The Spirit of Uttarakhand’s Igas "Let’s Celebrate Another Diwali "

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  चलो मनाएं एक और दिवाली: उत्तराखंड की इगास    एक दिवाली की जगमगाहट अभी धुंधली ही हुई थी कि उत्तराखंड के पारंपरिक लोक पर्व इगास की चमक छाने लगी है। असल में यही गढ़वाल की दिवाली है जिसे इगास बग्वाल/ बूढ़ी दिवाली कहा जाता है। उत्तराखंड में 1 नवंबर 2025 को एक बार फिर से दिवाली ' इगास बग्वाल' के रूप में दिखाई देगी। इगास का अर्थ है एकादशी और बग्वाल का दिवाली इसीलिए दिवाली के 11वे दिन जो एकादशी आती है उस दिन गढ़वाल में एक और दिवाली इगास के रूप में मनाई जाती है।  दिवाली के 11 दिन बाद उत्तराखंड में फिर से दिवाली क्यों मनाई जाती है:  भगवान राम जी के वनवास से अयोध्या लौटने की खबर उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में 11वें दिन मिली थी इसलिए दिवाली 11वें दिन मनाई गई। वहीं गढ़वाल के वीर योद्धा माधो सिंह भंडारी अपनी सेना के साथ जब तिब्बत लड़ाई पर गए तब लंबे समय तक उनका कोई समाचार प्राप्त न हुआ। तब एकादशी के दिन माधो सिंह भंडारी सेना सहित तिब्बत पर विजय प्राप्त करके लौटे थे इसलिए उत्तराखंड में इस विजयोत्सव को लोग इगास को दिवाली की तरह मानते हैं।  शुभ दि...

कौन बदला: शिक्षा, शिष्य या शिक्षक!!

कौन बदला: शिक्षा, शिष्य या शिक्षक !!




  शिक्षा के माध्यम से ही ज्ञान मिलता है और ज्ञान से मानसिक चेतना। इसी मानसिक चेतना के विस्तार से एक साधारण मन भी एक जिज्ञासु बनता है जो नई दिशा, ज्ञान, नये विचार, नई सोच, नये उद्देश्य और नई तकनीक का जन्मदाता है। और इन्हीं सब सकारात्मक कड़ियों को जोड़कर ही एक नये शिक्षित समाज का निर्माण होता है। 
  शिक्षा से शिक्षित समाज तक की दूरी को पाटना हमारी अपनी जिम्मेदारी है लेकिन एक अच्छी शिक्षा से जुड़ने की जिम्मेदारी शिक्षक के कंधे पर ही है इसीलिए जैसे शिक्षा एक आवश्यकता है वैसे ही शिक्षक भी हमारे विकासक्रम की एक मूलभूत आवश्यकता है। हम सभी मानते हैं कि बिना शिक्षक के शिक्षा दिशाहीन है। 
  लेकिन आज हमारे सामने शिक्षा, शिष्य और शिक्षक संबंधित ऐसी बहुत सी अप्रिय घटनाएं घटित हो रही हैं जो हम सभी को सोचने में मजबूर कर देती हैं कि आज शिक्षा का स्तर क्या है?? ज्ञान का केंद्र कहे जाने वाले देश में आखिर कौन बदला?? शिक्षा, शिष्य या शिक्षक!! 



 बच्चों द्वारा की जाने वाली आत्महत्यायें उनके लिए पढाई का बोझ थी या फिर आगे बढ़ने का दबाव?? कारण तो शिक्षा संबंधित ही है। ऐसा लगता है कि आज के इस प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा वाले समय में शिक्षा को जीतना एक आवश्यकता बन गई है जबकि शिक्षा से ज्ञान का रास्ता ढूँढना अधिक आवश्यक और महत्वपूर्ण है। अब ऐसे में सोचने का विषय है कि इस प्रकार के तनाव के लिए कौन जिम्मेदार है।
जहाँ बच्चे पहले संघर्ष करते थे वहाँ आज बच्चे पहले ही हार मान लेते हैं। यहाँ पर कौन बदला?? शिक्षा, शिष्य या शिक्षक!! 

