उत्तराखंडी पकवान: काफली/कफली/धबड़ी/कापा
बीते दिनों से जो बारिश और ठंड ने डेरा डाला हुआ था उसके बारे में क्या बताना। उत्तर भारत वालों का तो घर से निकलना मुश्किल हो गया था। घर से क्या अपनी रजाई से निकलना भी बड़े साहस का काम लग रहा था। मौसम के सारे मिजाज थे बारिश, ठंड, बर्फ, सिवाय धूप के। ऐसे तरस गए सूरज की किरणों के लिए कि क्या बताएं! खुद की गरमाहट के लिए भी और बाजार जाकर आंखों की गरमाहट के लिए भी। खैर, छोड़ो इसे भी! हकीकत तो यह है कि मौसम चाहे जो भी हो काम कहां रुकता है। पुरुषों ने काम पर निकलना है तो महिलाओं को भी अपने ऑफिस और घर दोनों का मोर्चा संभालना है।
ऐसे मौसम में तो सबसे बड़ी आफत हम महिलाओं के लिए होती है क्योंकि बारिश वाले मौसम में घर के काम करने बड़े ही मुश्किल हो जाते हैं। हम रसोई में जाएं तो क्या पकाएं और बालकनी में जाएं तो गीले कपड़े कहां सुखाएं। यही सब चलता रहता है लेकिन मैंने पिछले किसी पोस्ट में कहा था न कि हर महिला बिना एमबीए की डिग्री लिए ही सब मैनेज करती रहती हैं।
सोचती हूं कि कपड़े तो एक बार के लिए आज नहीं तो कल सूख जाएंगे लेकिन बिन खाए तो हम पक्का ही सूख जायेंगे।
वैसे तो इस बरसात और कड़ाके की ठंड में हमारी जीभ से अधिक हमारे मन को तला भुना खाना पसंद है सो एक दो बार कचौड़ी, पकौड़े बना लें या समोसे जलेबी का आनंद भी ले ले और अगर पहाड़ी रसोई की बात करें तो बिना त्योहार के भी इस सर्दियों की बरसात वाले इस मौसम में स्वाले, भूड़े भी बना लें या गहथ, तुअर दाल के परांठे या गुडझोली या तो फिर कुकड़े या माच्छा साग लेकिन सच तो यह है कि इस तरह के खाने को हम रोज तो कतई नहीं खा सकते।
फिर भारी खाना खा कर थक जाएं तो ऐसे मौसम में याद आती है अपने पहाड़ की हरी भरी बगिया की। जब बाजार जाना मुश्किल हो तब घर के सगोड़े (किचन गार्डन) से झट से हरी पालक या राई को कुट कुट चूण्ड (अंगूठे की सहायता से पत्ते तोड़ना) कर उसकी सब्जी बनाना। अब चाहे ये सब्जी सुबह नाश्ते में बनानी हो या फिर दिन में। नाश्ते में बनी सब्जी तो बड़ी ही आम है जो झटपट काटकर बना दें लेकिन इसी को जब दिन में भात के साथ खाना हो तो इसे थोड़ा शाही रूप देकर गढ़वाल कुमाऊं में बनाई जाती है धबड़ी या कफली या कापा।
उत्तराखंड की रसोई में काफली की खास जगह:
उत्तराखंड की रसोई में काफली की खास जगह है तभी तो सर्दियों में खूब चाव से खाई जाती है। इसे बनाने का तरीका शायद सबका अपना अपना हो लेकिन स्वाद अपने पहाड़ का ही देता है।
बस उत्तराखंडी खान पान की खास बात तो यह है कि उत्तराखंड के खेत बागान से कुछ भी निकले वो अपने आप पौष्टिक ही होता है। इसे बड़े ही सादगी से पहाड़ के लोग बनाते थे इसलिए काफली या धबड़ी बनाने के लिए अपने घर के आंगन में ही उगे हरे पत्ते जैसे पालक या राई और मेथी को धो कर उबालते हैं फिर सिल बट्टे में मोटा मोटा पीसते है। उसी सिलबट्टे में लहसुन हरी मिर्च, धनिया और नमक पीस देते हैं। एक कटोरे में आलण (थोड़े से आटा या बेसन का पानी के साथ घोल) बनाना होता है। फिर लोहे की कढ़ाई में थोड़ा तेल डालकर गर्म किया जाता है और थोड़ा सा जख्या (पहाड़ी जीरा) का छौंक दिया जाता है। उसके बाद पीसा हुआ लहसुन मिर्च नमक डालते हैं और साथ ही थोड़ी हल्दी और धनिया पाउडर भी। इनको थोड़ा भूनना होता है और उसके बाद आलण डालते हैं लेकिन साथ ही साथ उसे चलाना भी होता है ताकि ये कढ़ाई में न चिपके। उसके बाद में पीसा हुआ पालक डाल देते हैं। दस पंद्रह मिनट पकने के बाद काफली तैयार हो जाती है जिसे गरमागर्म भात के साथ खाया जाता है।
