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शांत से विकराल होते पहाड़...

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शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

सबसे मीठा राम का नाम, उसके बाद बस आम ही आम। भारत के प्रसिद्ध आम। हर आम की अपनी अलग पहचान

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सबसे मीठा राम का नाम, उसके बाद बस आम ही आम भारत के प्रसिद्ध आम। हर आम की अपनी अलग पहचान      तीन महीने बाद घर में हमारे सिवा अन्य लोगों की भी आवाजें सुनाई दी। पिछले रविवार को ही पारिवारिक मित्र से बढ़कर हमारे परिवार के ही लोग जो साथ थे। मां बाबू जी का और इस परिवार का साथ पिछले 30 सालों से है तो घर में खूब चहल पहल होना स्वाभाविक था।     जय की शैतानियां अपने अवि भईया और शुभी चाचु के साथ चरम सीमा पर थी। जिया की खुशी अपनी क्राफ्ट और पेंटिंग वाली चाची के साथ दुगनी हो गई, मां बाबू जी की टोली अंकल आंटी जी के साथ अलग ही रमी हुई थी और     विकास को तो बस और चाहिए ही क्या था क्योंकि,,अपना बचपन का यार (partner in crime) जो साथ था और इन सबके बीच मुझे तो बस सबको साथ देखकर जो आनंद मिल रहा था उसका अंदाजा तो इस बात से भी लगाया जा सकता है कि खुशी के मारे परोसने वाला एक व्यंजन भी मुझे देखकर फुक गया।    खैर, जब परिवार बड़ा होता है तो इस प्रकार की बाते साधारणत: हो जाती हैं। असाधारण बात तो तब मानी जाए कि जब परिवार एक साथ बैठा हो ...