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Showing posts from April, 2022

थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग-2

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थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग- 2   पिछले लेख में हम हरिद्वार स्थित चंडी देवी के दर्शन करके आगे बढ़ रहे थे यानी कि उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल से अब कुमाऊँ मंडल की सीमाओं में प्रवेश कर रहे थे बता दें कि उत्तराखंड के इस एक मंडल को दूसरे से जोड़ने के लिए बीच में उत्तर प्रदेश की सीमाओं को भी छूना पड़ता है इसलिए आपको अपने आप बोली भाषा या भूगोल या वातावरण की विविधताओं का ज्ञान होता रहेगा।     कुमाऊँ में अल्मोडा, नैनीताल, रानीखेत, मुक्तेश्वर, काशीपुर, रुद्रपुर, पिथौरागढ, पंत नगर, हल्दवानी जैसे बहुत से प्रसिद्ध स्थान हैं लेकिन इस बार हम केवल नैनीताल नगर और नैनीताल जिले में स्थित बाबा नीम करौली के दर्शन करेंगे और साथ ही जिम कार्बेट की सफ़ारी का अनुभव लेंगे।   225 किलोमीटर का सफर हमें लगभग पांच से साढ़े पांच घंटों में पूरा करना था जिसमें दो बच्चों के साथ दो ब्रेक लेने ही थे। अब जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे बच्चे भी अपनी आपसी खींचतान में थोड़ा ढ़ीले पड़ रहे थे। इसलिए बच्चों की खींचतान से राहत मिलते ही कभी कभी मैं पुरानी यादों के सफर में भी घूम रही थी।     कुमाऊँ की मेरी ये तीसर

उत्तराखंड पर्यटन: चारधाम यात्री कृपया ध्यान दें...

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उत्तराखंड पर्यटन: चारधाम यात्री कृपया ध्यान दें...    गर्मियों में धूप के कारण घर से बाहर निकलने का बिलकुल भी मन नहीं होता लेकिन जब बात उत्तराखंड जाने की हो तो सोचना क्या क्योंकि यहां की मौसम, पेड़ पौधे, पहाड़, नदियां आपको उत्तराखंड की ओर आकर्षित करती हैं इसीलिए तो उत्तराखंड में पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है लेकिन सच बात तो यह है कि यह उत्तराखंड देवभूमि है जहां प्रकृति के साथ देव दर्शन भी होते हैं इसीलिए देश विदेश से लोग उत्तराखंड घूमने आ रहे हैं।    उत्तराखंड में यात्रा तो आप कभी भी कर सकते हैं लेकिन हिमालय के चार धाम यात्रा का समय निश्चित होता है। उत्तराखंड में चार धाम यात्रा, गंगोत्री, यमनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ की यात्रा एक निश्चित अंतराल के लिए ही खुलती है इसलिए चार धाम यात्रा के लिए आप उत्तराखंड में कभी भी नहीं अपितु विशेष समय पर ही जा सकते हैं। जब इन धाम के कपाट खुलेंगे तभी उत्तराखंड के इन पावन धामों की यात्रा की जा सकती है।    अक्षय तृतीया 3 मई से ही गंगोत्री और यमुनोत्री यात्रा आरंभ हो रही है। केदारनाथ जी के द्वार 6 मई और बद्रीनाथ जी के कपा

जंगल: बचा लो...मैं जल रहा हूं!

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जंगल: बचा लो...मैं जल रहा हूं!    इन दिनों हर कोई गर्मी से बेहाल है क्या लोग और क्या जानवर। यहां तक कि पक्षियों के लिए भी ये दिन कठिन हो रहे हैं। मैदानी क्षेत्र के लोगों को तो गर्मी और उमस के साथ लड़ाई लड़ने की आदत हो गई है लेकिन पहाड़ी क्षेत्र के जीव का क्या उन्हें गर्मी की आदत नहीं है क्योंकि गर्मियों में सूरज चाहे जितना भी तपा ले लेकिन शाम होते होते पहाड़ तो ठंडे हो ही जाते हैं। लेकिन तब क्या हाल हो जब पहाड़ ही जल रहा हो?? उस पहाड़ के जंगल जल रहे हो, वहां के औषधीय वनस्पति से लेकर जानवर तक जल रहे हों। पूरा का पूरा पारिस्थितिकी तंत्र संकट में हो!! उस पहाड़ी क्षेत्र का क्या जहां वन ही जीवन है और जब उस वन में ही आग लगी हो तो जीवन कहां बचा रह जायेगा!!      पिछले कुछ दिनों से बस ऐसी ही खबरें सुनकर डर लग रहा है क्योंकि हमारा जंगल जल रहा है। पिछले साल इसी माह के केवल पांच दिनों में ही जंगल की आग की 361 घटनाएं हो चुकी थी और इसमें लगभग 570 हेक्टेयर जंगल की भूमि का नुकसान हो चुका था। और इस साल 2022 में भी 20 अप्रैल तक 799 आग की घटनाएं सामने आ चुकी हैं जिसमें 1133 हेक्टेयर वन प्रभ

