शिव पार्वती: एक आदर्श दंपति

Image
शिव पार्वती: एक आदर्श दंपति  हिंदू धर्म में कृष्ण और राधा का प्रेम सर्वोपरि माना जाता है किंतु शिव पार्वती का स्थान दाम्पत्य में सर्वश्रेठ है। उनका स्थान सभी देवी देवताओं से ऊपर माना गया है। वैसे तो सभी देवी देवता एक समान है किंतु फिर भी पिता का स्थान तो सबसे ऊँचा होता है और भगवान शिव तो परमपिता हैं और माता पार्वती जगत जननी।    यह तो सभी मानते ही हैं कि हम सभी भगवान की संतान है इसलिए हमारे लिए देवी देवताओं का स्थान हमेशा ही पूजनीय और उच्च होता है किंतु अगर व्यवहारिक रूप से देखा जाए तो एक पुत्र के लिए माता और पिता का स्थान उच्च तभी बनता है जब वह अपने माता पिता को एक आदर्श मानता हो। उनके माता पिता के कर्तव्यों से अलग उन दोनों को एक आदर्श पति पत्नी के रूप में भी देखता हो और उनके गुणों का अनुसरण भी करता हो।     भगवान शिव और माता पार्वती हमारे ईष्ट माता पिता इसीलिए हैं क्योंकि हिंदू धर्म में शिव और पार्वती पति पत्नी के रूप में एक आदर्श दंपति हैं। हमारे पौराणिक कथाएं हो या कोई ग्रंथ शिव पार्वती प्रसंग में भगवान में भी एक सामान्य स्त्री पुरुष जैसा व्यवहार भी दिखाई देगा। जैसे शिव

कंजूसी, बचत या मेरा आलस

कंजूसी, बचत या मेरा आलस


   शायद पिछले हफ्ते भर से इस टूथपेस्ट को फेंकने की सोच रही हूं लेकिन हिम्मत ही नहीं हो रही। क्योंकि जितनी बार इसके ढक्कन को खोलकर इस पेस्ट को यहां वहां पिचकाकर और तोड़ मरोड़ करती हूं उतनी बार ये पेस्ट डस्टबीन में जाने से बच जाता है और हर बार इसमें से मेरे ब्रश लायक तो टूथ पेस्ट निकल ही जा रहा है। प्रतिदिन मैं उत्सुकता और संशय दोनों के साथ सोचती हूं कि "क्या आज इस ट्यूब से टूथपेस्ट निकलेगा??" और वो झट से मुस्कुराता हुआ ट्यूब से निकलकर मेरा भ्रम तोड़ देता है।


     हफ्ते भर से यही सोचती रही कि इस ट्यूब को फेंक दूंगी और स्टोर रूम से नया दातुन निकाल लूंगी लेकिन हर एक सुबह फिर से ख्याल आता है कि एक बार और मोड़कर देख लेती हूं अगर पेस्ट निकला तो ठीक है नहीं तो रात को तो नया रख ही लूंगी लेकिन नया रखने की नौबत तो आ ही नहीं रही।  बस थोड़ी सी कोशिश और ब्रश के मुखड़े पर लाली सज गई। लगता है, हर सुबह ही क्या हर रात में भी मेरे ब्रश का साथी बनने की जिद्द में है।


    दो तीन दिन पहले तो लगा कि इस ट्यूब में पेस्ट कब खत्म हो जाए पता नहीं लेकिन अब उम्मीद बंध गई है कि जितनी बार इसे पिचकाऊंगी उतनी बार इसे से टूथ पेस्ट निकल जाएगा। ये बावला मन भी न! बहुत जल्दी किसी से भी उम्मीद बांध लेता है!!


