होली के रंग भरे अंदाज... हैप्पी होली 2021(Happy Holi 2021)
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होली के रंग भरे अंदाज... हैप्पी होली 2021
त्योहार मतलब खुशी, उमंग, उत्साह, प्रेम, सदभाव, मेल जोल, गीत-संगीत और तरह तरह के पकवान। त्योहार के ये आशय सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु दुनियाभर में भी यहीं है लेकिन जो रौनक और रंगत भारत में है वो शायद ही दुनिया के अन्य देशों में मिले। यहाँ पर जितनी भाषा बोली संस्कृतियां है उतने ही त्यौहार और उत्सव हैं। भारत देश में तो जैसे ऋतुयें बदलती हैं वैसे ही त्यौहार आते जाते हैं। सूर्य और चंद्र की दशाओं और दिशाओं में उत्सव, कहीं फसल बुआई पर तो कहीं फसल कटाई पर उत्सव, कभी प्रकृति के बसंत पर तो कभी सावन पर उत्सव, कभी ईश्वर के जन्म का उत्सव तो कभी रावण जैसे राक्षस के वध का उत्सव,कभी भाई बहन के प्रेम का उत्सव तो कभी पति के सुहाग का उत्सव और कभी देश की आज़ादी और कानून का पर्व । यहाँ तक कि ईश्वर की भक्ति और व्रत भी यहाँ उत्सव का प्रतीक होते हैं। मुझे तो लगता है कि हिंदुस्तान का नाम 'उत्सवस्थान' रख लेना चाहिए। यहाँ तो लगता है कि बस कोई मौका आना चाहिए और उत्सव त्यौहार के रूप में प्रकट हो जाता है।
जीवन में महत्व
खैर! उत्सव का अर्थ ही खुशी है और ये उत्सव हमारे जीवन में नई प्रेरणा और ऊर्जा भी तो लाते हैं शायद यही सोच कर हमारे पूर्वजों ने त्यौहार नामक संस्कृति की नींव डाली ताकि हम अपने आने वाले समय और कार्य करने के लिए भरपूर ऊर्जा से भर जाएं। इन त्योहारों का आना एक प्रकार का सुखरस ही तो है जहाँ हम नई उमंग, प्रेरणा और आशा से भर जाते हैं। ऐसा लगता है कि जैसे ये त्यौहार हमें अपने दैनिक क्रिया कलापों से अलग एक 'ब्रेक' देते हैं जिससे हम अपने परिवार और शुभचिंतकों के साथ समय बिताएं।
वर्ष का प्रारंभ ही लोहरी और मकर संक्रांति के पर्व से हो गया था फिर फरवरी माह में बसंत की ब्यार के साथ बसंत पंचमी का त्यौहार आया उसके बाद महा शिवरात्रि मनाई और अब जो त्यौहार आ रहा है वो है होली। होली बसंत ऋतु में ही आता है जब जाड़ों की कड़क ठंडी अलविदा कह रही होती है और साथ ही साथ मौसम भी सुहावना हो रहा होता है, ये एक प्रकार से मौसम परिवर्तन का सूचक है। होली पूरे भारत में मनाया जाने वाला एक लोकप्रिय त्यौहार है। इसे असम में डोल जात्रा तो केरल जैसे दक्षिणी राज्य में मंजुल कुली और उक्कुली के नाम से मनाते है वैसे होली प्रमुख रूप से उत्तर भारत का त्यौहार माना जाता है।
विश्व प्रसिद्ध कृष्ण की होली
अब अगर अपनी बात करूं तो, मैं हूँ तो उत्तराखंडी इसलिए उत्तराखंड की होली की बात करूँगी लेकिन मेरा जन्म हरियाणा के फरीदाबाद में हुआ और ससुसाल उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में मिला इसीलिए कभी कभी अपने आप शहरों की तुलना भी हो जाती है लेकिन मुझे तो बस यही जान पड़ता है कि होली मनाने की जगह अलग अलग हो सकती है, लेकिन इसका उद्देश्य सिर्फ प्रकृति प्रेम और मानव प्रेम है।
कुमाऊं की बैठकी होली
उत्तराखंड की होली भी कम रंगीली नहीं है। विशेषकर कुमाऊं की बैठकी होली सामूहिक पर्व की द्योतक है। कहते हैं कि उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ से बैठकी होली मनाई जाने लगी। बैठकी होली में समूह में बैठकर होली गायन किया जाता है। कुमाऊं क्षेत्र में तो पूस (लगभग मध्य दिसंबर) के महीने के साथ ही होली की तैयारियां आरंभ हो जाती है। बसंत पंचमी के साथ से ही मौसम में संगीत घुलना आरंभ हो जाता है। ढोलक, हारमोनियम, चिमटा, हुड़का, मंजीरे सबकी थाप किसी न किसी के घर से सुनाई दे ही जाती है। बैठकी होली में होल्यार (मंझे हुए गायक) अपनी अपनी टोली में होली गीत का खूब गायन करते हैं।
