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Showing posts from February, 2022

थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग-2

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थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग- 2   पिछले लेख में हम हरिद्वार स्थित चंडी देवी के दर्शन करके आगे बढ़ रहे थे यानी कि उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल से अब कुमाऊँ मंडल की सीमाओं में प्रवेश कर रहे थे बता दें कि उत्तराखंड के इस एक मंडल को दूसरे से जोड़ने के लिए बीच में उत्तर प्रदेश की सीमाओं को भी छूना पड़ता है इसलिए आपको अपने आप बोली भाषा या भूगोल या वातावरण की विविधताओं का ज्ञान होता रहेगा।     कुमाऊँ में अल्मोडा, नैनीताल, रानीखेत, मुक्तेश्वर, काशीपुर, रुद्रपुर, पिथौरागढ, पंत नगर, हल्दवानी जैसे बहुत से प्रसिद्ध स्थान हैं लेकिन इस बार हम केवल नैनीताल नगर और नैनीताल जिले में स्थित बाबा नीम करौली के दर्शन करेंगे और साथ ही जिम कार्बेट की सफ़ारी का अनुभव लेंगे।   225 किलोमीटर का सफर हमें लगभग पांच से साढ़े पांच घंटों में पूरा करना था जिसमें दो बच्चों के साथ दो ब्रेक लेने ही थे। अब जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे बच्चे भी अपनी आपसी खींचतान में थोड़ा ढ़ीले पड़ रहे थे। इसलिए बच्चों की खींचतान से राहत मिलते ही कभी कभी मैं पुरानी यादों के सफर में भी घूम रही थी।     कुमाऊँ की मेरी ये तीसर

आखिर युद्ध क्यों?? Why War??

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युद्ध नहीं हमें शांति अवश्य चाहिए...We need peace not war.     थोड़े थोड़े अंतराल पर जो खबरें सुनने को मिलती हैं न उससे लगता है ये पूरी दुनिया फिर से अपनी अपनी वर्चस्व की लड़ाई लड़ने जा रही है। लगता है कि होड़ लग गई है देशों को अपने को सुप्रीम समझने की ओर दूसरों को समझाने की भी और वर्चस्व की इसी होड़ में आत्म रक्षा का वास्ता देकर युद्ध में कूद पड़ रहे हैं।      उन्हें लगता है कि वो भगवान हैं इसीलिए अपने को दुनिया का विध्वंसक और निर्माता दोनों समझ रहे हैं तभी तो पहले युद्ध करो, वहां विध्वंस करो और उसके बाद कब्जा करके वहां का विकास करो। ये किस प्रकार की सोच है भाई!! जब भला ही करना है तो पहले नाश क्यों!! हिंसा से आखिर किसका भला हुआ है जो अब होगा!     कट्टरपंथी सोच और साम्राज्यवाद ही देश को युद्ध की ओर धकेलता है और इससे देश का संरक्षण नहीं अपितु समाज और प्रकृति का ह्रास ही होता है। इस सोच से परे होना ही पड़ेगा तभी देश का कल्याण होगा नहीं तो समय समय पर यही सोच अपने ही विनाश का कारण भी बनेगी।    ये सही है कि युद्ध के बाद एक नई शक्ति का जन्म होता है लेकिन यह भी मानना

