प्रतिस्पर्धा की चुनौती या दबाव

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प्रतिस्पर्धा की चुनौती या दबाव    चूंकि अब कई परीक्षाओं का परिणाम आ रहा है तो बच्चों और अभिभावकों में हलचल होना स्वभाविक है। हाल ही में ऐसे ही एक परीक्षा जेईई (Joint Entrance Test/संयुक्त प्रवेश परीक्षा) जो देशभर में सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण इंजिनयरिंग परीक्षा है उसी का परिणाम घोषित हुआ है। इसी परीक्षा की एक खबर पढ़ी थी कि जेईई मेन में 56 बच्चों की 100 पर्सन्टाइल, है...कितने गर्व की बात है न। एक नहीं दो नहीं दस नहीं पूरे 56 बच्चों के अभिभावक फूले नहीं समा रहे होंगे।    56 बच्चों का एक साथ 100 परसेंटाइल लाना उनके परीक्षा में आये 100 अंक नहीं अपितु ये बताता है कि पूरी परीक्षा में बैठे सभी अभ्यार्थियों में से 56 बच्चे सबसे ऊपर हैं। इन 56 बच्चों का प्रदर्शन उन सभी से सौ गुना बेहतर है। अभी कहा जा सकता है कि हमारे देश का बच्चा लाखों में एक नहीं अपितु लाखों में सौ है।    किसी भी असमान्य उपलब्धि का समाज हमेशा से समर्थन करता है और ये सभी बच्चे बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं इसलिए सभी बधाई के पात्र हैं। परसेंटेज जहाँ अंक बताता है वही परसेंटाइल उसकी गुणवत्ता बताता है।

मित्रभेद: मित्रलाभ:

मित्रभेद: मित्रलाभ:

Friendship Day.... Short Story
 


  पूरे मोहल्ले की बिजली अचानक चले जाने पर घर में अंधेरा छा गया। लेकिन मोहल्ले के बच्चों का एक साथ एक सुर में शोर भी सुनाई दिया और चंद मिनटों में सारे बच्चे अपने घरों से बाहर आकर नुक्कड़ पर इकट्ठे हो लिए। बारी थी बिजली के चले जाने पर उनके प्रिय छुपन छुपाई खेल की लेकिन महेश घर की छत की ओर भागा। 

  अरे महेश! आज तुम गली के बजाए छत पर कैसे आ गए। आज खेलने नहीं जाना? 

नहीं चाचा, ये सब बच्चे बहुत बुरे हैं।

लेकिन कल तक तो तुम सब साथ थे फिर क्या हो गया? 

चाचा आपको पता है, पहले तो सब दोस्त मेरे साथ ही थे लेकिन जब से वो आकाश आया है न तब से सब उसी के आगे पीछे रहते हैं। आकाश के साथ ही खेलते हैं और उसी की सुनते हैं।


कौन आकाश?? क्या वही जो सामने वाले घर में रहता है। वही आकाश न?

हाँ, वही आकाश, जो गर्मियों की छुट्टियों से अपने मामा के यहाँ ठहरा हुआ और अभी तक जाने का नाम भी नहीं ले रहा।

लेकिन पहले तो तू भी रोज उसके साथ घूमता था, खेलता था। आज क्या हो गया??

कुछ नहीं चाचा लेकिन कल रेस में मैं जीतने ही वाला था लेकिन तब सारे बच्चे आकाश...आकाश...चिल्लाने लगे और वो जीत गया।

चाचा हँसते हुए बोले..इसलिए तुम पीछे रह गए!! अच्छा चलो तुम्हारी बात मान लेते हैं लेकिन आकाश के अलावा भी तो तुम्हारे साथी हैं उनके साथ खेल लो।

नहीं बिल्कुल नहीं। ये सब स्वार्थी मित्र हैं। जब तक आकाश नहीं था तब तक सब मेरे दोस्त बने फिरते थे और जब से वो आया है तब से सब उसी की जी हुज़ूरी में लगे हैं।

