थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग-2

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थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग- 2   पिछले लेख में हम हरिद्वार स्थित चंडी देवी के दर्शन करके आगे बढ़ रहे थे यानी कि उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल से अब कुमाऊँ मंडल की सीमाओं में प्रवेश कर रहे थे बता दें कि उत्तराखंड के इस एक मंडल को दूसरे से जोड़ने के लिए बीच में उत्तर प्रदेश की सीमाओं को भी छूना पड़ता है इसलिए आपको अपने आप बोली भाषा या भूगोल या वातावरण की विविधताओं का ज्ञान होता रहेगा।     कुमाऊँ में अल्मोडा, नैनीताल, रानीखेत, मुक्तेश्वर, काशीपुर, रुद्रपुर, पिथौरागढ, पंत नगर, हल्दवानी जैसे बहुत से प्रसिद्ध स्थान हैं लेकिन इस बार हम केवल नैनीताल नगर और नैनीताल जिले में स्थित बाबा नीम करौली के दर्शन करेंगे और साथ ही जिम कार्बेट की सफ़ारी का अनुभव लेंगे।   225 किलोमीटर का सफर हमें लगभग पांच से साढ़े पांच घंटों में पूरा करना था जिसमें दो बच्चों के साथ दो ब्रेक लेने ही थे। अब जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे बच्चे भी अपनी आपसी खींचतान में थोड़ा ढ़ीले पड़ रहे थे। इसलिए बच्चों की खींचतान से राहत मिलते ही कभी कभी मैं पुरानी यादों के सफर में भी घूम रही थी।     कुमाऊँ की मेरी ये तीसर

कृष्ण जन्माष्टमी: भगवान कृष्ण के साथ माता यशोदा का पूजन

कृष्ण जन्माष्टमी:  भगवान कृष्ण के साथ माता यशोदा का पूजन (Krishna Birthday)
      Pic courte: freepik

     कृष्ण जन्माष्टमी है तो कृष्ण का ही सुमिरन होगा। भादौ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान कृष्ण का जन्मदिवस एक पर्व होता है जिसे घर घर में उत्सव के रूप में मनाया जाता है। चाहे मंदिर हो, घर हो, पास पड़ोस का आंगन हो या किसी गली मोहल्ले का मैदान कृष्ण की लीलाओं की झांकी तो दिख ही जाती है। जितनी लीलाएं उतने नाम। चारों ओर बस कृष्ण-कृष्ण और बस राधे-राधे।

    कृष्ण की तो इतनी विशेषताएं हैं कि उनको गिना नहीं जा सकता और न ही उनके जैसा बना जा सकता है क्योंकि वे तो मानव अवतार में स्वयं भगवान विष्णु जी हैं और भगवान बनना हम मानवों के बस की बात नहीं तो बस आंख मूंद कर उनका स्मरण करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि जिसप्रकार से भगवान कृष्ण ने लोगों की संकट में सहायता की वैसे ही वे हम सभी के कष्ट हरेंगे।

   लेकिन कृष्ण जन्माष्टमी में हम किसी भी दुख या कष्ट के लिए सुमिरन नहीं करते। जन्माष्टमी तो उत्सव होता है भगवान कृष्ण के जन्म का तो इस समय जो भावनाएं होती है उनमें कृष्ण नहीं कान्हा होते हैं और बालस्वरूप कान्हा की ही नटखट बाल लीलाएं याद आती हैं। उनके जो स्वरूप हमें बचपन से चित्रों में दिखे हैं, उनमें वे मोरपंख लगाए कभी पालने में झूलते हुए तो कभी पैर का अंगूठा मुंह में लिए दिखते हैं और कभी माखन से भरी मटकी से माखन निकालते हुए। कभी सखाओं संग मटकी फोड़ते हुए तो कभी बलदाऊ के साथ माखन खाते हुए भी दिखे। कभी घुटनों के बल चलते हुए लड्डू पकड़ते हैं तो कभी एक पैर को दूसरे पैर के आगे मोड़कर तिरछी कमर किए बंसी बजाते हुए नजर आते हैं और कभी गायों के साथ वृक्ष के नीचे बैठे मिलते हैं। हर एक चित्र हर एक मुद्रा मन मोहिनी होती है कृष्ण की ओर इसी मोह में जन्माष्टमी के दिन हर एक मां अपने पुत्र को कृष्ण के रूप में देखती है और उसका भी कृष्ण जैसा रूप बनाती है लेकिन हर एक मां क्या कभी यशोदा मैय्या भी बनी है जिन्होंने भगवान कृष्ण का लालन पालन किया।
   सभी को पता है कि भगवान कृष्ण ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया था किंतु गोकुल के नंद बाबा की धर्मपत्नी यशोदा ने उनका पालन पोषण किया। आज भी जब मां और पुत्र के परस्पर स्नेह की बात आती है तो ममतामयी यशोदा का चित्र अपने आप सामने घूमने लगता है। 
   अगर कृष्ण स्वयं एक आदर्श हैं तो मैय्या यशोदा ने भी एक आदर्श मां की जिम्मेदारी पूरी की क्योंकि जितने नटखट और चंचल कान्हा जी थे उतनी ही धैर्यवान और शील यशोदा भी थी तभी तो अपने पुत्र को अच्छे से समझने और संभालने में वे कभी पीछे नहीं हटीं। जबकि आज के समय में बच्चों को समझना और संभालना बहुत बड़ी चुनौती है। आज 
भी मां की ममता और वात्सल्य में कोई कमी नहीं है लेकिन फिर भी आज बच्चा कान्हा बना तो है लेकिन उसकी चंचलता को संभालने के लिए यशोदा जैसा बनना टेढ़ी खीर है।

