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शांत से विकराल होते पहाड़...

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शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

भगवान का सोना

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Short Story: भगवान का सोना      एक गांव में एक बहुत बड़े संत महात्मा पधारे। वे लोगों का दुख दूर करके उनका कल्याण करते थे। दूर दराज से लोग संत से मिलने आये और अपनी समस्या का निवारण पूछने लगे। उसी गाँव के सूरज और ललित भी संत से मिलने पहुंचे। उन्होंने संत से अपनी गरीबी के निवारण हेतु उपाय पूछा। संत ने उनकी समस्या जानकर उन्हें अगले दिन आने के लिए कहा।    अगले दिन संत ने सूरज को सात अलग अलग पोटलियाँ दी और कहा कि ये भगवान् का प्रसाद है। इसे तुम रात को पानी में भीगा देना और अगली सुबह भगवान् का नाम लेकर इन पोटलियों को खोलना। 3 महीने में ये सोना बन जायेगी और तुम्हारी दरिद्रता चली जायेगी। लेकिन हाँ, जब मैं अगली बार यहाँ आऊँ तो तुम दान स्वरूप इस भेंट का कुछ हिस्सा मुझे भी देना। अब तुम ईश्वर का नाम जपते रहना और अपने काम करते रहना। तुम्हारा कल्याण हो।   ठीक ऐसा ही उपाय संत ने ललित को भी बताया।  6 महीने बाद वह संत एक बार फिर से उस गांव में आये। सूरज और ललित भी एक बार फिर से उन संत महाराज जी के पास गए। सूरज ने सात अलग अलग प्रकार के अनाज औ...