उत्तराखंड का खानपान बड़ा ही सादा लेकिन पौष्टिकता से भरपूर होता है। सेहत के खजाने के साथ साथ यह सब्जी बड़ी आसानी से इस मौसम में उपलब्ध रहती है इसलिए साधारणतः इस व्यंजन को भी गढ़वाल में बड़ी आसानी से घर घर में बनाया जाता है। एक कारण यह भी है कि उत्तराखंड में महिलाओं के पास बहुत काम होता था जैसे घास काटने जाना, अपने खेत की निराई गुड़ाई करना, गाय बैलों को चराना फिर दोहना, पीने का पानी भरने जाना, साथ ही घर के देखभाल भी। अब इतने सारे कामों के बीच खाना बनाना भी तो एक चुनौती रहती है। इसलिए घर में जो भी मिला बस जल्दी से लेकिन अच्छे से पका कर परोस दिया जाता है जो स्वाद और स्वास्थ्य दोनों के लिए हमेशा उत्तम होता है।
उत्तराखंडी काफली कैसे बनाएं
काफली बनाना बड़ा ही आसान है। पालक भी दो तरह से बाजार में मिलती है। एक देसी पालक जिसके पत्ते लंबे और चौड़े होते हैं और एक पहाड़ी पालक जो छोटी होती है। हम लोग इस मौसम में पहाड़ी पालक ही अधिक प्रिय मानते हैं क्योंकि इसका स्वाद ही अलग और गजब होता है।
अब तो कुछ लोग काफली के साथ अलग अलग सब्जी मिलाकर भी बनाते हैं, जैसे कभी उबली मटर या उबले आलू।
काफली पकाने की आसान विधि: Easy recipe of Kafli
चूंकि अब हर व्यंजन बहुत ही जायकेदार और सलीके के साथ बनाना होता है इसलिए पौष्टिकता से भरपूर उत्तराखंडी काफली को इस प्रकार से आसानी से बनाएं।
- पालक को साफ करके उसे कढ़ाई में उबालने रख दो उसी के साथ लहसुन की कुछ कलियां और एक छोटा टुकड़ा अदरक का भी दाल दो। दस मिनट उबालने के बाद उसे अलग रख दें।
- जिस में काफली बनानी है उसी कढ़ाई में दो बड़े चम्मच बेसन को बिना तेल के भुने। काम आंच पर एक मिनट भुनने के बाद अलग निकाल लें।
- उबली पालक और बेसन एक साथ मिक्सी में पीस लें।
- कढ़ाई में दो चम्मच तेल गर्म करें। एक चम्मच जख्या, सूखी लाल मिर्च और एक चुटकी हींग डालें।
- एक कटा हुआ प्याज डालकर सुनहरा होने तक भूनें फिर एक कटा हुआ टमाटर डालें और भुने।
- स्वादानुसार नमक, एक चौथाई चम्मच हल्दी, एक चम्मच धनिया पाउडर, आधा चम्मच मिर्च डालें। एक मिनट तक मसाला भूने और उसके बाद उबली पालक इसमें मिला दें। थोड़ा पानी डालकर 10 मिनट पकाएं और गरमा गर्म काफली तैयार है।
कफली के फायदे,,, Benefits of Kafli
उबले पालक से बनी उत्तराखंड की एक पारंपरिक व्यंजन है कफली जो खाने में स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक होती है। पालक के साथ अदरक लहसुन, बेसन मिलाने से तो शरीर की रोग प्रतिरोधकता भी बढ़ती है और आजकल के सर्दी जुकाम से राहत मिलती है।
पालक में आयरन, कैल्शियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम, विटामिंस, फोलिक एसिड जैसे सभी पोषक तत्व उपस्थित होते हैं। जिसे हम इस स्वाद के साथ अच्छे से सेवन कर सकते हैं।
पालक में मौजूद विटामिन ए और सी आंखों के लिए बहुत ही अच्छा है जो दृष्टि बढ़ाने में सहायक है इसलिए पालक का सेवन किसी न किसी रूप में करना चाहिए। चाहे काफली हो या कुछ और। पालक में मौजूद कैल्शियम हड्डियों को मजबूती देता है तो साथ ही काम कैलोरी के कारण से वजन भी नियंत्रित रखता है।
काफली के सेवन से रक्त वाहिकाओं का तनाव भी काम होता है इसलिए हाई बल्ड प्रेशर को भी नियंत्रित रखने में सहायक होता है। और साथ ही पालक में उपस्थित बीटा कैरोटीन जैसे पोषक तत्व के कारण शरीर में विकसित हो रही कैंसर कोशिकाओं से भी सुरक्षा देने में सहायक है।
(किसी भी पदार्थ का अत्यधिक सेवन स्वास्थ्य कर लिए सही नहीं है इसलिए अपने विवेक से लें।)
एक -Naari
Waah maza aa gaya
ReplyDeleteZaaykedaar....saath mein sehat ka khyaal ..
ReplyDeleteAaj mai yahee pakate hoon bal.
ReplyDeleteKya baat. Swadisht kaafali itani gunkaari. Guanvardhan ke liye sadhuvaad
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