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Showing posts from January, 2022

The Spirit of Uttarakhand’s Igas "Let’s Celebrate Another Diwali "

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  चलो मनाएं एक और दिवाली: उत्तराखंड की इगास    एक दिवाली की जगमगाहट अभी धुंधली ही हुई थी कि उत्तराखंड के पारंपरिक लोक पर्व इगास की चमक छाने लगी है। असल में यही गढ़वाल की दिवाली है जिसे इगास बग्वाल/ बूढ़ी दिवाली कहा जाता है। उत्तराखंड में 1 नवंबर 2025 को एक बार फिर से दिवाली ' इगास बग्वाल' के रूप में दिखाई देगी। इगास का अर्थ है एकादशी और बग्वाल का दिवाली इसीलिए दिवाली के 11वे दिन जो एकादशी आती है उस दिन गढ़वाल में एक और दिवाली इगास के रूप में मनाई जाती है।  दिवाली के 11 दिन बाद उत्तराखंड में फिर से दिवाली क्यों मनाई जाती है:  भगवान राम जी के वनवास से अयोध्या लौटने की खबर उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में 11वें दिन मिली थी इसलिए दिवाली 11वें दिन मनाई गई। वहीं गढ़वाल के वीर योद्धा माधो सिंह भंडारी अपनी सेना के साथ जब तिब्बत लड़ाई पर गए तब लंबे समय तक उनका कोई समाचार प्राप्त न हुआ। तब एकादशी के दिन माधो सिंह भंडारी सेना सहित तिब्बत पर विजय प्राप्त करके लौटे थे इसलिए उत्तराखंड में इस विजयोत्सव को लोग इगास को दिवाली की तरह मानते हैं।  शुभ दि...

ठंड, बरसात और उसके साथ काफली-भात

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उत्तराखंडी पकवान: काफली/कफली/धबड़ी/कापा   बीते दिनों से जो बारिश और ठंड ने डेरा डाला हुआ था उसके बारे में क्या बताना। उत्तर भारत वालों का तो घर से निकलना मुश्किल हो गया था। घर से क्या अपनी रजाई से निकलना भी बड़े साहस का काम लग रहा था। मौसम के सारे मिजाज थे बारिश, ठंड, बर्फ, सिवाय धूप के। ऐसे तरस गए सूरज की किरणों के लिए कि क्या बताएं! खुद की गरमाहट के लिए भी और बाजार जाकर आंखों की गरमाहट के लिए भी।  खैर, छोड़ो इसे भी! हकीकत तो यह है कि मौसम चाहे जो भी हो काम कहां रुकता है। पुरुषों ने काम पर निकलना है तो महिलाओं को भी अपने ऑफिस और घर दोनों का मोर्चा संभालना है।    ऐसे मौसम में तो सबसे बड़ी आफत हम महिलाओं के लिए होती है क्योंकि बारिश वाले मौसम में घर के काम करने बड़े ही मुश्किल हो जाते हैं। हम रसोई में जाएं तो क्या पकाएं और बालकनी में जाएं तो गीले कपड़े कहां सुखाएं। यही सब चलता रहता है लेकिन मैंने पिछले किसी पोस्ट में कहा था न कि हर महिला बिना एमबीए की डिग्री लिए ही सब मैनेज करती रहती हैं।     सोचती हूं कि कपड़े तो एक बार के लिए आ...

कहीं आपको सर्दी, खांसी, जुकाम तो नहीं!!

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सर्दी, जुकाम, खांसी, गले में खराश से राहत। Relief from cold, cough, common flu and sore throat   पहली लहर से छूटे ही थे कि दूसरी लहर के चपेट में आ गए और दूसरी से किसी तरह पीछा छूटा तो तीसरी लहर मुंह खोले खड़ी हो गई। बस तस्सली इस बात की है कि इस लहर के मुंह में गिरने से पहले वैक्सीन का साथ मिल गया है इसलिए थोड़ा आत्मविश्वास तो बढ़ा है हालांकि सावधानी अभी भी बहुत जरूरी है।       गले में खराश, दर्द, खिच खिच, हल्की खांसी हो तो दिमाग अपनी मुहर बिना किसी जांच के कोरोना पर लगा लेता है। जरा सी छींक आई नहीं कि अपने दिमाग के साथ साथ बाजू वाले का दिमाग भी सबसे पहले अपने विचार बुनने लग जाता है। क्या करें! बाहर का माहौल ही ऐसा है और ऊपर से आजकल का ये मौसम।  इस मौसम में गर्म गर्म चाय पीना हो या बाहर के इस माहौल में काढ़ा पीना सब के सब बहुत आराम देते हैं। लेकिन अगर मौसमी सर्दी खांसी हो, या गले में दर्द या गले में खराश या कोई भी संक्रमण तो घर में मौजूद कुछ चीजों से भी राहत मिलेगी। अदरक, तुलसी और काली मिर्च का सेवन (Consuming Ginger, Basil, Black Pepper/...

