International Women's Day

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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस International Women's Day  सुन्दर नहीं सशक्त नारी  "चूड़ी, बिंदी, लाली, हार-श्रृंगार यही तो रूप है एक नारी का। इस श्रृंगार के साथ ही जिसकी सूरत चमकती हो और जो  गोरी उजली भी हो वही तो एक सुन्दर नारी है।"  कुछ ऐसा ही एक नारी के विषय में सोचा और समझा जाता है। समाज ने हमेशा से उसके रूप और रंग से उसे जाना है और उसी के अनुसार ही उसकी सुंदरता के मानक भी तय कर दिये हैं। जबकि आप कैसे दिखाई देते हैं  से आवश्यक है कि आप कैसे है!! ये अवश्य है कि श्रृंगार तो नारी के लिए ही बने हैं जो उसे सुन्दर दिखाते है लेकिन असल में नारी की सुंदरता उसके बाहरी श्रृंगार से कहीं अधिक उसके मन से होती है और हर एक नारी मन से सुन्दर होती है।  वही मन जो बचपन में निर्मल और चंचल होता है, यौवन में भावुक और उसके बाद सुकोमल भावनाओं का सागर बन जाता है।  इसी नारी में सौम्यता के गुणों के साथ साथ शक्ति का समावेश हो जाए तो तब वह केवल सुन्दर नहीं, एक सशक्त नारी भी है और इस नारी की शक्ति है ज्ञान। इसलिए श्रृंगार नहीं अपितु ज्ञान की शक्ति एक महिला को विशेष बनाती है।   ज्...

मायके का एक्स्ट्रा थैला

मायके का एक्स्ट्रा थैला
  ऐसा मेरे साथ अक्सर होता है कि जब भी मायके जाओ तो एक बैग और आओ तो दुगुने से तिगुने बैग। ये हाल तब है जब कि मायके की दूरी घंटे भर की है। भले ही मायके कुछ घंटे के लिए जाना हो लेकिन साथ में एक झोला वापसी में न बंधे ऐसा मेरे साथ शायद ही कभी हुआ हो।  
   अपनी प्रतिदिन की व्यस्त दिनचर्या से इतर मायके में पूरा दिन कहाँ निकल गया पता ही नहीं चलता। पता तब ही चलता है जब अगले दिन या अगले पल वापसी होती है वो भी एक "एक्स्ट्रा थैले" के साथ। सच में शगुन के नाम पर ये थैले, पैकेट
या पुड़िया के रूप में ये अनुपम भेंट 'एक्स्ट्रा' नहीं अपनी खास सखी लगती है। भले ही उनमें कुछ भी हो। 
  मुझे लगता है कि ये मेरा मायके से मोह होगा या फिर माँ बाबू जी का प्रेम लेकिन हर छोटी बड़ी चीजों का जो मुझे या मेरे परिवार को पसंद हो उनका उन झोलों में साथ आना तय हो जाता है। ये फल सब्जी मिठाई भाजी या फिर कुछ भी समान जो मायके से साथ आता है उसे अन्य चाहे कोई लालच समझे या कुछ और लेकिन बेटियों के लिए ये छोटे बड़े झोले खुशियों और प्रेम के बड़े बड़े पिटारे होते हैं जो मन में अथाह संतुष्टि देते हैं और साथ ही एक उम्मीद कि चाहे स्थिति परिस्थिति कैसी भी हो बेटियों के लिए मायके के द्वार हमेशा खुले हैं। 
  सच मानों तो इनमें चाहे महंगी साड़ियां हो या एक छोटा रुमाल संतुष्टि की ओढ़नी लगती है और इनमें स्वादिष्ट मिठाईयाँ हों या मुट्ठी भर गुड़ चीनी सभी की मिठास अव्वल दर्जे की होती हैं वैसे ही मौसमी फल व सब्जी कद्दू, तोरी, बैंगन, हरी सब्जी सब बाजार में उपलब्ध होती हैं लेकिन मायके से आई फल सब्जियों का स्वाद उनसे बेहतर होगा। 
      (pic source: google) 

     ये बड़ी स्वाभाविक सी प्रक्रिया है कि मायके में जाकर हर बेटी का मन हल्का हो जाता है और वापसी में मां बाबू जी की चिंता से भारी। तभी मायके वाले सोचते होंगे कि तू यहाँ से चिंता नहीं प्रेम और आशीर्वाद लेकर जा। और सच में उन थैलों, पैकेटों या पुड़ियाओं में कुछ भी हो लेकिन उनमें बंधा माँ बाबू जी, भाई भाभियों और बहनों का स्नेह व प्रेम हमेशा रहता है। जिन्हें भला कौन छोड़ना चाहेगा!! 
एक -Naari

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