जन्माष्टमी विशेष: कृष्ण भक्ति: प्रेम्, सुख, आनंद का प्रतीक

Image
कृष्ण भक्ति:  प्रेम्, सुख, आनंद का प्रतीक  भारत में मनाये जाने वाले विविध त्यौहार और पर्व  यहाँ की समृद्ध संस्कृति की पहचान है इसलिए भारत को पर्वों का देश कहा जाता है। वर्ष भर में समय समय पर आने वाले ये उत्सव हमें ऊर्जा से भर देते हैं। जीवन में भले ही समय कैसा भी हो लेकिन त्यौहार का समय हमारे नीरस और उदासीन जीवन को खुशियों से भर देता है। ऐसे ही जन्माष्टमी का त्यौहार एक ऐसा समय होता है जब मन प्रफुल्लित होता है और हम अपने कान्हा के जन्मोत्सव को पूरे जोश और प्रेम के साथ मनाते हैं।  नटखट कान्हा का रूप ही ऐसा है कि जिससे प्रेम होना स्वाभाविक है। उनकी लीलाएं जितनी पूजनीय है उतना ही मोहक उनका बाल रूप है। इसलिए जन्माष्टमी के पावन उत्सव में घर घर में हम कान्हा के उसी रूप का पूजन करते हैं जिससे हमें अपार सुख की अनुभूति होती है।  कान्हा का रूप ही ऐसा है जो मन को सुख और आनंद से भर देता है। कभी माखन खाते हुए, कभी जंगलों में गाय चराते हुए, कभी तिरछी कटी के साथ मुरली बजाते हुए तो कभी गोपियों के साथ हंसी ठिठोली करते हुए तो कभी शेषनाग के फन पर नृत्य करते ...

Women's Special " From Fabric to Feelings: "

 महिला विशेष: भावनात्मक वस्त्रों का प्रबंधन "Women's  Special " From Fabric to Feelings: "


  कपड़े केवल तन ढकने का काम करते हैं लेकिन वेशभूषा हमारी छवि का निर्माण करती है। ये हमारे स्वरुप को निखारते है और आत्मविश्वास भी बढ़ाते  हैं । असल में ये हमारे व्यक्तित्व का दर्पण है जो अन्य लोगों को हमारे चरित्र से लेकर सामाजिक स्थिति तक का आभास कराते हैं वहीं इन वस्त्रों में अगर भावनाएं भी जुड़ जाएं तो ये उस व्यक्ति के लिए बहुत खास बन जाते हैं। 

  फिर तो समय के साथ आगे बढ़ते हुए भले ही कितने फैशन बदले, रंगों का चलन बदले या पहनने ओढ़ने का प्रचलन। ये कपड़े कभी भी पुराने नहीं लगते क्योंकि तब ये केवल कपड़े का टुकड़ा नहीं बल्कि यादों का पिटारा बन जाते है जिन्हें जितनी बार खोलो एक नई चमक आँखों के आगे घूमने लगती है।

    तब इन्हे पहनने से अधिक आनंद तो उन्हें  संभालने के सुख में होता है। इसीलिए तो कितनी ही बार हम उन कपड़ों को भी सहेज के रखते है जिन्हे हम न तो पहनते है और  न ही किसी को देने की हिम्मत रखते है बस बरसों से घर में संभाले रखते हैं ताकि जब भी उन पर नज़र पड़े तो मन एक बार फिर से खिल उठे।


  विशेषत: महिलाओं का अपने वस्त्रों से इस तरह का जुड़ाव बड़ा ही समान्य है क्योंकि उनके पास हर वस्त्र से जुड़ी कुछ खास बात होती है जैसे कि कुछ ऐसे कपड़े होते हैं जिन्हें किसी विशेष अवसर पर खरीदा गया होता है या फिर वो जो उपहार स्वरुप मिले होते हैं । अब ऐसे में कई बार घर पर ऐसे कपड़ों की संख्या अधिक हो जाती है जिनका न तो उपयोग किया जाता है और न ही किसी को दिया जाता है। इस स्थिति में इनको संभाल कर रखना महिलाओ के लिये एक चुनौती बन जाती है ।