उत्तराखंड में मकर संक्रांति और पकवान

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उत्तराखंड में मकर संक्रांति का खानपान      नए वर्ष के आरंभ होते ही पहला उत्सव हमें मकर संक्रांति में रूप में मिलता है। इस संक्रति में सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इसे मकर संक्रांति कहते हैं। इसको उत्तरायणी भी कहा जाता है क्योंकि सूर्य दक्षिण दिशा से उत्तर की दिशा की ओर आता है। इसलिए आज से दिन लंबे और रात छोटी होने लगती है।  मकर संक्रांति का महत्व:   मकर संक्रांति का महत्व हिंदू शास्त्र में इसलिए भी है क्योंकि सूर्य देव अपने पुत्र जो मकर राशि के स्वामी हैं शनि से मिलते हैं जो ज्योतिषी विद्या में महत्वपूर्ण योग होता है। इसलिए माना जाता है कि इस योग में स्नान, ध्यान और दान से पुण्य मिलता है। वैसे इस दिन भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है क्योंकि कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने इस दिन मधु कैटभ दानवों का अंत किया था।    मकर संक्रांति से ही शुभ कार्यों का आरंभ भी हो जाता है क्योंकि उत्तरायण में हम 'देवों के दिन' और दक्षिणायन में हम रात मानते हैं इसलिए मांगलिक कार्यों का आरंभ आज से हो जाता है।    यहां तक कि माना जाता है कि उत्...

ल से लट्टू....बचपन का खिलौना

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ल से लट्टू....बचपन का खिलौना    कुछ याद आया! हां हां अपना बचपन का खिलौना, लट्टू। लकड़ी का बना अंडाकार आकार का, जिसके बीच में एक कील रहती थी और उस कील के चारों ओर एक सुतली लपेट कर झटके से खींचते थे और फिर ये लट्टू गोल गोल घूमने लगता था।      पता नहीं जय को कौन कौन सी धुन सवार हो जाती है। पिछले कई दिनों से लट्टू के पीछे पड़ा हुआ है।      जितनी बार हम घर से बाहर निकले उतनी बार "लट्टू लेकर आना" और जैसे ही घर पहुंचे "मेरा लट्टू लाए?" सुनने को मिलता है। हर बार हम यह कहकर टाल देते हैं कि अब ये किसी दुकान में नहीं मिलता है।     पता नहीं हम क्यों भूल जाते हैं कि आजकल बच्चे जितने जिद्दी हैं उतने सयाने भी इसलिए जय ने तुरंत गूगल के कान में कहा "ल से लट्टू" और गूगल ने भी उतनी ही तेजी से अनेकों लट्टू के चित्र दिखा दिए। बस फिर क्या था अब तो लट्टू लाना ही पड़ेगा।   वैसे जितना उत्साही जय है अपने लट्टू के लिए उतना ही उत्साह मुझे भी है लट्टू को देखने के लिए क्योंकि इसे मैंने अपने बचपन के बाद केवल किताब में ही देखा है। बचपन में मोहल्ले...

कल से पक्का...New Year Resolution

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"कल से पक्का"...New Year Resolution     "बस आज आखिरी, कल से पक्का" ... ये अमूमन मेरे जैसे बहुतों का हाल है। ऐसा बोलते बोलते पूरा साल कब खत्म हो गया पता ही नहीं चला। अब हम 2022 में कदम रख चुके हैं। पिछले साल के अनुभव चाहे जैसे भी रहे हों लेकिन नया साल सबके लिए हमेशा नए सपने और नई उम्मीदों भरा होता है। साथ ही नए साल के आने की जितनी खुशी होती है उतना ही उत्साह अपने रेजोल्यूशन की लिस्ट बनाने में भी आता है।अब इस नए साल में भी सबके अपने अपने सपने और अपने अपने (रेजोल्यूशन) संकल्प।    इन्हीं सब के साथ कुछ रेजोल्यूशन ऐसे हैं जो अधिकतर लोग साल के आखिरी दिन जरूर सोचते है और नव वर्ष से इसकी शुरुआत भी करते हैं, जैसे...रोज व्यायाम करना/ फिट रहना/ वजन कम करना/ मीठा खाना छोड़ना/ खाना काम खाना। इसके अलावा भी बहुत से संकल्प हैं जैसे...ज्यादा पैसे बचाना/ संगीत या कोई भी हॉबी सीखना/ जीवन शैली बदलना/ धूम्रपान या अल्कोहल छोड़ना/ परिवार के साथ समय बिताना/ सोशल साइट पर लगाम वगैरह वगैरह। लेकिन एक सर्वे के अनुसार सबसे अधिक रेजोल्यूशन व्यायाम के लिए बनते हैं।  ...