प्रतिस्पर्धा की चुनौती या दबाव

Image
प्रतिस्पर्धा की चुनौती या दबाव    चूंकि अब कई परीक्षाओं का परिणाम आ रहा है तो बच्चों और अभिभावकों में हलचल होना स्वभाविक है। हाल ही में ऐसे ही एक परीक्षा जेईई (Joint Entrance Test/संयुक्त प्रवेश परीक्षा) जो देशभर में सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण इंजिनयरिंग परीक्षा है उसी का परिणाम घोषित हुआ है। इसी परीक्षा की एक खबर पढ़ी थी कि जेईई मेन में 56 बच्चों की 100 पर्सन्टाइल, है...कितने गर्व की बात है न। एक नहीं दो नहीं दस नहीं पूरे 56 बच्चों के अभिभावक फूले नहीं समा रहे होंगे।    56 बच्चों का एक साथ 100 परसेंटाइल लाना उनके परीक्षा में आये 100 अंक नहीं अपितु ये बताता है कि पूरी परीक्षा में बैठे सभी अभ्यार्थियों में से 56 बच्चे सबसे ऊपर हैं। इन 56 बच्चों का प्रदर्शन उन सभी से सौ गुना बेहतर है। अभी कहा जा सकता है कि हमारे देश का बच्चा लाखों में एक नहीं अपितु लाखों में सौ है।    किसी भी असमान्य उपलब्धि का समाज हमेशा से समर्थन करता है और ये सभी बच्चे बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं इसलिए सभी बधाई के पात्र हैं। परसेंटेज जहाँ अंक बताता है वही परसेंटाइल उसकी गुणवत्ता बताता है।

स्वदेशी खादी

स्वदेशी खादी
    नये नये कपड़े पहनने की चाह हमेशा से ही हर दिल में रहती है तभी तो चाहे कितने भी कपड़े हो लेकिन हमारे लिए हमेशा कम ही होते हैं। खासकर कि महिलाएं, जिनके पास घर में कपड़ों के ढ़ेरों विकल्प होते हैं लेकिन समय पर एक भी विकल्प नहीं भाता!! आज बाजार में रंग, फैब्रिक, डिजाइन सब तरह के विकल्प उपलब्ध हैं इसीलिए तो वस्त्र उद्योग आज चरम पर है। 
   2800 ईसा पूर्व से ही वस्त्रों के विकास की जो झलक सिंधू घाटी सभ्यता से मिली उसने यह सिद्ध कर दिया कि वस्त्र उद्योग भारत के प्राचीन उद्योगों में से एक है। धीरे धीरे समय बीतता गया और तकनीकी ज्ञान के साथ वस्त्र उद्योग भी आगे बढ़ता गया। 
  भले ही तकनीक और अपने प्रयोगों से तरह तरह के कपड़े बन रहे हैं लेकिन आज भी हाथ से बने हुए कपड़ों का अपना एक विशिष्ट स्थान है। जैसे कि खादी। खादी एक ऐसा स्वदेशी वस्त्र है जो हाथ से कते हुए सूत से बनाया जाता है और जो हमें भारतीयता से जोड़ता है। जिस समय भारत अपनी आजादी के लिए लड़ रहा था। उस समय खादी एक आंदोलन की तरह उभरा जो पूरे भारत में एकता की मिसाल की तरह फैल गया। महात्मा गाँधी जी ने देश को खादी के समूह में जोड़ा और इन समूहों को क्रांति से।  और इस तरह से एक चरखे के माध्यम से आत्मनिर्भरता का संदेश दिया। इसीलिए तो खादी केवल एक वस्त्र ही नहीं है अपितु देशप्रेम, सत्य, अहिंसा और आत्मनिर्भरता का एक भाव भी है। 
  अब इसका अर्थ केवल यह नहीं है कि खादी स्वतंत्रता संग्राम के दिनों का वस्त्र है तो यह केवल नेता लोगों के लिए बना है या फिर केवल सरकारी लोगों के लिए या फिर ये केवल किसी पुराने जमाने के लोगों के लिए है। खादी आज के समय के हिसाब से भी एकदम उत्तम वस्त्र है। अब यह केवल मोटा खद्दर नहीं है आज इसके तरह तरह के विकल्प भी बाजार में उपलब्ध हैं। अब खादी केवल सफेद रंग में ही नहीं अपितु सुंदर सुंदर रंग और डिजाइन के विकल्प में भी हमें मिलती है। साथ ही गाँधी जयंती 2 अक्टूबर पर जगह जगह खादी उत्सव या खादी मेले भी लगते हैं जहाँ से हम हाथ से बने हुए इन सुंदर खादी वस्त्रों को ले सकते हैं। महिलाओं को तो विशेषकर ये स्टॉल बहुत आकर्षित करते हैं क्योंकि इनमें हैंडलूम साड़ियों की भरमार होती है। यहाँ उनकी मनपसंद खादी कांचीवरम, बाटिक खादी सिल्क, खादी कॉटन सिल्क, कलमकारी खादी सिल्क आदि साड़ियों की विविधताएं मिलती हैं साथ ही पुरुषों के लिए भी कुर्ता, जैकेट, कोट आदि भी उपलब्ध रहते है और घर के उपयोग का समान भी। हालांकि खादी एक किफ़ायती वस्त्र है लेकिन आज के फैशन डिमांड और सभ्यता के अनूसार हाथ के बने वस्त्रों का मूल्य तो थोड़ा अधिक होगा ही। गाँधी आश्रम में तो वर्षभर उच्च श्रेणी के सूती, रेशम और ऊनी वस्त्र मिलते हैं तो 
इस 2 अक्टूबर, गाँधी जयंती और लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती पर उन्हें नमन करें और उनके मंत्र स्वदेशी अपनाओ का पाठ भी याद करें क्योंकि वे मानते थे कि देश की समृद्धि के लिए आत्म निर्भर बनना आवश्यक है।  इसलिए अपने जीवन में स्वदेशी खादी एवं स्वदेशी वस्तुओं को प्रथम स्थान दें। 

खादी की विशेषता:
1- खादी एक किफ़ायती, टिकाऊ और मजबूत कपड़ा है। 
2- खादी मौसम के अनुकूल होता है। सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडा। 
3- ये एक प्राकृतिक कपड़ा है तो त्वचा के लिए भी खादी उपयुक्त है। 
4- पर्यावरण के लिए भी उपयुक्त है खादी क्योंकि ये रासायनिक प्रक्रिया के बिना बनते हैं। 
5- खादी एक स्वदेशी कपड़ा है तो गर्व की भावना भी हमेशा रहती है। 
   

गांधी जी कहते थे कि “खादी के कपड़े पहनना न सिर्फ अपने देश के प्रति प्रेम और भक्ति-भाव दिखाना है बल्कि कुछ ऐसा पहनना भी है, जो भारतीयों की एकता दर्शाता है।”



एक -Naari




Comments

  1. खादी की महत्वता बताने के लिए और खादी के प्रति लगाव के लिए लेखिका का धन्यवाद गांधी जयंती के उपलक्ष में खादी का उल्लेख करके सच्ची श्रद्धांजलि दी है लेखिका को तहे दिल से धन्यवाद।

    ReplyDelete
  2. Interesting post...will buy a new khadi

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

उत्तराखंडी अनाज.....झंगोरा (Jhangora: Indian Barnyard Millet)

उत्तराखंड का मंडुआ/ कोदा/ क्वादु/ चुन

मेरे ब्रदर की दुल्हन (गढ़वाली विवाह के रीति रिवाज)