 अनुशासित जीवन एक विद्यार्थी का लक्षण होता था वहीं आज विद्यार्थियों के लिए अनुशासन एक बंधन हो गया है इसलिए कितनी घटनाएं ऐसी भी हैं जहाँ विद्यार्थी अपनी सीमारेखा लाँघ कर अभद्रता तक पहुँच रहे हैं। अब ऐसे में शिक्षक द्वारा अपने विद्यार्थियों को किसी भी तरह का दंड अब प्रताडना या उत्पीड़न बन गई है। यहाँ आखिर कौन बदला?? शिक्षा, शिष्य या शिक्षक!! 

  गुरु और शिष्य एक ऐसा संबंध होता है जो विशुद्ध ज्ञान पर आधारित है। शिक्षक एक गाईड की भूमिका निभाकर अपने शिष्य को ज्ञान की दिशा में ले जाता है जहाँ शिष्य भी
अनुशासन, सम्मान और सेवा के साथ अपने गुरु का वंदन करता है लेकिन आज कुछ ऐसी विचलित घटनाएं भी सामने आ रही हैं जो इस संबंध में कुदृष्टि और कुकर्मों से लिप्त दिखाई देती हैं। यहाँ आखिर कौन बदला?? शिक्षा, शिष्य या शिक्षक!! 
  शिक्षक का कार्य शिक्षा का प्रचार प्रसार है लेकिन आज शिक्षक शिक्षा से इतर भी कई चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं अदा कर रहे हैं। ऐसे ही शिष्य का काम ज्ञान अर्जित करने का है लेकिन उसका स्वयं का ध्यान आंतरिक और बाह्य बाधाओं से घिरा है। शिष्य वर्चुअल दुनिया में और शिक्षक ऐसी नीतियों से जकड़े हुए हैं जहाँ पर किसी का भी अपने काम के प्रति सौ फीसदी खरा उतरना कठिन तो होता ही है। 
  
     Pic source: google

     

   अब ऐसे में लगता है कि यह बदलाव शिक्षा, शिष्य या शिक्षक में नहीं अपितु बदलाव हमारे सामाजिक परिवेश (social environment) में हुआ है। हमारी संस्कृति और सभ्यता के विकास क्रम में हमारा व्यक्तिगत और सामाजिक सम्बंध शायद संकुचित होकर भौतिकता पर निर्भर हो गया है। इसलिए एक उत्तम शिक्षा, उत्तम शिष्य या उत्तम शिक्षक के लिए सामाजिक तालमेल बैठाना आवश्यक है जिसकी जिम्मेदारी प्रत्येक की है।  
  इन सबके बीच एक अच्छी बात यह भी है कि आज भी शिक्षक दिवस (5 सितम्बर) को शिष्य और शिक्षक दोनों पूरे मान सम्मान और स्नेह से मनाते हैं और साथ ही इस भौतिकतावाद से परे आज भी बहुत से बुद्धिजीवी वर्ग समाज में शिक्षा की जिम्मेदारी बहुत अच्छे से पूरी कर रहे हैं, जैसे कि श्री अरुण कुकशाल जी (ग्राम चामी, पौड़ी गढ़वाल) जिन्होंने सरकारी विभाग से सेवानिवृति लेकर अपने गाँव में चामी टीनेजर क्लब की स्थापना की और सामाजिक भेदभाव से दूर आसपास के गाँवों के बच्चों को भी शिक्षा से जोड़ा। 
    अमर उजाला: 5 सितंबर 2024

  शिक्षा किसी भी सभ्यता के विकासक्रम का एक महत्वपूर्ण आधार है। शिक्षा के ठोस आधार पर ही मानव प्रगतिशील होता है और मजबूत समाज का निर्माण भी होता है। शिक्षा के इसी विकासक्रम के चलते ही हम देश की प्रगति की दिशा सुनिश्चित करते हैं। इसलिए कुछ बदलाव आवश्यक भी हैं लेकिन वही जो शिक्षा के सकारात्मक परिणाम दें। 


     शिक्षक दिवस की शुभकामनाओं के साथ!! 


एक -Naari

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