   विकास परेशान हैं लेकिन इस ट्यूब से नहीं बल्कि मेरी इस नई बचकानी हरकत से क्योंकि जिस ट्यूब में मुझे उम्मीद लगती है वही ट्यूब विकास को कूड़ा दिखती है जिसे मैं बाहर नहीं फेंक रही हूं। वैसे विकास परेशान से अधिक गुस्सा हो रहे हैं क्योंकि उन्हें  मेरे काम कंजूस और असभ्य लग रहे हैं। मुझे तो लगता है विकास शायद चिढ़ रहे हैं या कहा जाए खिसिया रहे हैं क्योंकि अपने बाथरूम में नया टूथपेस्ट जो नहीं दिख रहा है लेकिन एक बात तो है विकास खिसियाहट में खंबा नहीं नोचते इसलिए हर सुबह दूसरे बाथरूम में जा कर पेस्ट कर रहे है। सोचती हूं कि जब इतनी असुविधा लग रही हो तो किसी का इंतजार नहीं करना चाहिए झट से काम कर लेना चाहिए। 


  सच कह रही हूं वैसे ऐसा पहले कभी हुआ नहीं कि किसी भी टूथपेस्ट को खाली होते ही कूड़ेदान में न डाला गया हो लेकिन कभी कभी पता नहीं क्या आता है दिमाग में या मन में। शायद आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ होगा कि जब नहाने के लिए जाओ तो साबुन की अंतिम सांस तक उपयोग करते रहो जब तक कि वह साबुनदानी के छेदों से गलकर पानी में खो नहीं जाता या फिर शैंपू की बोतल में बार बार पानी डालकर झाग के अंतिम बुलबुलों तक बाल धोते रहना। यहां तक कि किसी प्रिय लिपस्टिक या नेलपॉलिश का भी हाल ऐसे ही होता है और कभी कोई कपड़ा तो इतना प्रिय हो जाता है कि उसे छोड़ने या फेंकने का भी मन नहीं होता भले ही कितना भी घिस गया हो या फट गया हो। मुझे तो लगता है कभी पुराने बर्तन या फर्नीचर से भी इतना मोह हो जाता है कि उसे भी दूर करने की हिम्मत नहीं पड़ती। 

   अब इसे क्या कहा जाए,,कुछ लोगों के लिए तो ये कूड़ा इकट्ठा करने की आदत और किसी के लिए ये मोह माया और किसी के लिए भारतीयों की कंजूसी, बचत या आलस का मिलजुला रूप।
   Optimum Utilization (इष्टतम उपयोग) वाली मेरी इस हरकत को पागलपन कहो, बचत कहो या मेरी कंजूसी लेकिन ये किसी का आलस तो जरूर है और इसको दूर करते हुए 8 -9 दिन के बाद इस टूथपेस्ट को विदा कर ही दूंगी क्योंकि आज लग रहा है कि ये सुबह से कह रहा है कि "बहन, बक्श दे अब मुझे! मेरे सारे प्राण निकल चुके हैं।"

   ( आशा करती हूं कि आप भी optimum utilization की थ्योरी को एक हद तक ही अपनाएंगे।)



एक - Naari


Comments

  1. 😂😂mere sath bhi aisa hi hota hai

    ReplyDelete
  2. Mere Saath bhi hua haaa .I can't stop laughing

    ReplyDelete
  3. Sahi likha hai bilkul 😃😃
    Aur bhasha badi sunder istemaal ki hai Reena ji.

    Ati-uttam 👍

    ReplyDelete
  4. Bahan baksh de...hahaha...too good... like it

    ReplyDelete
  5. Hum bhi aisa kae baar kar lete hain apne laziness se ki ab kaun lekar aaye isi se kaam chala lo...nice piece to read

    ReplyDelete
  6. Sabke sath aisa hi hota hai...😀😀😀

    ReplyDelete
  7. 😁😁mai bhi aisa hi karti hoon.

    ReplyDelete
  8. oh to aap bhi is adat ka shikar hai😀

    ReplyDelete
  9. हर अलबेली औरत की कहानी।

    ReplyDelete
  10. My wife also does the same thing and my reactions are the same... Really funny but realistic... Nice post..

    ReplyDelete
  11. Bahut badhiya Sab ke sath aisa hi hota hai

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

उत्तराखंडी अनाज.....झंगोरा (Jhangora: Indian Barnyard Millet)

उत्तराखंड का मंडुआ/ कोदा/ क्वादु/ चुन

मेरे ब्रदर की दुल्हन (गढ़वाली विवाह के रीति रिवाज)