प्रतिस्पर्धा की चुनौती या दबाव

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प्रतिस्पर्धा की चुनौती या दबाव    चूंकि अब कई परीक्षाओं का परिणाम आ रहा है तो बच्चों और अभिभावकों में हलचल होना स्वभाविक है। हाल ही में ऐसे ही एक परीक्षा जेईई (Joint Entrance Test/संयुक्त प्रवेश परीक्षा) जो देशभर में सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण इंजिनयरिंग परीक्षा है उसी का परिणाम घोषित हुआ है। इसी परीक्षा की एक खबर पढ़ी थी कि जेईई मेन में 56 बच्चों की 100 पर्सन्टाइल, है...कितने गर्व की बात है न। एक नहीं दो नहीं दस नहीं पूरे 56 बच्चों के अभिभावक फूले नहीं समा रहे होंगे।    56 बच्चों का एक साथ 100 परसेंटाइल लाना उनके परीक्षा में आये 100 अंक नहीं अपितु ये बताता है कि पूरी परीक्षा में बैठे सभी अभ्यार्थियों में से 56 बच्चे सबसे ऊपर हैं। इन 56 बच्चों का प्रदर्शन उन सभी से सौ गुना बेहतर है। अभी कहा जा सकता है कि हमारे देश का बच्चा लाखों में एक नहीं अपितु लाखों में सौ है।    किसी भी असमान्य उपलब्धि का समाज हमेशा से समर्थन करता है और ये सभी बच्चे बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं इसलिए सभी बधाई के पात्र हैं। परसेंटेज जहाँ अंक बताता है वही परसेंटाइल उसकी गुणवत्ता बताता है।

गणपति का संदेश....

गणपति का संदेश.... 
 
 
  गणपति महोत्सव की धूम केवल दक्षिण भारत में ही नहीं अपितु उत्तर भारत में भी खूब है। भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी से आरंभ होकर ये उत्सव अनंत चतुर्दशी को समाप्त होता है। इन दस दिनों तक चलने वाले उत्सव में भगवान गणेश घर घर लाये भी जाते हैं, पूजे भी जाते हैं और विसर्जित भी किये जाते हैं और अगले वर्ष तक फिर से गणपति जी की प्रतिक्षा की जाती है। सभी भक्तों के उत्साह के बीच इस पूजन और विसर्जन के बाद "गणपति बप्पा मोरया" की गूँज हर भक्त के कानों में बस जाती है और उनकी मनमोहक छवि मन में। सच में, हमने भगवान को कभी सामने देखा नहीं है। लेकिन उनकी छवि अपने मन और मंदिरों में बना रखी है और उन्हें उसी रूप में पूजकर मन को संतुष्टि भी होती हैं। 
   सनातन धर्म में हम भगवान को सगुण और निर्गुण दोनों ही तरह से पूजते हैं लेकिन सगुण रूप हमें अधिक प्रिय होता है क्योंकि उनकी छवि हमें उनके अधिक निकट ले जाती है। हर किसी की छवि में कुछ न कुछ विशेष होता है जो उस देव की पहचान होती है और जिन्हें हम उसी रूप में पूजना प्रिय है जैसे सिर पे मोरपंख हाथ में मुरली तो भगवान कृष्ण, बाघम्बर ओढ़े, नील कंठ और सर्प के साथ तो भगवान शिव, हाथ में त्रिशूल और सिंह सवारी तो माता अम्बा। वैसे ही गज मुख वाले तो भगवान गणेश। कहने का अर्थ है कि ये छवि केवल देव की पहचान भर नहीं है अपितु उनके छवि और रूप उनके अंदर छुपे गुणों को अनुसरण करने की प्रेरणा देते हैं। इसलिए उनकी छवि के साथ जुड़ने या पूजन का अर्थ है उनके गुणों का पूजन और उनके संदेशों का पालन। इस गणेशोत्सव का भी अर्थ है, प्रथम पूजनीय भगवान गणेश जी का वंदन। प्रतिवर्ष आने वाले ये शुभ दिन भगवान गणेश के साथ जुड़ने का समय है, उनको पूजने और समझने का समय है। आइये गणेश उत्सव के हर्षोल्लास के साथ साथ भगवान गणेश की छवि का संदेश भी ग्रहण करें। जितना महत्व गणपति स्थापना का है उतना ही गणेश विसर्जन का भी। में तो होता ही है लेकिन गणेश भगवान अपने गुणों को 
क्या कहती है गणेश की छवि:

बड़ा सिर: बुद्धि और विवेक का उपयोग करो लक्ष्मी साथ रहेगी। अपनी बुद्धि को सकारात्मक ऊर्जा की ओर केंद्रित करें, सोचने और समझने की शक्ति विकसित होगी। 
बड़े कान: सुनने की क्षमता बढ़ाओ, बोलने की शक्ति बढ़ेगी। बोलने से अधिक सुनने का संकल्प लें। इससे जानकारी तो बढ़ती है, साथ ही धैर्य भी बढ़ता है। 
छोटी आँख: दूरदर्शी बनों, भविष्य की सुनिश्चितता मिलेगी। किसी भी विषय को हर दृष्टिकोण से देखो, समझो और तब निर्णय लो। 
सूँड: स्थिति को भापने और समझने की कोशिश करो, समस्याओं का हल मिलेगा। निरंतर सक्रिय रहो, फल मिलेगा। 
बड़ा उदर (पेट): निंदा रस को पाचक रस में बदलो, अच्छा बुरा सब को उदर में समाओ, खुशहली मिलेगी। व्यर्थ में चिंता मत करो अच्छाई अपने आप शरीर में घुलेगी।
एक दंत: अपना कर्म करते रहो, कोई कार्य अधूरा मत छोड़ो, हर कार्य संपूर्ण करने में पूरी मेहनत करो, सुख समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी। 

 जय गणेश देवा!! 

एक -Naari

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