करवा चौथ के नैतिक नियम


करवा चौथ के नैतिक नियम..
शुद्धि, संकल्प, श्रृंगार, साधना, सुविचार व सुवचन
   अखंड सौभाग्य के लिए सनातन धर्म में बहुत से व्रत और पूजा के विधि विधान हैं। ऐसे ही हर सुहागन महिलाओं के लिए करवा चौथ का व्रत एक महत्वपूर्ण व्रत है जो उनके अखंड सौभाग्य और सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए बहुत ही शुभकारी माना गया है। 
  यह व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि आने पर निर्जला किया जाता है जो कि सूर्योदय से आरंभ होकर चंद्रोदय के बाद ही संपूर्ण किया जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पूरे श्रृंगार के साथ उपवास रखती हैं और करवा माता की कथा पढ़कर या श्रवण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करती है। रात्रि में चंद्रोदय होने पर अर्घ्य के बाद ही उपवास को पूर्ण माना जाता है। 
  यह व्रत उत्तर भारत में मुख्यत: दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़, राजस्थान में किया जाता है लेकिन अपनी लोकप्रियता एवं मान्यताओं के कारण देश के विभिन्न जगहों में भी सुहागन स्त्रियों द्वारा करवा चौथ का उपवास बड़े ही चाव और भाव से रखा जाता है। यह अवश्य है कि अलग अलग जगहों में अपनी रीति रिवाजों के अनुसार इस व्रत को करने का थोड़ा तरीका अलग हो किंतु करवा चौथ व्रत के नैतिक नियम एक ही हैं।
 शुद्धि: सबसे पहला नियम शुद्धिकरण का ही है। करवा चौथ उपवास रखने से पूर्व शरीर की स्वच्छता पर ध्यान रखना होता है। साफ और स्वच्छ शरीर के साथ सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है जिससे कि शारीरिक शिथिलता दूर रहती है। किसी भी प्रकार का आलस एवं अकर्मण्यता नकारात्मकता का प्रभाव पैदा करता है इसलिए सुबह ही स्नानादि नित्य कर्म करके स्वच्छ वस्त्रों के साथ ही व्रत का आरंभ करना चाहिए।

संकल्प: कोई भी कार्य बिना संकल्प के पूरा नहीं होता। विशेषकर की हिन्दू संस्कृति में कोई भी देव कार्य करने से पूर्व संकल्प लिया जाता है ठीक ऐसे ही करवा चौथ के व्रत के दिन सुबह नहा धोकर अपने पूजा के स्थान में बैठकर करवा चौथ के व्रत का पूरी निष्ठा के साथ व्रत पूर्ण करने का संकल्प लें। अगर आचमन के साथ संकल्प न ले सकें तो मानसिक संकल्प लेकर करवा माता के व्रत के प्रति अपने पूरे भाव के साथ मन से दृढ़ संकल्प लेकर व्रत का आरंभ करें।
श्रृंगार: प्रत्येक वैवाहिक स्त्री के लिए श्रृंगार उसकी घर गृहस्थी के लिए समृद्धि लाता है इसलिए इस व्रत में सुहागन स्त्री के लिए श्रृंगार एक महत्वपूर्ण अंग है। 
  श्रृंगार सौभाग्य का चिन्ह है। यह केवल सौंदर्य बढ़ाने के लिए नहीं अपितु देवी के प्रति अपनी श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक भी है। चूंकि देवी को श्रृंगार प्रिय है इसलिए देवी को प्रसन्न करने के लिए श्रृंगार अर्पित होता है और स्वयं सुहागन महिलाएं भी अपने पूर्ण श्रृंगार में ही करवा माता की कथा का श्रवण करती है और माता गौरी से अपने अखंड सुहाग की प्रार्थना करती है। 
साधना: करवा चौथ के दिन करवा माता की पूजा की जाती है। इस दिन करवा चौथ की व्रत कथा का श्रवण किया जाता है साथ ही भगवान शिव और माता गौरा की भी पूजा की जाती है। यह शिव पार्वती की साधना का दिन है इसलिए इस दिन सुहागन महिलाएं विशेषकर देवी पार्वती की आराधना करती हैं। शिव पार्वती का दाम्पत्य जीवन एक आदर्श दाम्पत्य है इसलिए सुखी दाम्पत्य के लिए करवा चौथ के दिन शिव पार्वती की पूजा को महत्व दिया जाता है ताकि उनका आपसी प्रेम भी शिव पार्वती की भांति अटूट रहे। महिलाएं इस दिन पूरे भाव और समर्पण के साथ माता गौरी से अपने पति की दीर्घायु एवं घर की सुख शांति और समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं। 

सुविचार एवं सुवचन: प्रत्येक व्रती के लिए यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण नियम है कि मन किसी की भी तरह की निंदा, बुराई, लालच, क्रोध या किसी भी नकारात्मक विचारों से दूर रहे ताकि शरीर के साथ मन, वाणी और कर्म भी शुद्ध रहें। और करवा चौथ के व्रत में शुद्धि, संकल्प, श्रृंगार, साधना के नैतिक नियमों का पालन होता है इसीलिए मन भी सकारत्मक विचारों से भर जाता है और जब मन स्वस्थ हो तो वाणी का मधुर होना निश्चित होता है। 

  चूंकि करवा चौथ का व्रत अपने सुहाग के सुमंगल के लिए रखा जाता है इसलिए अपने पति और परिवार के प्रति किसी भी प्रकार का नकारात्मक भाव न लाए। इन नकारात्मक भावों के साथ व्रत रखना निरर्थक माना जाता है इसलिए ध्यान रखें कि इस पवित्र व्रत में प्रेम, समर्पण और विश्वास के साथ अपने सुहाग एवं संपूर्ण परिवार के लिए की गई मंगलकामना अवश्य ही फलीभूत होती है। 

  करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाओं सहित..


एक -Naari 

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