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Showing posts with the label 15 अगस्त निबंध

शांत से विकराल होते पहाड़...

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शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

अहिंसा परमो धर्म:

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स्वतंत्रता दिवस:   अहिंसा परमो धर्मः     15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस मतलब कि देश का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पर्व। जो हमेशा हमें राष्ट्र प्रेम की खुशी का अनुभव कराता है। चाहे ये खुशी आसमान में उड़ती पतंगों में, हवा में लहराते गुब्बारों में, घर, गाड़ी या ऑफिस की मेज़ में या टीवी पर आने वाले किसी कार्यक्रम में दिखाई दे और साथ ही तिरंगे से सजी मिठाई में मिले। सभी में देश प्रेम का अंश अवश्य देखने को मिलेगा। जब इतना सब कुछ एक देश के लिए तो फिर एक देश के निवासियों में इतने मतभेद और नफरत क्यों?? यह कहा जा सकता है कि सबसे बड़ी जनसंख्या के साथ भिन्न भिन्न धर्म जाति, संप्रदाय, संस्कृति सभ्यता, आचार विचार के साथ रहते हुए तर्क तो होते ही हैं किंतु कुतर्क के साथ हिंसा क्यों?? अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को कष्ट देना उचित है क्या?? क्या नफरत और हिंसा के साथ देश का विकास संभव है??   जहाँ हमें, अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परं तपः । अहिंसा परमं सत्यं यतो धर्मः प्रवर्तते ॥ ( अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा परम तपस्या (तप) है, और अहिंसा परम सत्य है और जिसके द्व...