short story: Rakhi Special (A thread of love and care)

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राखी: धागा प्रेम का...(लघु कथा) भाई बहन का प्रेम... सुनो जी, राखी आई है आपकी दीदी की। लगता है इस बार भी मीनू दीदी नहीं आ रही है!! कुछ जरूरी काम आ गया होगा दीदी का। हां,,,पिछले दो सालों से तो उनका काम ही ख़त्म नहीं हो पा रहा। दीदी का सही है बस 100 रूपए की राखी भाई को भेजो और हो गया रक्षा बंधन। न आने का खर्चा और न ही फल मिठाई की सिरदर्दी। (शशि ने मुंह सिकोड़ाते हुए केशव से कहा) ओह हो तुम भी न, क्या बेकार की बातें सोचती रहती हो। रिश्तों को पैसों से तोला जाता है क्या?? मैं कोई तोल नहीं रही। मैं तो बस सोच रही हूँ कि दीदी इतना दूर रहती है। वहां से यहाँ आने में बहुत खर्चा पानी तो लगता ही है और ऊपर से सफर कि तकलीफ अलग।  इसलिए शायद नहीं आती होंगी या फिर मुझ से ही कुछ नाराजगी होगी। तभी तो जब से हमारी शादी हुई है मीनू दीदी का काम इतना बढ़ गया है कि अपने मायके की सुध लेना भी भूल जाती है। पता तो है तुम्हें कि दीदी का घर परिवार कितना बड़ा है और जीजा जी का व्यापार भी काफी फैला हुआ है। आ गया होगा कोई काम इसलिए राखी भेज दी। इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। राखी ही तो है।  केशव, ब...

मायके का एक्स्ट्रा थैला

मायके का एक्स्ट्रा थैला
  ऐसा मेरे साथ अक्सर होता है कि जब भी मायके जाओ तो एक बैग और आओ तो दुगुने से तिगुने बैग। ये हाल तब है जब कि मायके की दूरी घंटे भर की है। भले ही मायके कुछ घंटे के लिए जाना हो लेकिन साथ में एक झोला वापसी में न बंधे ऐसा मेरे साथ शायद ही कभी हुआ हो।  
   अपनी प्रतिदिन की व्यस्त दिनचर्या से इतर मायके में पूरा दिन कहाँ निकल गया पता ही नहीं चलता। पता तब ही चलता है जब अगले दिन या अगले पल वापसी होती है वो भी एक "एक्स्ट्रा थैले" के साथ। सच में शगुन के नाम पर ये थैले, पैकेट
या पुड़िया के रूप में ये अनुपम भेंट 'एक्स्ट्रा' नहीं अपनी खास सखी लगती है। भले ही उनमें कुछ भी हो। 
  मुझे लगता है कि ये मेरा मायके से मोह होगा या फिर माँ बाबू जी का प्रेम लेकिन हर छोटी बड़ी चीजों का जो मुझे या मेरे परिवार को पसंद हो उनका उन झोलों में साथ आना तय हो जाता है। ये फल सब्जी मिठाई भाजी या फिर कुछ भी समान जो मायके से साथ आता है उसे अन्य चाहे कोई लालच समझे या कुछ और लेकिन बेटियों के लिए ये छोटे बड़े झोले खुशियों और प्रेम के बड़े बड़े पिटारे होते हैं जो मन में अथाह संतुष्टि देते हैं और साथ ही एक उम्मीद कि चाहे स्थिति परिस्थिति कैसी भी हो बेटियों के लिए मायके के द्वार हमेशा खुले हैं। 
  सच मानों तो इनमें चाहे महंगी साड़ियां हो या एक छोटा रुमाल संतुष्टि की ओढ़नी लगती है और इनमें स्वादिष्ट मिठाईयाँ हों या मुट्ठी भर गुड़ चीनी सभी की मिठास अव्वल दर्जे की होती हैं वैसे ही मौसमी फल व सब्जी कद्दू, तोरी, बैंगन, हरी सब्जी सब बाजार में उपलब्ध होती हैं लेकिन मायके से आई फल सब्जियों का स्वाद उनसे बेहतर होगा। 
      (pic source: google) 

     ये बड़ी स्वाभाविक सी प्रक्रिया है कि मायके में जाकर हर बेटी का मन हल्का हो जाता है और वापसी में मां बाबू जी की चिंता से भारी। तभी मायके वाले सोचते होंगे कि तू यहाँ से चिंता नहीं प्रेम और आशीर्वाद लेकर जा। और सच में उन थैलों, पैकेटों या पुड़ियाओं में कुछ भी हो लेकिन उनमें बंधा माँ बाबू जी, भाई भाभियों और बहनों का स्नेह व प्रेम हमेशा रहता है। जिन्हें भला कौन छोड़ना चाहेगा!! 
एक -Naari

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