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शांत से विकराल होते पहाड़...

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शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

लीव नो ट्रेस (LEAVE NO TRACE)

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लीव नो ट्रेस (LEAVE NO TRACE)     उत्तराखंड में बारहों मास पर्यटन के अवसर हैं किंतु तीर्थ यात्रा यानी कि चार धाम यात्रा के समय (अप्रैल - अक्टूबर) पर्यटन अपने चरम पर होता है। सप्ताहांत वाला सिद्धांत (वीकेंड थ्योरी) अब केवल मेट्रो या महानगरों का ही नहीं अपितु हर स्थान के यात्री को भाता है तभी तो जहाँ अन्य दिन केवल भीड़ होती है वहीं वीकेंड पर कुछ स्थान पर कुंभ होता है।     जब से यातायात की सुविधा और तकनीकी ज्ञान ने अपनी उड़ान भरी है तभी से पर्यटन को भी नए पंख मिल गए हैं। इसीलिए उत्तराखंड में यात्रा के समय पर्यटकों की भीड़ होना अब सामान्य हो गया है। हजारों लाखों लोग इस समय उत्तराखंड की यात्रा पर निकलते हैं।    खैर! समय चाहे जो भी हो यात्रा तो सभी करते ही हैं और करनी भी चाहिए। और जब उत्तराखंड देव स्थान और अपने नैसर्गिक एवं प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर् है तो यहाँ यात्रियों/सैलानियों का आना सामान्य है।    अगर आप उत्तराखंड में किसी भी तरह की यात्रा या फिर कैंप करने की सोच रहे हैं तो Leave No Trace (LNT) लीव नो ट्रेस को अपनाएं। वैसे इ...