शिव पार्वती: एक आदर्श दंपति

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शिव पार्वती: एक आदर्श दंपति  हिंदू धर्म में कृष्ण और राधा का प्रेम सर्वोपरि माना जाता है किंतु शिव पार्वती का स्थान दाम्पत्य में सर्वश्रेठ है। उनका स्थान सभी देवी देवताओं से ऊपर माना गया है। वैसे तो सभी देवी देवता एक समान है किंतु फिर भी पिता का स्थान तो सबसे ऊँचा होता है और भगवान शिव तो परमपिता हैं और माता पार्वती जगत जननी।    यह तो सभी मानते ही हैं कि हम सभी भगवान की संतान है इसलिए हमारे लिए देवी देवताओं का स्थान हमेशा ही पूजनीय और उच्च होता है किंतु अगर व्यवहारिक रूप से देखा जाए तो एक पुत्र के लिए माता और पिता का स्थान उच्च तभी बनता है जब वह अपने माता पिता को एक आदर्श मानता हो। उनके माता पिता के कर्तव्यों से अलग उन दोनों को एक आदर्श पति पत्नी के रूप में भी देखता हो और उनके गुणों का अनुसरण भी करता हो।     भगवान शिव और माता पार्वती हमारे ईष्ट माता पिता इसीलिए हैं क्योंकि हिंदू धर्म में शिव और पार्वती पति पत्नी के रूप में एक आदर्श दंपति हैं। हमारे पौराणिक कथाएं हो या कोई ग्रंथ शिव पार्वती प्रसंग में भगवान में भी एक सामान्य स्त्री पुरुष जैसा व्यवहार भी दिखाई देगा। जैसे शिव

गायब होता संतोष ...

गायब होता संतोष...
  मजदूरों की झोपड़ी से गाने की आवाज आई और उस भजन को सुनते ही कुछ याद आया। बस फिर क्या था ! फिल्म तो याद आई ही साथ ही माता का यह रूप भी याद आया। 
  बहुत सालों पहले एक फिल्म आई थी 'जय संतोषी मां'। ये उस समय की शोले जैसी फिल्म की तरह ही ब्लॉक बस्टर थी। जब लोग इस फिल्म को देखने सिनेमा हाल जाते थे तब अपने जूते चप्पल भी बाहर उतारते थे और जब फिल्म में माता संतोषी का आगमन होता था तो फूल और सिक्के भी पर्दे की ओर उछालते थे। 
   और जब 'जय संतोषी मां' फिल्म दूरदर्शन पर आई तो लोग हाथ जोड़े फिल्म को देख रहे थे और जैसे ही माता के दर्शन होते सभी जय संतोषी माता के नारे लगाते। इस फिल्म में तो साधारण से किरदार निभाने वाले अभिनेताओं को भी खूब प्रसिद्धि मिली। 
  चित्र आभार: गूगल

    हालांकि माता संतोषी की पूजा अर्चना मुख्यत: उत्तर प्रदेश में ही की जाती थी लेकिन इसके बाद उनकी महिमा से कोई अछूता नहीं रहा और उसके बाद क्या उत्तर और क्या दक्षिण। माता संतोषी की पूजा पूरे देश में होने लगी। 
  घर की सुख, शांति, समृद्धि और मनोकामना पूर्ण करने के लिए 16 शुक्रवार का व्रत करते थे। स्नान ध्यान के बाद शाम को प्रसाद के रूप में गुड़ चना दिया जाता था। और हां, सबसे जरूरी तो ध्यान रखा जाता था कि खाने में खट्टा वर्जित हो। 
   आज के समय में शुक्रवार के जो व्रत रखे जा रहे हैं उनमें 11, 21, 31, 51 शुक्रवार होते हैं। अब ये जो व्रत होते हैं वे माता वैभव लक्ष्मी के हैं। अभी बहुत से लोग वैभव लक्ष्मी के व्रत करते हुए मिल जाएंगे और उनमें से एक मैं भी हूं लेकिन संतोषी माता के व्रत करते हुए शायद ही इक्का दुक्का लोग आपको मिलें। 
    माता वैभव लक्ष्मी धन, धान्य, ऐश्वर्य की मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी हैं और संतोषी माता संतोष अथवा संतुष्टि की देवी हैं और इसीलिए शायद माता संतोषी के शुक्रवार के व्रत कहीं गायब हैं जबकि मुझे लगता है आज इनकी जरूरत बहुतों को है।
  इस नवरात्र में माता रानी के इस स्वरूप का बिना सुमिरन किए दुर्गा पूजन मेरे लिए शायद अधूरा था। इसीलिए भले ही थोड़ी देर के लिए लेकिन इनके भजन सुनकर वैसा ही अनुभव हुआ जैसे किसी खोई हुई वस्तु का फिर से मिलने पर होता है। 


एक - Naari
  

Comments

  1. Jai mata di, true, phele santosh thaa to santoshi mata abb sab ko vaibhav chaiya ....

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  2. Jai maa santoshi

    Sahi kaha aapne aaj kal kuch aisa hi hai apne society main kyonki hum santoshi mata and santosh dono ko bhulte ja rahe hai jo hamare society ke liye accha nahi hai

    Iske liye kuch awareness badhane ke liye bhi kuch likhiye to aui bhi achcha rahega

    Jai Mata ji

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  3. Short and sweet post. Good message and nice thought.

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