   भगवान कृष्ण ने भले ही अपनी कई लीलाएं रची लेकिन माता यशोदा के साथ जो भी लीलाएं प्रभु ने दिखाई उसमें भी यशोदा का मातृ भाव कभी कम नहीं हुआ। चाहे ऊखल बंधन हो, माखन चोरी हो या कान्हा के मुख में ब्रह्मांड दर्शन हो जितनी भी घटनाएं हुई उसके बाद भी कभी यशोदा ने कृष्ण को प्रभु की भांति भक्ति नहीं अपितु पुत्र रूप में वात्सल्य और स्नेह किया।

    बताया गया है कि माता यशोदा ने कृष्ण का 11 वर्ष 6 माह तक पालन पोषण किया और फिर कृष्ण अकरूर जी के साथ कर्मपथ पर आगे बढ़ गए। इस बिछोह की घड़ी में भी यशोदा का ह्रदय द्रवित तो हुआ लेकिन साथ ही पुत्र को कर्मपथ में आगे बढ़ने पर यशोदा ने किसी प्रकार का बंधन नहीं किया। हां, पुत्र से बिछड़ने के वियोग में और कंस की रंगशाला में भेजने के कारण चिंतित और व्यथित तो हुई थीं लेकिन बाद में हिम्मत के साथ पुत्र को मथुरा के लिए विदा किया। यही यशोदा जो मां की ममता और पुत्र मोह से बंधी थी ने कृष्ण जैसे कर्मवीर की मां होने का भली भांति परिचय दिया। भले ही कृष्ण भगवान थे लेकिन उनके संस्कार और शिक्षा का पहला स्त्रोत यशोदा माता ही थी। 
    
    कहा गया है कि कृष्ण जहां गए वहां से आगे बढ़ते गए कभी पीछे मुड़कर उस जगह वापिस नहीं गए। भले ही कृष्ण अपने इस अवतार में समय के साथ आगे बढ़ते गए लेकिन यशोदा की ममता कभी पीछे नहीं हटी। उनके ह्रदय में तभी शीतलता मिली जब पुत्र कृष्ण का कुशलक्षेम लेने वे कई वर्षों बाद भी कुरुक्षेत्र पहुंची। 

    आज लोग अपने परिवार के बच्चों से भी औपचारिक प्रेम रखते हैं वहीं यशोदा ने तो माता देवकी और वासुदेव के पुत्र को भी एक माता से बढ़कर प्रेम और वात्सल्य दिया। इसी के फलस्वरूप भगवान कृष्ण ने भी उनको उतना ही मान, सम्मान और प्यार दिया। तभी तो माना जाता है कि कृष्ण को तीन चीजों से प्रेम है, यशोदा, मुरली और राधा। भगवान कृष्ण ने भी यशोदा के द्वारा किए गए इस अपार स्नेह और तप का मान रखते हुए अपनी लीला पृथ्वीलोक में समाप्त करने से पहले ही यशोदा को गोलोक का वासी बनाया। 

    किसी ने माता यशोदा का दिव्य रूप बहुत पहले ही जान लिया था तभी तो इंदौर में 222 साल पुराना एक मंदिर भी यशोदा माता का ही है जहां मान्यता है कि निसंतान दंपति यहां आकर माता यशोदा से पुत्र सुख आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

   आज के समय में यह अवश्य है कि कृष्ण नहीं दिखते हैं लेकिन कृष्ण जैसा नटखट स्वरूप तो शायद हर घर में दिखाई देगा। ऐसे ही यशोदा माता की तरह वात्सल्यपूर्ण, शालीन, शांत, सहनशील, हिम्मत और धीरज रखने वाली माताएं दिखना भी थोड़ा मुश्किल है। हां लेकिन प्रेम और स्नेह सभी माताओं का अपने पुत्र के प्रति हमेशा मिलेगा। 
  पता नहीं क्यों इस जन्माष्टमी में कृष्ण से अधिक मुझे यशोदा माता याद आ रहीं हैं कारण शायद मेरा पुत्र हो जिसे मैं कृष्ण रूप में देख रही हूं क्योंकि वो भी कृष्ण की भांति ही बहुत चंचल और नटखट है जिसकी चंचलता के प्रति मेरी सहनशीलता अब शिथिल पड़ गई है और इसीलिए सोच रहीं हूं कि कृष्ण तो उसे बना दूं लेकिन स्वयं यशोदा कैसे बनूं??

    फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की छठ को माता यशोदा का जन्मदिन मनाया जाता है लेकिन यशोदा का माता के रूप में जन्म भी तो जन्माष्टमी के दिन ही हुआ। इसीलिए, जन्माष्टमी में पुत्र को कृष्ण रूप में देखकर लगता है कि बालक में शायद कुछ गुण कृष्ण के आयें उसी भांति इस जन्माष्टमी में क्या पता माता यशोदा के गुण भी प्राप्त करें। 

    इसीलिए जन्माष्टमी में भगवान कृष्ण, अपने लड्डू गोपाल की पूजा अर्चना करें, झूला झुलाएं, माखन मिश्री का भोग लगाएं, भजन करें लेकिन साथ ही यशोदा माता का भी सुमिरन करें जिन्होंने स्वयं भगवान कृष्ण का पालन किया।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं।।

   नंद में आनंद भयो, जय हो नंद लाल की।
हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की।।

एक - Naari

Comments

  1. ममता पूर्ण अति सुंदर लेख।

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  2. This is Beauty of Hindu Dharma that we can love god as well as we can have any Beautiful relationship with God!!

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