शिव पार्वती: एक आदर्श दंपति

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शिव पार्वती: एक आदर्श दंपति  हिंदू धर्म में कृष्ण और राधा का प्रेम सर्वोपरि माना जाता है किंतु शिव पार्वती का स्थान दाम्पत्य में सर्वश्रेठ है। उनका स्थान सभी देवी देवताओं से ऊपर माना गया है। वैसे तो सभी देवी देवता एक समान है किंतु फिर भी पिता का स्थान तो सबसे ऊँचा होता है और भगवान शिव तो परमपिता हैं और माता पार्वती जगत जननी।    यह तो सभी मानते ही हैं कि हम सभी भगवान की संतान है इसलिए हमारे लिए देवी देवताओं का स्थान हमेशा ही पूजनीय और उच्च होता है किंतु अगर व्यवहारिक रूप से देखा जाए तो एक पुत्र के लिए माता और पिता का स्थान उच्च तभी बनता है जब वह अपने माता पिता को एक आदर्श मानता हो। उनके माता पिता के कर्तव्यों से अलग उन दोनों को एक आदर्श पति पत्नी के रूप में भी देखता हो और उनके गुणों का अनुसरण भी करता हो।     भगवान शिव और माता पार्वती हमारे ईष्ट माता पिता इसीलिए हैं क्योंकि हिंदू धर्म में शिव और पार्वती पति पत्नी के रूप में एक आदर्श दंपति हैं। हमारे पौराणिक कथाएं हो या कोई ग्रंथ शिव पार्वती प्रसंग में भगवान में भी एक सामान्य स्त्री पुरुष जैसा व्यवहार भी दिखाई देगा। जैसे शिव

मीठी मीठी रस से भरी...जलेबी

मीठी मीठी रस से भरी...जलेबी

   जरा से बादल हुए नहीं कि "शाम को जलेबी लेते आना" का फरमान पहले सुनने को मिल जाता है। मेरे घर का यही हाल है, बच्चे हों या बड़े सभी को जलेबी खाने का मन अपने आप बन जाता है। चाहे बरसात का मौसम हो या फिर ठंड का, गरमा गर्म जलेबी का ख्याल आना तो बड़ा ही समान्य है वो भी उनका जो उत्तर प्रदेश से जुड़े हों।
    पता तो होगा ही भले ही मालपुआ और गुलगुले उत्तर प्रदेश की पारंपरिक और पुरानी मिठाई हो लेकिन जलेबी को 'यू पी वाले' अपना राजकीय मिठाई मानते हैं और मेरे यहां तो नाता बरेली से है जहां लौकी की लौज से लेकर मूंगदाल की रसभरी और लड्डू तो प्रसिद्ध हैं ही साथ ही परवल की मिठाई की मिठास भी बरेली वालों की जुबान पर हमेशा रहती है। ये अलग बात है कि देहरादून में भरवां परवल या परवल की मिठाई मिलना बहुत ही मुश्किल है लेकिन जलेबी का यहीं नहीं बल्कि पूरे भारत के बड़े बाजारों से लेकर छोटे चौक चौराहों में मिलना बड़ा सुगम है खास तौर से उत्तर भारत में।
  आपने भी तो देखा होगा जलेबी बनते हुए जब हलवाई खमीर उठे इस मैदे के घोल को कपड़े के एक पोटली में डालकर गर्म घी में जल्दी जल्दी लेकिन बड़े ही सलीके से गोल गोल कुंडली बनाता है तब तो हलवाई के इस कौशल को सलाम करने का मन करता है और फिर जब कढ़ाई में इन पतली पतली कुंडलियों को तला जाता है तो उसे देखकर ही खुशी के भंवर मन में उठने लग जाते हैं। इसके बाद जब बारी आती है चाशनी की तो इन गोल कुंडलियों को गुनगुनी चाशनी में डब्ब करके डुबोया जाता है तब तो बस लगता है कि जल्दी से झरने से छनकर सीधे मुंह में आ जाए।
  पूरे भारत में प्रसिद्ध इन जलबली जलेबी की लोकप्रियता से आप ये कतई न समझें कि यह भारत की ही देन है। जलेबी का इतिहास भारत में केवल 500 साल पूर्व से ही है। जलेबी मूल रूप से एक अरबी शब्द है और इस मिठाई का असली नाम है जलाबिया। कहते हैं कि जलेबी तुर्की के आक्रमणकारी, कलाकार या व्यापारियों के साथ भारत पहुंची थी। इस मिठाई का उद्भव हम पश्चिम एशिया से मानते हैं जिसका उल्लेख 'किताब-अल-तबीक़' में 'जलाबिया' नामक मिठाई से है। ईरान देश में यह मिठाई 'जुलाबिया या जुलुबिया' के नाम से है और इसके बारे में 10वीं शताब्दी की अरेबिक पाक कला पुस्तक में भी है जिसमें 'जुलुबिया' बनाने की विधि का उल्लेख है। (हौब्सन-जौब्सन शब्दकोश के अनुसार जलेबी शब्द अरेबिक शब्द 'जलाबिया' या फारसी शब्द 'जलिबिया' से आया है।)
   भारत में यही जलेबी अलग अलग नाम से जानी जाती है जैसे दक्षिण भारत में यह ‘जिलेबी’ के नाम से पहचान है तो बंगाल में दूध और खोवा से बनी 'चनार जिल्पी' के नाम से। इंदौर में पनीर से बनी 300 से 500 ग्राम तक मिलने वाली एक जलेबी को 'जलेबा' कहा जाता है और हैदराबाद में खोवा जलेबी जानी जाती है और आंध्र प्रदेश में दाल से बनी 'झंगिरी' (मुगल सम्राट जहांगीर के नाम पर )भी जलेबी का एक स्वरूप ही है जैसे उड़द दाल से बनी इमरती।  
   गुजरात में भले ही जलेबी फाफड़ा रास आता हो लेकिन उत्तर भारत में रसभरी जलेबी गर्म दूध या दही के साथ अधिक जुगलबंदी करती है। वैसे दूध जलेबी को नाश्ते के रूप में खाना अधिक फायदेमंद है क्योंकि इससे पूरे दिन भर की ऊर्जा बनी रहती है या फिर शाम को खाना उचित है। रात को खाने के बाद इसके सेवन से इसकी कैलोरी एडिपोज टिश्यू में बदलकर वजन बढ़ाएगी। (स्वास्थ्य के प्रति सजग लोगों के लिए इसे थोड़े कौशल के साथ घर में बनाना ही उचित है।)
      चित्र सौजन्य: अनुराधा लखनऊ से 

