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शांत से विकराल होते पहाड़...

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शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

Old Days...Old Friends

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    पुराने दोस्त इत्र की तरह होते हैं जितने पुराने होते हैं उतने ज्यादा महकते हैं। उनके साथ बिताए पल तो वापिस नहीं आ सकते लेकिन उन पलों की महक जरूर ली जा सकती है इसीलिए तो... आज वहीं पुराने दिन,,मैं वही पुराना यार ढूँढता हूँ उम्र को थाम ले जो...वो बचपन वाला यार ढूँढता हूँ। प्यारी से मुस्कुराहट में,  उन कोमल सी गलबाहों में,  छोटे से नदी तालाबों में, बड़े चौक-चौबारों में,  घास की घाटी में  या ऊँची किसी अटारी में...  आज वही पुराने दिन,,मैं वही पुराना यार ढूँढता हूँ।  कुंडी खड़काते मोहल्लों में,  बेवजह भागते गलियों में,  दौड़ लगाते बंजर मैदानों में या...  गिरते संभलते उन शाखाओं में,,,  आज वही पुराने दिन,,मैं वही पुराना यार ढूँढता हूँ।  बे लगाम झूलों की पींगो में,  कागज की नौका-जहाजों में,  क्रिकेट के टूटे बल्लों में या...  गप्पों की हवाइयों में,,,  आज वही पुराने दिन,,मैं वही पुराना यार ढूँढता हूँ।  बेतुके वाले शेरों में,  फालतू भरी शायरी में,  भाड़े की रंगीन कॉमिक्सों में, साबू, च...

ल से लट्टू....बचपन का खिलौना

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ल से लट्टू....बचपन का खिलौना    कुछ याद आया! हां हां अपना बचपन का खिलौना, लट्टू। लकड़ी का बना अंडाकार आकार का, जिसके बीच में एक कील रहती थी और उस कील के चारों ओर एक सुतली लपेट कर झटके से खींचते थे और फिर ये लट्टू गोल गोल घूमने लगता था।      पता नहीं जय को कौन कौन सी धुन सवार हो जाती है। पिछले कई दिनों से लट्टू के पीछे पड़ा हुआ है।      जितनी बार हम घर से बाहर निकले उतनी बार "लट्टू लेकर आना" और जैसे ही घर पहुंचे "मेरा लट्टू लाए?" सुनने को मिलता है। हर बार हम यह कहकर टाल देते हैं कि अब ये किसी दुकान में नहीं मिलता है।     पता नहीं हम क्यों भूल जाते हैं कि आजकल बच्चे जितने जिद्दी हैं उतने सयाने भी इसलिए जय ने तुरंत गूगल के कान में कहा "ल से लट्टू" और गूगल ने भी उतनी ही तेजी से अनेकों लट्टू के चित्र दिखा दिए। बस फिर क्या था अब तो लट्टू लाना ही पड़ेगा।   वैसे जितना उत्साही जय है अपने लट्टू के लिए उतना ही उत्साह मुझे भी है लट्टू को देखने के लिए क्योंकि इसे मैंने अपने बचपन के बाद केवल किताब में ही देखा है। बचपन में मोहल्ले...

बचपन की खट्टी मीठी कैंडी...पोप्पिंस (Poppins)

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बचपन की खट्टी मीठी कैंडी...पोप्पिंस (Poppins) आ गई न अपने बचपन की याद। पोप्पिंस नाम ही ऐसा है जिसे सुनकर बचपन की इंद्रधनुषी फलों की गोलियां याद आ जाती है। इसके साथ टैग लाइन भी जुड़ी थी,,,'पारले पोप्पिंस... दूं क्या।' अब तो याद आ ही गया होगा।   इसबार जब मैं एक सुपरस्टोर में गई तो एक कोने में जाकर ठहर गई क्योंकि ऐसा लगा कि शायद मेरा बचपन भी वहीं कहीं कोने में छिपा हुआ है।     इस रंग बिरंगे बचपन से मिलकर कुछ समय के लिए मैं भूल गई कि मैं कहां हूं और उसे ऐसे समेटने लगी जैसे कि अब ये फिर से मुझे कभी नहीं मिल पाएगा।     अब अपनी इस हरकत पर मुझे थोड़ी शर्म भी आ रही है क्योंकि जिन लोगों ने मुझे देखा होगा उन्होंने मुझे पक्का भूखी भीखारन समझा होगा क्योंकि उन्हें मैं ऐसे समेट रही थी जैसे की भंडारे में हलवा इकट्ठा कर रही हूं कि थोड़ी ही देर में ये खतम हो जाएगा इसलिए जल्दी से ले लो। इसी सोच से मैंने एक नहीं दो नहीं बल्कि जितनी भी उस डिब्बे में बची थी सब अपनी गाड़ी में भर ली।   खैर, छोड़ो! किसी ने चाहे जैसा भी सोचा हो सच तो यह है कि बचपन तो हर किसी का निर...