Teej Where Love Meets Devotion and Grace

 
 
तीज: सुहागनों का उत्सव (प्रेम, तप, समर्पण, श्रृंगार)


     छाया: मोनिका ठाकुर, देहरादून

 प्रकृति स्वयं माता पार्वती का एक रूप है इसलिए सावन माह में जहाँ हम भगवान् शिव की आराधना करते हैं  वहीं शिवा की पूजा का भी विशेष महत्व है। सावन माह में आने वाली तीज माता पार्वती को ही समर्पित पूजा है। इस दिन सुहागन महिलाएं  माता पार्वती से अपने सुहाग की लम्बी आयु और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत करती हैं। 

पार्वती का तप:
 पौराणिक कथानुसार माता पार्वती आदिदेव शिव से विवाह करना चाहती थी लेकिन शिव उस समय विरक्त थे। नारद मुनि ने बचपन से ही माता के अंदर शिव नाम के बीज बौ दिये थे इसलिए माता
शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप करने का निर्णय लिया। 
   शिव महापुराण के द्वितीय पार्वतीखंड के बाईसवें अध्याय के अनुसार माता पार्वती ने अपने राजसी वास्त्रों को त्यागकर मौंजी और मृगछाला पहनी और गंगोत्री के समीप श्रृंगी नामक तीर्थ पर शंकर जी का स्मरण कर तप करने के लिए चली। तपस्या के पहले वर्ष माता ने केवल फल का आहार किया फिर दूसरे वर्ष केवल पत्तों का आहार किया फिर उन्होंने पत्तों का भी त्याग कर निराहार तप किया जिससे देवताओं ने उनका नाम अपर्णा रखा। पार्वती माता एक पैर पर खड़ी रह शिव पंचाक्षरी का जप करने लगी। उनके केशों की भयानक जटा बन गई थी। पार्वती जी ने उस तपोवन में तीन हज़ार वर्षों तक भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। इस कठोर तप से चराचार सभी को बहुत आश्चर्य हुआ।

शिव का प्रेम:
 तप से प्रसन्न हो भगवान् शिव माता पार्वती की परीक्षा लेने स्वयं शिव ने वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण किया और पार्वती से कठोर तप का कारण पूछा तो माता ने अपना मनोरथ उस ब्रह्मचारी वृद्ध ब्राह्मण को बतलाया लेकिन शिव ने अपनी लीला कर पार्वती के सम्मुख शिव निंदा की जिससे पार्वती ने अपनी सखी विजया से कहा कि इस ब्राह्मण को शिव् निन्दा के लिए मना कर दो क्योंकि शिव निंदक के साथ सुनने वाले को भी पाप लगता है और ऐसा कह जैसे ही पार्वती उस स्थान से अन्यत्र जाने के लिए चरण उठाया वैसे ही वेशधारी साक्षात शिव अपने रूप में आये और
उन्हें पकड़ के बोले..
  तुम मुझे छोड़कर कहाँ जाती हो। मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकता। जो चाहती हो वर मांगो। मैं प्रसन्न हूँ। तुम्हारे लिए कुछ भी अदेय नही है। आज से तुमने अपने तप द्वारा मुझे मोल ले लिया है। अत्यव मैं तुम्हारा दास हूँ। मुझे तुम्हारे बिना एक क्षण भी युग के समान व्यतीत होता है। मैं तुम्हारी सुंदरता पर मुग्ध हूँ। यह सब मैने तुम्हारी परीक्षा के लिए किया था। मेरे इस अपराध को क्षमा करो। हे शिवे! तुम्हारे समान मुझे तीनो लोकों में कोई नहीं दिखाए देता। मैं सब प्रकार से तुम्हारे अधीन हूँ। अपना काम पूरा करो। मेरे समीप आओ। मेरी पत्नी बनो। मैं तुम्हारा वर हूँ। मैं अब शीग्रह ही तुम्हारे साथ उत्तम पर्वत पर अपने घर को जाऊंगा। वह सुनकर पार्वती को इतना अधिक हर्ष हुआ कि उनको तप काल का सारा कष्ट भूल गया।  (श्री शिवमहापुराण तृतीय पार्वती खंड का 28वां अध्याय से)   


    शिव ने अपने सम्पूर्ण प्रेम भाव से पार्वती को अपनी पत्नी स्वीकार किया और विवाह के लिए तैयार हुए। शिव पार्वती के इसी रूप जिसमें तप, प्रेम, संकल्प, समर्पण और सोलह श्रृंगार हैं इसकी आराधना से सभी का कल्याण सुनिश्चित है। तीज पति पत्नी के इसी सुन्दर और समर्पित भाव को उत्सव की भांति मनाने का त्यौहार है। यह अखंड सौभाग्य, खुशहाल वैवाहिक जीवन और परिवार के कल्याणार्थ हेतु व्रत है जिसे महिलाएं एक उत्सव की भाँती मनाती है इसलिए उत्तर भारत में  दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और उत्तर प्रदेश में तीज का व्रत का अर्थ तीज का त्यौहार होता है। 
    इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत लेती है,  सोलह श्रृंगार करती हैं, देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती है, भजन कीर्तन करती हैं और साथी महिलाओं के साथ सावन के झूले झूलती है। क्षेत्र और अपनी परंपरा अनुसार तीज भी अलग अलग तिथि में  मनाई जाती है। 


तीज के प्रकार:
1: हरियाली तीज/ सावन तीज: हरियाली तीज जिसे छोटी तीज भी कहा जाता है इसका व्रत सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आता है इसलिए इसे सावन तीज या तीजो कहा जाता है। 
 इस दिन महिलाएं प्रातः काल उठकर, नहा धोकर साफ कपड़े (विशेषकर हरे रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है) पहनती है, पूरे श्रंगार के साथ निर्जला व्रत रखती है, शाम को चौकी पर मिट्टी की मूर्ती बना माता पार्वती और भगवान् शिव की पूजा करती है। रात में  चंद्र देव को अर्घ्य देने के बाद घेवर, खीर या मीठे के साथ अपना व्रत खोलती हैं।



2- कजरी तीज/कजली तीज: उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ स्थानों में  कजरी तीज मनाई जाती है जो भादो मास भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह व्रत भी सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक रखा जाता है। शिव और पार्वती की पूजा की जाती है, लोक गीत और नृत्य किया जाता है और चंद्रमा जी को अर्घ देने के बाद मुख्यत सत्तू के बने भोग के साथ पारण किया जाता है। इस दिन नीम के पेड़ की भी पूजा की जाती है।
3- हरितालिका तीज: हरितालिका तीज एक कठिन व्रत है जो भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के सूर्योदय से लेकर अगले सूर्योदय तक किया जाता है। उत्तर प्रदेश के खासकर पूरब के क्षेत्र में मनाया जाने वाला हरितालिका व्रत निर्जला व्रत है जो लगभग 24 घंटे तक रखा जाता है। इस दिन महिलाये पूरे श्रंगार के साथ देवी पार्वती, भगवान् शिव और गणेश जी की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा करती हैं। पूरी रात भजन जागरण करती हैं और अगली सुबह सूर्योदय के समय अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं। भोग में मुख्यत पूरी और हलवे का प्रचलन अधिक होता है। 

  कुछ लोग हरियाली तीज तो किसी जगह कजली तीज तो कहीं पर हरितालिका तीज का प्रचलन है लेकिन तीज मनाने का भाव जिसमें प्रेम भी है, तप भी है, समर्पण भी है और श्रृंगार भी सभी जगह एक ही भाव है इसलिए सभी सुहागन महिलाओं को तीज की शुभकामनाएं। 
एक -Naari 






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