ओह हो, दोस्त तो सब एक जैसे ही होते हैं। जाओ, तुम्हारे दोस्त तुम्हें बुला रहे हैं। इतना मत सोचा करो।

चाचा आपको पता है, पहले क्रिकेट में मैं ही कप्तान बनता था पर जब से आकाश आया है तब से सब लोग उसे ही कप्तान बनाते हैं। फुटबॉल में भी मेरी टीम में कोई अच्छा खिलाडी नहीं आता। सबको आकाश की टीम में जाना है और अभी भी इस छुपन छुपाई में उसकी कभी ढूँढ़ने की बारी नहीं आयेगी।  इसलिए मुझे उनके साथ नहीं खेलना।

तभी गली से आकाश के चिल्लाने की आवाज आई...
महेश,, महेश जल्दी नीचे आ जाओ। यहाँ तुम्हारे बिना खेल अभी शुरू नहीं हुआ है। जल्दी आ जा दोस्त।

अरे आकाश तुम्हें बुला रहा है। चले जाओ महेश। 

नहीं चाचा अब नहीं।

अच्छा चलो एक बात बताओ, क्या उसने तुम्हें कभी परेशान किया है??

नहीं.... (सोचते हुए)

तो फिर?...

तभी नीचे से सभी बच्चों की आवाज़ आने लगी...
महेश जल्दी आओ। नहीं तो हम ऊपर आ रहे हैं और इसी के साथ बच्चे घर का गेट खोल कर ऊपर बढ़ने लगे।

अरे, आ तो रहा हूँ।


महेश तेजी से सीढ़ी से नीचे की ओर जाने लगा लेकिन अंधेरा होने के कारण अपना संतुलन खो दिया। महेश लड़खड़ाकर गिरने लगा लेकिन तभी ऊपर चढ़ते हुए आकाश ने उसे संभाल लिया। महेश बड़ा हादसा होने से बच गया लेकिन उसके दाहिने पैर की एडी में हल्का फ्रैक्चर आ गया। डॉक्टर ने महेश को एक महीने का आराम बताया।

  महेश अब कहीं भी बाहर खेलने नहीं जा सकता था लेकिन आकाश प्रतिदिन शाम को महेश के घर आता और दोनों शतरंज खेलते।

  एक दिन महेश अपने चाचा के साथ शतरंज खेल रहा था...
ये लो चाचा, ये तुम्हारा चेक। बचा लो अपने राजा को।

अरे! वाह महेश। तुम तो बहुत अच्छे खिलाड़ी बन गए हो। लगता है, अपने मित्र के सारे दाव सीख चुके हो।

हाँ ये तो है लेकिन चाचा थोड़ी बहुत अपनी बुद्धि भी तो काम करती है।

लेकिन चाचा कल भी आकाश नहीं आया था और आज भी रात होने को है वो अभी तक नहीं आया। उसे बताना भी तो है कि कल मेरा प्लास्टर खुल जायेगा। फिर सब साथ में खेलेंगे। 

माँ...माँ...जरा आप खिड़की से तो झांकना कि आकाश आ रहा है या नहीं। अगर दिखाई न दे तो आवाज लगा दीजिये कि मैं बुला रहा हूँ वो दौड़ कर आ जायेगा।

अरे महेश, ये कैसी बातें कर रहे हो। तुम्हें नहीं पता क्या?

क्या, चाचा?

यही कि आकाश तो कल तड़के ही अपने घर चला गया है। उसके मामा मिले थे कल। उन्होंने ही बताया कि अब वो अपने चाचा चाची के साथ ही रहेगा वहीं किसी स्कूल में उसका दाखिला करा दिया है इसलिए अब वो अगले साल ही आ पाएगा। 

  महेश की माँ उसे खाना परोसते हुए.... बेचारा आकाश। बिन माँ बाप के भी कितना समझदार है।

महेश स्तब्ध था। माँ के ये शब्द महेश के कानों में अगली छुट्टियों तक गूंजते रहे।


एक -Naari


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