उचित नहीं है। आपस में एक दूसरे के प्रति रोष और घृणा करना गलत है। सभी को अपने धर्म जाति संप्रदाय का सम्मान करना चाहिए, आगे बढ़ाना चाहिए लेकिन दूसरों को कुचल के नहीं, न्याय की ओर कदम रखना चाहिए लेकिन बदले की भावना से हिंसा नहीं और साथ ही स्वस्थ मानसिकता से विकास का सोचना चाहिए न कि विकृत सोच के साथ की। 

   इस वर्ष देश अपनी स्वतंत्रता की 77वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस दिन अमर बलिदानियों का स्मरण तो अवश्य करें साथ ही अपने देश के भविष्य के प्रति जागरूक भी रहे। 15 अगस्त किसी एक धर्म का नहीं अपितु पूरे भारतवासियों का दिन है। इस दिन सभी नागरिकों को वैश्विक स्तर पर अपने देश को आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक रूप से दृढ़ होने की कामना करनी चाहिए जो किसी भी हिंसा या नफरत के साथ तो संभव नहीं है इसलिए सरकार और आमजन दोनों को शांत मन से काम लेना होगा।
 15 अगस्त केवल स्वतंत्रता दिवस मात्र नहीं है यह हमारे देश की एकता को दर्शाता हमारा राष्ट्रीय पर्व है। इस पर्व को किसी भी धर्म जाति के बंधनों से मुक्त होकर मनाएं। तो आइये इस 15 अगस्त, स्वतंत्रता दिवस पर अपने देश की प्रगति के लिए "अहिंसा परमो धर्मः" की नीति अपनाएं। 

 जय भारत!! जय हिंद!! 
      HAPPY INDEPENDENCE DAY
    
 नोट: कृप्या इस लेख को किसी भी जाति, धर्म, समुदाय या अन्य विषय के रूप में न लें। 

एक -Naari

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

उत्तराखंडी अनाज.....झंगोरा (Jhangora: Indian Barnyard Millet)

उत्तराखंड का मंडुआ/ कोदा/ क्वादु/ चुन

मेरे ब्रदर की दुल्हन (गढ़वाली विवाह के रीति रिवाज)