कहीं महिलाओं की टोली सजती है जो पुरुषों की गैरहाजिरी में तरह तरह के स्वांग रचती हैं और लोकगीत गाते हुए बैठकी होली मनाती हैं तो कहीं पुरुष समाज अवधी ब्रज के गीत तो कभी सूर कबीर के दोहे गाकर अपना उत्साह बनाते हैं। गीत का आरंभ भले ही भक्ति रस से होता लेकिन होली आते आते श्रंगार रस तो ले ही लेता है। कभी किसी के घर तो कभी किसी मोहल्ले में यही कार्यक्रम होली तक बना रहता है। और हां! चटकदार आलू गुटका, उस पर तीखी हरी चटनी और साथ में मीठी चाय का स्वाद भी तो इस बैठकी होली में गजब का स्वाद वाला रंगत भर देता है और इसे मैं यूं ही नहीं कह रही हूं, अपने अनुभव साझा कर रही हूं क्योंकि इस बैठकी होली का आनंद मैंने स्वयं पिछले साल ही लिया जब हमारे पड़ोस में श्री मति भावना पंत जी ने अपनी बैठकी होली में हमें आमंत्रित किया। यहां सब कुछ वैसी ही मस्ती थी जैसे मैंने लिखी है।
चलचित्र सौजन्य: भावना पंतगढ़वाली होली
गढ़वाल की होली का इतिहास उतना समृद्ध नहीं है जितना कुमाऊं का। लेकिन हां, होली का विधिवत पूजन और लोगों का उत्साह भी कम रोचक नहीं है। मेरे पिता जी (श्री बृज मोहन बंदूनी) बताते हैं कि पहले ग्रामीण अंचल में फाल्गुन की शुक्ल सप्तमी को पैंय्या की (मेलू) फूलों वाली डाली को गांव के सामुदायिक आंगन या बाहर किसी मैदान में रोपा जाता है जिसे होलिका का रूप मानते हैं और साथ ही साथ एक सफेद झंडे को भी लाते हैं जिसे प्रहलाद का स्वरूप मानते हैं। इन सभी को पंडित द्वारा प्राण प्रतिष्ठा करके डाली की पूजा की जाती है, और कुछ दिनों तक झंडे के चारों ओर वहीं से होली के नृत्य और गीत आरंभ किए जाते थे।
दर्शन दीजो माई अम्बे-झुलसी रहो जी.
तील को तेल कपास की बाती
जगमग जोत जले दिन राती-झुलसी रहो जी""
मेरे बचपन (फरीदाबाद) की होली
बरेली की होली
मैंने बरेली की होली के बारे में सुना तो है लेकिन वहां जाकर कभी खेली नहीं हैं और वहां का हाल सुनकर कभी हिम्मत भी नहीं हुई। कहते हैं कि वहां गुलाल या सुखा रंग नहीं लगता वहां तो बैंगनी, नीला, हरा, काला जैसा पक्का रंग लगता है, वहां कीचड़, गोबर जो मिलेगा वो पोत दिया जाएगा। होली में सब एक रंग में दिखेंगे और किसी को कोई पहचान नहीं पाएगा, सिर्फ दांतों की चमक से ही अंदाजा लगाना होगा की सामने वाला कौन है। मेरे ससुराली बताते हैं कि हफ्तों हफ्तों तक होली का रंग नहीं जाता है, अब ऐसी होली खेलनें की हिम्मत क्या आपमें है? मेरी तो कतई नहीं।। हां, एक अच्छी बात तो है कि होली के कई दिन बाद तक होली मिलन का कार्यक्रम चलता रहता है जिससे कि आपस में मेलजोल बना रहे।
वैसे, ऐसी होली से मुझे अपने कॉलेज के दिन भी याद आ गए। एक बार ऋषिकेश में हम बच्चों ने अपने घर के सामने खाली जगह पर एक गढ्ढा खोदा था और पूरी रात भर पानी का पाइप खुला छोड़ दिया सुबह तक पानी बिलकुल लबालब भर गया, बस फिर क्या! जो भी आए उसे हम लोग गढ्ढे में गिराए। और जैसे जैसे लोग गढ्ढे में गिरें वैसे वैसे गढ्ढा और विशाल होता जाए, वो गढ्ढा तो जैसे एक फिसलपट्टी जैसा बन गया था। बच्चें, युवा, व्यस्क, बूढ़े सभी ने 'natural mud bath' का खूब आनंद लिया।
लेकिन समय के साथ साथ अब होली मनाने का सामाजिक दायरा थोड़ा कम भी हो चला है। रंगत और उत्साह तो वैसा ही है लेकिन शायद समय की कमी या आधुनिकता और व्यस्तता के चलते अब लोग सीमित तरीके से अपने परिवार में ही होली मनाते हैं। महानगरों में तो कई जगह होली सिर्फ टीवी, रेडियो, मोबाइल, इंटरनेट तक ही सीमित हो चुकी है। लेकिन कुछेक संस्थाएं या मौहल्ला समितियां भी अब सामुहिक होली खेल रहे हैं जो फूहड़ता से परे हैं और यह एक प्रकार से अपनी समृद्ध संस्कृति को बचाने का एक अच्छा प्रयास भी है।
मेरी होली की तैयारी
