जन्माष्टमी विशेष: कृष्ण भक्ति: प्रेम्, सुख, आनंद का प्रतीक

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कृष्ण भक्ति:  प्रेम्, सुख, आनंद का प्रतीक  भारत में मनाये जाने वाले विविध त्यौहार और पर्व  यहाँ की समृद्ध संस्कृति की पहचान है इसलिए भारत को पर्वों का देश कहा जाता है। वर्ष भर में समय समय पर आने वाले ये उत्सव हमें ऊर्जा से भर देते हैं। जीवन में भले ही समय कैसा भी हो लेकिन त्यौहार का समय हमारे नीरस और उदासीन जीवन को खुशियों से भर देता है। ऐसे ही जन्माष्टमी का त्यौहार एक ऐसा समय होता है जब मन प्रफुल्लित होता है और हम अपने कान्हा के जन्मोत्सव को पूरे जोश और प्रेम के साथ मनाते हैं।  नटखट कान्हा का रूप ही ऐसा है कि जिससे प्रेम होना स्वाभाविक है। उनकी लीलाएं जितनी पूजनीय है उतना ही मोहक उनका बाल रूप है। इसलिए जन्माष्टमी के पावन उत्सव में घर घर में हम कान्हा के उसी रूप का पूजन करते हैं जिससे हमें अपार सुख की अनुभूति होती है।  कान्हा का रूप ही ऐसा है जो मन को सुख और आनंद से भर देता है। कभी माखन खाते हुए, कभी जंगलों में गाय चराते हुए, कभी तिरछी कटी के साथ मुरली बजाते हुए तो कभी गोपियों के साथ हंसी ठिठोली करते हुए तो कभी शेषनाग के फन पर नृत्य करते ...

देहरादून: बदलता मौसम...

देहरादून: बदलता मौसम...


   चलो अब तो बारिश हुई और अब जाकर कुछ ठंडक मिली है नहीं तो गर्मी से सब सूख रहे थे। वैसे गर्मियों के दिन है तो गर्मी पड़ेगी ही लेकिन इतनी गर्मी पड़ेगी इसका अंदाज़ा नहीं था। हालांकि हर वर्ष यही कहा जाता है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस साल बहुत गर्मी है लेकिन सच में देहरादून में ऐसी गर्मी का अनुभव पहली बार ही हुआ क्योंकि भले ही देहरादून में तीन चार दिन जलनखोर गर्मी हो लेकिन उसके अगले दिन ठंडक देने बरखा रानी आ ही जाती थी। मगर जाने क्या हुआ इस बार कि बारिश को आते आते 15-20 दिन लग गए लेकिन देर से ही सही अब राहत मिली है क्योंकि बारिश के बाद गर्म मौसम यहाँ उमस नहीं अपितु ठंडा कर देता है। 

  यहाँ के मौसम का मिजाज ऐसा है कि बस एक बारिश की फुहार और फिर तपने वाला देहरादून ठंडक वाली दून घाटी में बदल जाता है। इसलिए कहा जाता है कि देहरादून के मौसम का कुछ पता नहीं चलता, कब पलट जाए। तभी तो कब से उम्मीद लगा के बैठे थे कि देहरादून का पारा तीन- चार दिन बढ़ते बढ़ते अब तो पलटी मार के नीचे लुढ़क ही जायेगा लेकिन इस बार हमारा ये ख्याल हवा हो गया। देहरादून जो हमेशा से अपने खुशनुमा मौसम के लिए जाना जाता था बिना बारिश के उसका तापमान भी बढ़ता चला गया। ये शायद पहली बार ही हुआ होगा कि इतनी गर्मी बिना बारिश के इतने लंबे समय तक रही !! 
   हालांकि देहरादून ही क्या हर जगह का तापमान पर बहुत फर्क पड़ा है और यह एक चिंता का विषय है कि पूरी दुनिया का तापमान लगातार बढ़ रहा है। अब इसका दोषी कौन है और इसका कारण क्या है ये बताने की किसी को कोई आवश्यकता नहीं है। बस आवश्यकता है तो यह मानने की कि कहीं न कहीं इस गर्मी का कारण हम भी हैं। 
  कहते हैं कि देहरादून में पहले घर की छत पर पंखा लगाने की कड़ी नहीं होती थी क्योंकि यहाँ कभी पंखे की जरूरत ही नहीं होती थी। दिन में धूप की तपन तो होती थी लेकिन साथ ही गर्मियों में लोगों के घर-आंगन लीची और आम से पटे रहते और उन पेड़ों से ठंडी ठंडी ब्यार हमेशा चलती रहती थी। लेकिन अब देहरादून की लीची आम बासमती के बाग बगीचों के साथ साथ हरियाली भी कम होती गई इसलिए पंखों के साथ अब कूलर एयर कंडिशन सब चालू हैं। 
    जहाँ पहले सड़क किनारे ताजी-ताजी लीचियां और आम बिकते हुए अमूमन दिखाई दे जाते थे अब बड़ी मुश्किल से वहाँ इक्का दुक्का ढ़ेलियाँ दिखती है। क्योंकि खेत खलियान बाग बगीचों की जगह शॉपिंग माल, रेस्त्रां, वेडिंग फार्म, फ्लैट्स हैं और इन सबके बीच हम देहरादून में ठंडक ढूँढना तो हमारी नादानी है!! हमें समझ जाना चाहिए कि हम देहरादून घाटी से अधिक देहरादून शहर में हैं इसलिए दिल्ली मुंबई शहरों की तरह गर्मी से लड़ने के लिए स्वयं को तैयार कर लेना चाहिए और जब भी बारिश हो तो दिल खोलकर तसल्ली कर लेनी चाहिए कि हम कम से कम देहरादून शहर में तो हैं जहाँ अभी थोड़ी हरियाली और बची है इसलिए तो बारिश के बाद मौसम अच्छा नहीं ठंडा हो जाता है।। 


एक- Naari

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