स्कूल का खुलना...चैन की सांस..Reopening of Schools

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स्कूल का खुलना...चैन की सांस स्कूल का पहला दिन   रात में घड़ी घड़ी नींद से जागना फिर मोबाइल में समय देखना और फिर दोबारा सो जाना। बस यही क्रम पूरी रात भर चलता रहा और जब सुबह उठी तो अलग ही उलझन हो रही थी। कभी यहां कभी वहां करते हुए घर के बस चक्कर ही लग रहे थे काम तो निपट ही नहीं रहा था। सब कुछ आधा अधूरा था, जो काम कुछ मिनटों का था पता नहीं किस हड़बड़ाहट में घंटा भर लग रहा था। आज कुछ खास था।   आज जय का पहला दिन था उसके स्कूल जाने का शायद इसीलिए मैं कुछ बावली सी हो रखी थी और शायद यही हाल उन सभी मां का भी हो जो पहली बार अपने बच्चे को स्कूल भेज रही हो और उनका भी जो पूरे दो साल के बाद अपने बच्चों को स्कूल के हवाले कर रही हो क्योंकि जितने बच्चे अपने स्कूल जाने में उत्सुक थे उतने ही उत्सुक उनके अभिभावक भी थे। वैसे जिया के समय भी ऐसा ही उत्साह था बस शंकाएं नहीं थी लेकिन जय के साथ उत्साह और शंका दोनों थी क्योंकि कभी उसको अकेला नहीं छोड़ा। अगर जय थोड़ी देर भी शांत रहता है तो लगता है कि ये जरूर कुछ उटपटांग ही कर रहा होगा। और ऐसा ही अन्य मां भी सोच रही होंगी जिनके बच्चे अधिक नटखट होंगे

रसोई का वित्तीय प्रबंधन,, उड़द दाल की वड़ी Kitchen Finance Management

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हिंदू नव वर्ष में रसोई का वित्तीय प्रबंधन...उड़द दाल की वड़ीयां Kitchen finance management...Urad Daal Wadi    अप्रैल से हिंदू नववर्ष और चैत्र नवरात्र का आरंभ हो गया है साथ ही नए वित्त वर्ष का भी आरंभ है। साल भर में कितना कमाया कितना खर्च किया इसका लेखा जोखा तो होगा ही साथ ही नई वित्तीय चुनौतियों (financial challenge) के लिए भी खुद को तैयार रखना पड़ेगा। एक आम महिला का तो इन चुनौतियों के लिए हमेशा तैयार रहती है क्योंकि वो हर एक दिन अपनी रसोई के बजट से जूझती रहती है।    इसीलिए कितने प्रयोग तो अपनी रसोई से ही कर डालती हैं। अब जैसे अभी की बात ही ले लो होली भी तो मार्च में आती है और इस समय में घर में चिप्स, पापड़, कचरी या नमकीन बनाने का चलन है हालांकि अब थोड़ा कम भी हुआ है लेकिन अभी भी बहुत सी महिलाएं इन सभी को खूब बनाती हैं और आने वाले 3 से 4 महीने तक बच्चों और मेहमान को खूब स्नैक्स की तरह परोसती हैं। ऐसा लगता है कि महिलाएं नए वित्तीय वर्ष की चुनौती से निपटने के लिए तैयारियां आरंभ कर रही हैं।  महंगाई में बचत का स्वाद, घर में करें तैयारी ....    और इसी कड़ी में आती ह