प्रतिस्पर्धा की चुनौती या दबाव

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प्रतिस्पर्धा की चुनौती या दबाव    चूंकि अब कई परीक्षाओं का परिणाम आ रहा है तो बच्चों और अभिभावकों में हलचल होना स्वभाविक है। हाल ही में ऐसे ही एक परीक्षा जेईई (Joint Entrance Test/संयुक्त प्रवेश परीक्षा) जो देशभर में सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण इंजिनयरिंग परीक्षा है उसी का परिणाम घोषित हुआ है। इसी परीक्षा की एक खबर पढ़ी थी कि जेईई मेन में 56 बच्चों की 100 पर्सन्टाइल, है...कितने गर्व की बात है न। एक नहीं दो नहीं दस नहीं पूरे 56 बच्चों के अभिभावक फूले नहीं समा रहे होंगे।    56 बच्चों का एक साथ 100 परसेंटाइल लाना उनके परीक्षा में आये 100 अंक नहीं अपितु ये बताता है कि पूरी परीक्षा में बैठे सभी अभ्यार्थियों में से 56 बच्चे सबसे ऊपर हैं। इन 56 बच्चों का प्रदर्शन उन सभी से सौ गुना बेहतर है। अभी कहा जा सकता है कि हमारे देश का बच्चा लाखों में एक नहीं अपितु लाखों में सौ है।    किसी भी असमान्य उपलब्धि का समाज हमेशा से समर्थन करता है और ये सभी बच्चे बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं इसलिए सभी बधाई के पात्र हैं। परसेंटेज जहाँ अंक बताता है वही परसेंटाइल उसकी गुणवत्ता बताता है।

सर्दी...शादी...स्वेटर..

   सर्दी...शादी...स्वेटर.. 
   शादियों का मौसम है और वो भी सर्दियों में। दुल्हा, दुल्हन बरात, मेहंदी, हल्दी, फेरे, विदाई, दावत, ढेर सारी जगमगाती रोशनी और उन रोशनियों में चमकते चेहरे। 
  अब दुल्हा दुल्हन के चेहरे की चमक का तो कोई जवाब ही नहीं है। ये उनकी खुशियों की प्राकृतिक चमक है जो उनके चेहरों से अधिक उनकी आँखों में होती है। साथ ही परिवारजन और शुभचिंतकों की खुशियों में भी कोई कमी नहीं होती खासकर कि महिलाओं और युवतियों की जिनकी खुशियों में इतनी गर्माहट होती है कि चाहे कितनी भी ठंड हो बिना स्वेटर या किसी भी गर्म कपड़ों के हर शादी चल जाती है।

    जहाँ आदमी और लड़के लोग सूट, स्वेटर, जैकेट, शाल पहने उनके इस साहस को देखकर हैरान होते हैं तो वहीं वृद्ध माताएं तरह तरह के ज्ञान देकर उन्हें घुडाकानें से भी नहीं चूकती। लेकिन क्या करें शादी की चकाचौंध की जो गर्माहट होती है वो बहुत ही नर्म और मखमली होती है  जिसके बीच सच में ठंडक गायब हो जाती है जिसे केवल महिलाएं ही समझ सकती है। और अगर आप उन्हें समझना चाहते हैं तो उसके लिए आपके पास भी उतना उत्साह होना चाहिए जितना कि एक शादी में जाने के लिए लहंगे, साड़ी, आभूषण, मेकअप और बालों को सजाते समय महिलाओं के पास होता है। 

   शादी की रस्मों और उनकी खुशियों के बीच भारी भरकम लहंगे, साड़ी, मैक अप का उत्साह किसी भी ठंड को काट देता है। इसीलिए अमूमन सामान्य ठंडियों के दिनों में स्वेटर, शाल, टोपी, मोजे पहनने वाली महिलाएं भी अपने उत्साह से शादी की रौनक में इन गर्म कपड़ों से परहेज कर लेती हैं और अपने पहनावे या साज सज्जा से किसी भी प्रकार का कोई समझौता नहीं करतीं। 
    वैसे ठंड या गर्म का आभास हमें दिमाग के द्वारा भेजे गए संकेतों से होता है। जब बाहर के वातावरण और शरीर के तापमान में अंतर आता है तब हमें ठंड या गर्मी का आभास होने लगता है जैसे कि अगर शरीर का तापमान बाहर के तापमान से अधिक होता है तो हमें ठंडा लगती है तब शरीर स्वयं अपनी ऊर्जा बनाकर शरीर का तापमान संतुलित करता है और ऐसे ही जब शरीर का तापमान बाहर के तापमान से अधिक होता है तो हमें गर्मी लगती है। अब ये तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण है लेकिन असल में शादी के ये दिन खुशियों के दिन होते हैं जो महिलाओं को ऊर्जा से भर देते हैं और उनकी यही ऊर्जा उन्हें ठंड से बचाने का काम करती है। उनकी ऊर्जा खाने पीने से लेकर सजने संवरने तक खूब फलती फूलती हैं। इन उत्सवों के प्रति उनका जोश और उत्साह उनकी ऊर्जा को और बढ़ा देता है इसीलिए ठंड में भी हम महिलाओं और युवतियों को बिना ऊनी कपड़ों के भी देख सकते हैं। 
    दूसरा कारण ये भी है कि विवाह या ऐसे उत्सवों में खूब लोग इकट्ठा होते हैं, सभी नाते रिश्तेदारों के साथ साथ शुभचिंतकों का भी आना होता है। सभी उत्साह की उष्मा लिए मिलते हैं इसलिए भी ज्यादा लोगों के बीच सर्दी से बचाव हो जाता है और फिर जब विवाह के इन उत्सवों  में खूब नाच गाना होता है तो शरीर की ऊर्जा अपने आप गर्माहट बनाए रखती है। तभी तो वरमाला के बाद जब धीरे धीरे लोग अपने गंतव्य को जाने लगते हैं और नाच गाना भी कम हो जाता है तो सुंदर चमकदार कपड़ों पर स्वेटर या शाल की ओढ़नी भी आ जाती है और साथ ही कठिन तप को पूर्ण करने की संतुष्टि भी। 
एक -Naari
    

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