हर बार की तरह इस बार की होली के लिए मैंने भी घर में थोड़ी तैयारी की है जिसे परिवार के सभी सदस्यों ने मिलकर किया है और वो है आलू के चिप्स और पापड़ बनाना, साथ ही चावल की कचरी भी बनाई है। कई बार तो लगता है कि सौ पचास रुपए के लिए इतनी मेहनत क्यों की जाए लेकिन अगले ही पल सोचती हूं कि ये सिर्फ पैसों के लिए नहीं है ये भी एक प्रकार के संस्कार ही हैं जो हम अपने बच्चों को समझा रहे हैं कि पर्वों में घर की रौनक कैसे बनती है, साफ सफाई कितनी जरूरी है, मिलकर कार्य कैसे पूरा होता है, छोटे से छोटा सहयोग भी कितना बड़ा काम करता है और अपने हाथ की मेहनत कितनी स्वादिष्ट होती है और सबसे महत्वपूर्ण तो उनके लिए भविष्य में यही सब स्मृतियां होंगी जैसे हमारी थी।
वैसे इंटरनेट पर तरह तरह के पकवान और झटपट चिप्स बनाने की सारी जानकारी है लेकिन फिर भी अगर आप थोड़ी सी धूप और थोड़ी सी मेहनत ले आएं तो आलू चिप्स तो बन ही जायेंगे।
आपके लिए
आपके साथ इसे बनाने की विधि भी साझा कर रही हूं, क्योंकि मुझे इससे सरल और कुछ भी बनाना नहीं आता। अपनी सुविधा और "test & trail" के चलते सिर्फ एक या आधा किलो आलू छील कर धो दें। अगर आपके पास चिप्स बनाने की मशीन है तो चलेगा नहीं तो जैसे आलू के पकौड़े बनाते समय पतले पतले आलू काटते हैं वैसे काट लो। (कई बार कद्दूकस करने वाले बर्तन में भी चिप्स बनाने का धार दिया होता है।) एक भगौने में पानी उबालने रखें उसमें थोड़ा नमक, थोड़ी हींग डालें या फिर सादा ही रहने दे, पानी उबल जाए तो आलू के चिप्स डालकर पांच या सात मिनट तक पकने दें, फिर आलुओं को निथार लें। धूप में साफ चुनरी या चादर या कोई पॉलीथीन (पॉलिथीन को न ही लें) बिछाकर उसमें आलु के चिप्स को अलग अलग कर के फैला दे, दो चार दिन की कड़क धूप लगाएं और शाम की चाय के साथ "homemade aloo chips" तैयार है।
इससे ज्यादा सरल और कुरकुरी तो चावल की कचरी भी है। सुविधानुसार चावल धो के भीगा दो, कुछ घंटों बाद कुकर में उतना पानी डालो जिससे कि चावल पूरा गीला पके। उसी कुकर में थोड़ा तेल, हींग, स्वादानुसार नमक भी डाल दो, खूब पकाकर रबड़ी जैसा बनाओ, किसी कोन की सहायता से जलेबी जैसा या आड़ा तिरछा जैसा भी बने, साफ चादर पर फैलाकर खूब धूप लगाओ और कचरी तैयार। गर्म तेल में तलें और मजे लें।
(होली एक ऐसा सामाजिक त्योहार होता है, जो लोगों को आपस में जोड़ता है, सहयोग की भावना लाता है, क्षमा करने का गुण देता हैं, सभी को एक रंग में लाता है, प्रकृति से प्रेम सीखता है, आपसी मेलजोल और भाईचारा बढ़ाता है। आशा करती हूं, होली का यह लेख अच्छा लगा होगा।)
होली की शुभकामनाएं।।
एक - Naari
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English Translation
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Festivals mean happiness, joy, excitement, love, harmony, song and music, and a variety of dishes. These intentions of the festival are not only in India but also around the world, but the beauty and color that is in India can hardly be found in other countries of the world. There are as many festivals and festivals as there are spoken languages and cultures. In India, festivals keep coming as the season's change. Celebrations in the conditions and directions of the Sun and the Moon, sometimes kind of harvest festival, a spring festival of nature, sometimes a celebration of the birth of God, sometimes a celebration of the slaying of a demon-like Ravana, Celebration of sibling's love and sometimes a celebration of the husband's happiness like Karwa Chauth and sometimes a festival of freedom and law of the country. Even the devotion and fast of God are a symbol of celebration here. I think that the name of Hindustan should be named 'Utsavasthan' (place of the festival). Here it seems that just a chance should come and the simple occasion becomes a festival.