शिवरात्रि: शिव चिंतन...शिव साथ हैं।

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शिवरात्रि: शिव चिंतन...शिव साथ हैं।   पता नहीं जब भी शिव के लिए कुछ भी लिखने को होती हूं कुछ समझ ही नहीं आता। इतना गहरा है शिव का चिंतन की डूब ही जाती है और पता ही नहीं चलता कि क्या सोचूं क्योंकि उसके आगे सब शून्य हो जाता है। लेकिन इस शून्य में संतोष है और साथ ही विश्वास भी कि हम शिव के संरक्षण में हैं। उसी स्वयंभू शिव के जो निराकार हैं, आदियोगी हैं, अविनाशी हैं और कल्याणकारी हैं।     शिवरात्रि के समय शिव का पूजन बड़ा ही फलदाई होता है। यहां तक कि भगवान शिव का नाम लेने से ही कल्याण हो जाता है। भगवान शिव की छवि हमेशा से ही मन में ऐसे समाई है कि शिव नाम सुनने मात्र से ही लगता है कि सामने शिव ही हैं क्योंकि बचपन से ही घर में भगवान शिव का पूजन करते हुए देखा है और साथ ही शिव आरती भी। बहुत पहले से ही शिव पूजन में गाई जाने वाली आरती.... ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा   हो या   शीश गंग अर्धंग पार्वती, सदा विराजत कैलासी नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुर सुखरासी....    ये शब्द कानों में पड़ते ही विश्वास दिलाते है कि शिव साथ हैं औ

Valentine's Day

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वेलेंटाइन डे ...I love you vs अजी सुनते हो...          रोहित और निशा एक प्राइवेट कंपनी में साथ में काम करते हैं लेकिन रोहित निशा से सीनियर पद पर है। अपनी नौकरी के पहले दिन निशा बहुत घबराई हुई थी लेकिन सीनियर रोहित ने उसकी खूब मदद की। दोनों साथ काम करते हुए एक अच्छे दोस्त बन गए थे और अब तो रोहित निशा से प्यार भी करने लगा था।     दोनों साथ में लंच करते और ऑफिस के साथ साथ घर की समस्या भी साझा करते। शाम को छुट्टी होती तो घर भी साथ निकलते। एक दिन रोहित निश्चय करता है कि वो वेलेंटाइन डे पर निशा को अपने दिल की बात बता देगा।    इस वेलेंटाइन डे के दिन रोहित ने सोचा कि ऑफिस की छुट्टी के समय तसल्ली से कॉफी हाउस में बैठकर निशा को अपने दिल का हाल बयां करेगा लेकिन निशा को किसी काम से दिन में ही घर आना पड़ा।    रोहित को बहुत बुरा लगा कि आज निशा बिना कुछ कहे ही अकेले निकल गई लेकिन वेलेंटाइन डे के खास दिन अपनी बात कहने का मौका वो किसी हाल में गंवाना नहीं चाहता था। उसने तुरंत फोन करके अपनी बात बतानी चाही इसलिए निशा को फोन मिला दिया लेकिन दिल की बात कहने की हिम्मत न हुई और केवल

बसंत पंचमी: मां सरस्वती का दिन

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बसंत पंचमी: मां सरस्वती का दिन      हर त्योहार का अपना अलग रंग होता है इसलिए बसंत पंचमी का अपना पीला रंग। पीले वस्त्र, पीले फूल और पीला आहार, यही तो है बसंत पंचमी का त्योहार । सब कुछ पीला और सुनहरे रंग में रंगा हुआ होता है ताकि सब अपने अपने जीवन में चमकते रहें।      पिछले जो भी दिन थे जैसे भी दिन थे लेकिन आने वाले दिन हमेशा खुशहाली से बीते, यही तो इन पर्वों और उत्सव का संदेश होता है न। तभी तो हर मौसम के साथ साथ हम भारतीयों के पर्व भी चलते रहते हैं जिससे कि परिवर्तन चाहे कैसा भी हो लेकिन जीवन में ऊर्जा का संचरण बना रहे। बसंत पंचमी से जुड़ी धार्मिक मान्यता  बसंत पंचमी के लिए मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने सृष्टि का सृजन किया तो था किंतु वे संतुष्ट नहीं थे क्योंकि तब किसी भी प्रकार की ध्वनि नहीं थी केवल चारों ओर मौन व्याप्त था। तब आदि शक्ति देवी के तेज से माता सरस्वती का रूप सामने आया जिसकी वीणा से सृष्टि को ध्वनि का कौलाहल मिला। देवी सरस्वती जी को विद्या और बुद्धि की देवी के रूप में पूजा गया और इस दिन को ही हम मां सरस्वती का प्रकटोत्सव मानते हैं।  इसलिए आज के दिन मां