 जलेबी के और भी फायदे है जैसे गर्म दूध में जलेबी खाने से एकाग्रता बढ़ती है और इसका सेवन तनाव कम करने के लिए भी फायदेमंद है। दही जलेबी साथ खाने से पेट भारी नहीं लगता। सर्दी जुकाम से होने वाली सांस की तकलीफ में भी गर्म दूध के साथ जलेबी खाने से आराम मिलता है। अस्थमा के मरीज को एक जलेबी गर्म दूध के साथ खाने से सांस की समस्या से राहत मिलती है लेकिन हम भारतीय शरीर से अधिक मन की मानते हैं इसलिए करारी जलेबी का केवल एक ही टुकड़ा खाना असंभव है और वैसे भी ये मिठाई किसी तीज त्यौहार या उत्सव में खाई जाने वाली नहीं बल्कि 'मन के मौसम की मिठाई' है। 
  खैर, कम ज्यादा खाना तो होता रहेगा लेकिन लाल नारंगी रंग की इन करारी जलेबी की मिठास और लोकप्रियता कभी कम नहीं पड़ेगी क्योंकि जब हम छोटे थे तब भी पहेली के रूप में गाते थे..."टेढ़ी-मेढ़ी गली रस से भरी" और जब बड़े हुए तो व्यंग्य के रूप में सुनाते हैं ... "जलेबी की तरह सीधे" और अब तो बच्चे भी गुनगुनाते हुए नजर आते हैं..."नाम...जलेबी बाई" वैसे ही आज भी जलेबी मां बाबू जी की पसंद के साथ साथ मेरे बच्चों का मीठा स्नैक है और शायद आपका भी।

एक- Naari


Comments

  1. Sach mein munh mai paani aa gaya humare ghar mein bhi jalebi sabki favourite hai

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  2. Barsat or thand ki mithae Jalebi...maza a gaya

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