Well! The meaning of the celebration is happiness and these festivals also bring new inspiration and energy to our life. Perhaps by thinking this, our ancestors laid the foundation of culture called festival so that we are filled with energy to do our work. The coming of these festivals is a kind of happiness where we are filled with new zeal, inspiration, and hope. It seems as if these festivals give us a 'break' apart from our daily activities so that we can spend time with our family and well-wishers.
Now if I talk about myself, then I am Uttarakhandi, so I will talk about Holi in Uttarakhand, but I was born in Faridabad, Haryana and my in-laws also lived in Bareilly city of Uttar Pradesh, so sometimes I get comparisons of cities on my own. It seems that instead of celebrating Holi, it can be different, but its purpose is only to do love with nature and love.
Bareilly Holi
I have heard about the Holi of Bareilly but have never played there and never dared to listen to the situation there. It is said that there does not seem to be gulal or dry color; there seems to be a firm color like purple, blue, green, black, there will be mud and dung which will be given. In Holi, everyone will be seen in one color and no one will be able to identify, only by the brightness of the teeth, one has to guess who is in front of them. My father-in-law says that the color of Holi does not go away for weeks, now do you have the courage to play such Holi? I am not at all. By the way, I remember my college days with such Holi. Once in Rishikesh, we children had dug a pit in the empty space in front of our house and left the water pipe open all night, till the morning the water was full, what else! Whatever we come, we will drop it in the pit. And as people fall into the pit, the pit becomes more and more huge, the pit has become like a slap. Children, young, adults, old people all enjoyed the 'natural mud bath' very much. We had one in our street
Yes, there is a good thing that the Holi meeting continues till several days after Holi, so that there will be harmony among each other.
by the way
But with the passage of time, the social circle of celebrating Holi has also reduced slightly. The tone and enthusiasm are the same but perhaps due to lack of time or modernity and busyness, people now celebrate Holi in their family in a limited way. In many metros, Holi has been limited to only TV, radio, mobile, internet. But some institutions or Mohalla committees are also playing community Holi which is beyond the idiocy and in a way it is also a good attempt to save their rich culture.
By the way, there is all the information about making different types of dishes and instant chips on the internet, but even if you bring a little sunlight and a little hard work, potato chips will be made.
(Holi is a social festival that connects people, brings a sense of cooperation, merits forgiveness, brings everyone together, learns love from nature, fosters mutual harmony and brotherhood. Hope you would have liked this article of Holi.)
Happy Holi ...-
एक Naari
Comments
Bilkul sahi..ye utsav humaari paramparaaon ko aage badhaane ke liye hi hai...bahut hi rochak hai lekh...happy holi
ReplyDeleteReena mam ,you have storytelling gift👌👌
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