चूरमा Mothers Day Special Short Story

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Mother's Day Special... Short Story (लघु कथा) चूरमा... क्या बात है यशोदा मौसी,, कल सुबह तो पापड़ सुखा रही थी और आज सुबह निम्बू का अचार भी बना कर तैयार कर दिया तुमने। अपनी झोली को भी कैरी से भर रखा है क्या?? लगता है अब तुम आम पन्ना की तैयारी कर रही हो?? (गीता ने अपने आंगन की दीवार से झाँकते हुए कहा)  यशोदा ने मुस्कुराते हुए गर्दन हिलाई । लेकिन मौसी आज तो मंगलवार है। आज तो घर से चूरमे की मीठी मीठी महक आनी चाहिए और तुम कैरी के व्यंजन बना रही हो। लगता है तुम भूल गई हो कि आज सत्संग का दिन है। अरे नहीं-नहीं, सब याद है मुझे।   तो फिर!! अकेली जान के लिए इतना सारा अचार-पापड़। लगता है आज शाम के सत्संग में आपके हाथ का बना स्वादिष्ट चूरमा नहीं यही अचार और पापड़ मिलेगे। धत्त पगली! "चूरमा नहीं,,,मेरे गोपाल का भोग!!" और सुन आज मै न जा पाउंगी सत्संग में।  क्या हुआ  मौसी?? सब खैरियत तो है। इतने बरसों में आपने कभी भी मंगल का सत्संग नहीं छोड़ा और न ही चूरमे का भोग। सब ठीक तो है न??   सब खैरियत से है गीता रानी, आज तो मै और भी ठीक हो गई हूँ। (यशोदा तो जैसे आज नई ऊर्जा से भर गई थी, ...

आखिर युद्ध क्यों?? Why War??

युद्ध नहीं हमें शांति अवश्य चाहिए...We need peace not war.
    थोड़े थोड़े अंतराल पर जो खबरें सुनने को मिलती हैं न उससे लगता है ये पूरी दुनिया फिर से अपनी अपनी वर्चस्व की लड़ाई लड़ने जा रही है। लगता है कि होड़ लग गई है देशों को अपने को सुप्रीम समझने की ओर दूसरों को समझाने की भी और वर्चस्व की इसी होड़ में आत्म रक्षा का वास्ता देकर युद्ध में कूद पड़ रहे हैं। 
    उन्हें लगता है कि वो भगवान हैं इसीलिए अपने को दुनिया का विध्वंसक और निर्माता दोनों समझ रहे हैं तभी तो पहले युद्ध करो, वहां विध्वंस करो और उसके बाद कब्जा करके वहां का विकास करो। ये किस प्रकार की सोच है भाई!! जब भला ही करना है तो पहले नाश क्यों!! हिंसा से आखिर किसका भला हुआ है जो अब होगा! 
   कट्टरपंथी सोच और साम्राज्यवाद ही देश को युद्ध की ओर धकेलता है और इससे देश का संरक्षण नहीं अपितु समाज और प्रकृति का ह्रास ही होता है। इस सोच से परे होना ही पड़ेगा तभी देश का कल्याण होगा नहीं तो समय समय पर यही सोच अपने ही विनाश का कारण भी बनेगी।
   ये सही है कि युद्ध के बाद एक नई शक्ति का जन्म होता है लेकिन यह भी मानना पड़ेगा कि साथ ही साथ ये शक्ति देश की राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, मानसिक और व्यापारिक नुकसान भी झेलती है। इतने भारी भरकम नुकसान के लिए आखिर युद्ध क्यों??
   अपने देश के हित के लिए लड़ना कोई गलत नहीं है लेकिन अन्य देश को पराजित करने को ही अपना हित समझना तो गलत ही है। मानवता के विरुद्ध जाकर अगर कोई देश युद्ध में आगे बढ़ता भी है तो उसकी जीत केवल अस्थायी है। हिंसा से केवल तनाव, क्रोध, असुरक्षा, भय जैसी परेशानियां सताती हैं जबकि अहिंसा का मार्ग जीवन में सकारात्मकता का भाव लाता है। अहिंसा एक ऐसी शक्ति है जिसके आधार पर दुनिया के कितने ही धर्म और समुदाय टिके हुए हैं। कुछ लोग अहिंसा को कायरता से जोड़ते हैं जबकि अहिंसा अपने आप में एक शस्त्र है और इसे लेकर भी तो आगे बढ़ा जा सकता है तो फिर युद्ध ही क्यों?? 
   विश्व प्रसिद्ध रूसी विचारक और लेखक लियो टोलस्टोय का प्रसिद्ध उपन्यास वार एंड पीस भले ही उन्नीसवीं सदी के इतिहास के बारे में बता रहा हो लेकिन इससे दुनिया को सीखना ही होगा कि युद्ध या हिंसा के माध्यम से अपनी बात मनवाना किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। इससे घर का, परिवार का, समाज का, देश का और पूरी दुनिया का नाश ही होगा। अपनी बात मनवाने के लिए आखिर युद्ध ही क्यों?? 
   जीवन के जितने भी संघर्ष हैं उनका उद्देश्य ही अंत में शांति है और शांति के लिए, सभी के कल्याण के लिए युद्ध कोई विकल्प नहीं है। पूरी दुनिया में संघर्ष छिड़ा हुआ है। किसी का आंतरिक कलह है तो किसी का बाहरी तत्वों के साथ। कोई राजनीतिक रूप से तो कोई आर्थिक तो कोई सामाजिक रूप से संघर्ष कर रहा है लेकिन इस संघर्ष को युद्ध में बदलने से स्थिति अच्छी हो जायेगी क्या?? 
   नैतिकता के बूते भी तो राष्ट्र निर्माण होता है तो फिर युद्ध क्यों?? कूटनीतिक तरीके से भी तो हालात को समझा जा सकता है फिर युद्ध क्यों?? तार्किकता एक मजबूत आधार है अपनी बात रखने का फिर भी युद्ध क्यों?? 
   मानो या न मानो युद्ध किसी भी अन्य देशों में चल रहा हो लेकिन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से तनाव में पूरी दुनिया ही रहती है। युद्ध का अर्थ दुनिया का हरियाली से सूखे में जाना है। 
   आज जब दुनिया का हर एक नागरिक किसी भी प्रकार के तनाव से मुक्ति चाहता है तो फिर अपने नागरिकों के लिए ही युद्ध क्यों?? 


एक -Naari
  

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