सावन और शिव

नटखट सावन और शांत शिव 

 
  सावन के नटखट रूप पल पल बदलते हैं, कभी दनदनाती तेज बारिश, कभी भीनी भीनी बौछार। कभी काला आसमान तो कभी इसी आसमान में इंद्रधनुष के रंग। कभी चटख धूप और उमस की गर्मी तो कभी हवाओं की ठंडक। इस चंचलता के साथ भी सावन और शिव का गहरा सम्बन्ध है। जहाँ सावन इतना चंचल है वही पर शिव नाम उतना ही शांत और स्थिर।
   सावन की प्रकृति ही ऐसी है जो उसे स्थिर नहीं रहने देती। ये स्वरूप मनुष्य को भी प्रभावित करता है। हम भी तो प्रकृति माँ के पुत्र है इसीलिए सावन की चंचलता हमारी प्रकृति में  भी आना स्वभाविक है।ये चंचलता प्रकृति का एक स्वरूप है और प्रकृति जो स्वयं पार्वती मां हैं उनकी चंचलता तो केवल परमपिता शिव ही संभाल सकते है इसलिए सावन में शिव की स्तुति मानव कल्याण करती है। सावन में शिव के भजन, कीर्तन, पूजन, मनन, चिंतन और शिव नाम भगवान शिव के समीप होने के आनंद देता है। 


  सावन में मन हरियाली की तरंगों में डोलता रहता है वही मन शिव की उपासना से शांत भी होता है। सावन में विशेषकर शिव की भक्ति की जाती है ताकि हमारा ध्यान, हमारी ऊर्जा, हमारा मन उस निराकार आदि देव शिव की आराधना में रम जाए। हम अपने मन को नियंत्रित करके अपना ध्यान केवल शिव की अराधना में केंद्रित कर सके और अपनी भावनाओं, अपनी इच्छाओं, अपने व्यवहार पर नियंत्रण रख सके साथ ही अपनी एकाग्रता बढ़ा सके, धैर्य रख सके और प्रकृति से मिली ऊर्जा को एक सही दिशा में प्रवाहित कर सकें।


   यह एक ऐसा काल होता है जब शिव को पढ़ने जानने या केवल उसके प्रणव मंत्र से ही हम शिव की शक्ति का अनुभव कर सकते है। इससे हमें दृढता मिलती है, संतुष्टि मिलती है, शांति मिलती है और आत्म विश्वास की शक्ति मिलती है। इसलिए स्वयं और समाज के कल्याण के लिए चंचल सावन में स्थायी शिव का नाम ले और परमपिता शिव के साथ माता पार्वती की भी कृपा प्राप्त करें।



 
  हर हर महादेव...


 एक -Naari 
  

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