  ऐसे में महिलाएं कितनी ही बार अनावश्यक कपड़ों को भी संभाल लेती हैं जिनका वास्तविक जीवन में कुछ भी उपयोग नहीं होता है। शायद इसी कारण से घर पर महिलाओं के कपड़ों की संख्या पुरुषों की अपेक्षा अधिक  होती है। 


  इसी क्रम से जुड़ते हुए कई महिलायें इस प्रवृत्ति का भी शिकार हो जाती हैं जिनका काम केवल वस्त्रों को इकठ्ठा करना मात्र रह जाता है, उन्हें संभालना नहीं। जिन कपड़ों का उपयोग नहीं किया जाता उनको रखने कि समस्या तो बनी रहती ही है साथ ही धन और समय दोनों नष्ट होते हैं। इसलिए इस प्रवृत्ति से बचने के लिए महिलाओं को अपनी भावनाओं के साथ साथ थोडा सा ध्यान वास्तविकता पर भी देना चाहिए। महिलाओं को थोड़ा समझना होगा कि भौतिक आवश्यकताओं का आंकलन किये बिना, केवल मन और भावनाओं के वशीभूत होकर अनावश्यक कपड़ों का संग्रह करना उचित नहीं है।

    वैसे, थोड़ी सी समझदारी के साथ हम इस आदत से बच सकते हैं  जैसे कि सबसे पहले तो कपड़ों को इकठ्ठा करने के स्थान पर उपयोग में लाने कि सोचें। इकट्ठा किये गये कपड़ों को अपने किसी प्रियजन को आशिर्वाद या भेंटस्वरूप दे जो इनका उपयोग कर सकें।

  किसी भी अवसर पर नए कपड़े की खरीदारी से पहले एक बार अपनी अलमारी को ढंग से देखें कि असल में नए कपड़ों कि आवश्यकता है भी या नहीं!! 

 भेंट स्वरुप मिले कपड़ों को भी तुरंत तैयार करने के स्थान पर थोडा सा समय लेकर ही तैयार करें जिससे कि आप समझ सकें कि इसकी उपयोगिता कब है।



  और सबसे आवश्यक है उन कपड़ों का उपयोग करना जिन्हें आपने लम्बे समय से नहीं पहना है या जिनके साथ आपकी कुछ ख़ास यादें जुडी हैं। ऐसे कपड़ों को एक बार फिर से उपयोग में लाने का सोचें उनमें रंगाई, बुनाई, सिलाई से लेकर कुछ भी ऐसा नया जोड़े जो उसकी पुरानी रंगत को भी आधुनिकता के साथ नई चमक दे।


  घर में ऐसे ही बहुत से कपडे होते हैं जो हमारे माँ या दादी नानी के होते हैं। ये वर्षों से किसी बंद संदूकों में पड़े रहते हैं और जिनके साथ उनकी यादें जुडी होती हैं। ऐसे में इन कपड़ों को अगर एक बार फिर से किसी न किसी रूप में उपयोग में लाया जाए तो उनकी भावनाओं का भी सम्मान होगा और हमें भी एक नया स्वरुप मिलेगा। क्योंकि ये कपड़े हाथ से बने हुए होते हैं जिनपर पारम्परिक कढाई, बुनाई, छपाई या रंगाई का काम होता है। आज हाथ से तैयार कपड़ों की कीमत मशीन से कहीं गुना अधिक है, ऐसे में  इन सूती, रेशमी, मखमली या अन्य किसी भी कपड़े पर हाथ से किया गया काम उस कपड़े को शाही रूप देगा। सच माने, इसे पहनने कि ख़ुशी आपको और भी खूबसूरत बना देगी। इस तरह से उन कपड़ों का भी सही उपयोग होगा, साथ ही इन कपड़ों को बड़ों के आशीर्वाद के रूप में पहनना भावनात्मक रूप से भी मजबूती देगा।





एक -Naari

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

उत्तराखंडी अनाज.....झंगोरा (Jhangora: Indian Barnyard Millet)

मेरे ब्रदर की दुल्हन (गढ़वाली विवाह के रीति रिवाज)

अहिंसा परमो धर्म: