International Women's Day

Image
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस International Women's Day  सुन्दर नहीं सशक्त नारी  "चूड़ी, बिंदी, लाली, हार-श्रृंगार यही तो रूप है एक नारी का। इस श्रृंगार के साथ ही जिसकी सूरत चमकती हो और जो  गोरी उजली भी हो वही तो एक सुन्दर नारी है।"  कुछ ऐसा ही एक नारी के विषय में सोचा और समझा जाता है। समाज ने हमेशा से उसके रूप और रंग से उसे जाना है और उसी के अनुसार ही उसकी सुंदरता के मानक भी तय कर दिये हैं। जबकि आप कैसे दिखाई देते हैं  से आवश्यक है कि आप कैसे है!! ये अवश्य है कि श्रृंगार तो नारी के लिए ही बने हैं जो उसे सुन्दर दिखाते है लेकिन असल में नारी की सुंदरता उसके बाहरी श्रृंगार से कहीं अधिक उसके मन से होती है और हर एक नारी मन से सुन्दर होती है।  वही मन जो बचपन में निर्मल और चंचल होता है, यौवन में भावुक और उसके बाद सुकोमल भावनाओं का सागर बन जाता है।  इसी नारी में सौम्यता के गुणों के साथ साथ शक्ति का समावेश हो जाए तो तब वह केवल सुन्दर नहीं, एक सशक्त नारी भी है और इस नारी की शक्ति है ज्ञान। इसलिए श्रृंगार नहीं अपितु ज्ञान की शक्ति एक महिला को विशेष बनाती है।   ज्...

स्वतंत्रता दिवस...उड़ना अभी बाकी है।।

स्वतंत्रता दिवस...उड़ना अभी बाकी है।।
    74 साल तो हो चुके हैं भारत को आजाद हुए लेकिन आज भी स्वतंत्रता दिवस मनाने की खुशी भारत के हर नागरिक को पहले जैसी ही है। आज भी जब इस दिन लालकिले पर लहराते हुए तिरंगे को देखते हैं तो लोग उतने ही गर्वित होते हैं जितना आजादी के समय हुआ करते थे और जब बैंड के साथ राष्ट्रीय गान की धुन कानों में पड़ती है तो दिल में देश के प्रति समर्पण का भाव स्वतः ही उमड़ पड़ता है और इसी के साथ ही याद दिलाता है भारत के अनेक वीरों को जिनके अथक प्रयासों से हमें कभी मुगल तो कभी अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली।
     भारतीयों का स्वतंत्रता दिवस में इसप्रकार से खुश होना, गर्वित होना, उमंग से भर जाना बड़ा ही सामान्य है क्योंकि प्रत्येक नागरिक चाहे वह किसी भी देश का हो अपने देश के प्रति प्यार और समर्पण का भाव हमेशा दिल में संजोए रखता है और अपने देश भक्ति का ये उत्साह तो तब और भी दुगना हो जाता है जब वह परदेस में हो। 
   ऐसा ही जज्बा और जोश हमने अभी हाल ही में आयोजित ओलंपिक खेलों में भी दिखाई दिया। जब भारत के खिलाड़ी टोक्यो 2020 प्रतिभाग के लिए गए। उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था कि वे किसी युद्ध में निकले हैं और जब उन्हें मेडल दिया जा रहा था तो ऐसा प्रतीत हुआ कि राजा का राज्याभिषेक हो रहा है और एक बार फिर पीछे से जो राष्ट्रीय ध्वज ऊंचा उठाया जाता है उस क्षण के अनुभव का बखान तो किसी भी देशवासी के लिए करना बहुत ही मुश्किल होता है। सच में, सुनहरे पदक के साथ किसी और देश की धरती में अपना राष्ट्रगान की धुन सुनना हर देशवासी के लिए कितना गौरवान्वित का क्षण होता है न!
    भले ही अन्य देशों के मुकाबले में भारत को कम पदक मिले लेकिन प्रदर्शन पहले से बेहतर ही रहा। 30 से अधिक प्रकार के तरह तरह के खेल (Aquatics, Archery, 
Athletics, Badminton, Baseball and Softball, Basketball, Canoeing, Boxing, Cycling, Equestrianism, Fencing, Football, Gymnastics, Golf, Handball, Hockey, Judo, Karate, Modern Pentathlon, Rowing, Rugby, Sailing, Skateboarding, Shooting, Sport Climbing, Surfing, Taekwondo, Table tennis, Tennis, Triathlon, Volleyboll, Weightlifting, Wrestling) थे और भारत की ओर से 18 खेलों की 69 प्रतिस्पर्धाओं में प्रतिभाग किया जो पिछले ओलंपिक से तो अधिक था। इसीलिए धीरे धीरे ही सही देश का खेलों में आगे बढ़ना अच्छा संकेत भी दे रहा है। 

भारत खेल में पीछे क्यों??

    मेडल लाने की अपेक्षाएं तो बहुत थी लेकिन सोचा जाए तो क्या हमारे देश में खेलों को उतना बढ़ावा मिलता है जितना कि अन्य देशों को! 
     कहते हैं कि तुलना नहीं करनी चाहिए सिर्फ अपना आगे बढ़ते रहना चाहिए किंतु कभी कभी तुलना से हम सीखते भी हैं जो आगे बढ़ने के लिए आवश्यक भी है। तुलना के लिए भले ही भारत की आबादी के समान वाला देश चीन हो या छोटी सी जनसंख्या वाला देश क्रोशिया। अन्य देशों की तुलना में भारत 48वें स्थान पर रहा जबकि चीन दूसरे लेकिन हम फिर भी इसी में संतुष्ट हैं कि हमारे खिलाड़ी खेलों के सबसे बड़े महायुद्ध में कम से कम प्रतिभाग करने तो पहुंचे क्योंकि भारत में खिलाड़ी किसी व्यवसायिक पृष्ठभूमि (प्रोफेशनल बैकग्राउंड) से नहीं अपितु खेत खलियान, गली मुहल्ले या सड़को से सीखते हुए राष्ट्रीय खेलों तक पहुंचते हैं। 
     सच तो यह है कि हमारे देश में केवल पढ़ाई के प्रति ही जोर दिया जाता है। स्कूल कॉलेज की प्रतिस्पर्धा तो केवल किताबी ज्ञान तक सीमित हो चुकी है। जितने भी स्कूल या कॉलेज हैं वे केवल 90% तक की होड़ में एक दूसरे को पछाड़ने की सोचते हैं। 
    अभिभावक खेलों को उनके भविष्य के रोजगार (करियर) की भांति नहीं सोचते हैं और बच्चे पढ़ाई के अनगिनत पाठ और दबाव में उलझे रहते हैं। इसके ऊपर सरकार अपने मंत्रालय में तो खेलकूद को केवल एक खानापूर्ति तक ही समझती है, आवश्यक अंग नहीं मानती। फिर ऐसे में बिना सुविधाओं और बिना बढ़ावा मिले सिर्फ गिने चुने लोग ही तो खेलों में आगे मिलेंगे। 
    फिर ऐसी परिस्थिति में तो यहां बच्चों को केवल इंजीनियर, डॉक्टर, आईएएस पीसीएस अफसर बनना होता है कोई खिलाड़ी नहीं। हां कुछेक खेल जैसे क्रिकेट और बैडमिंटन के लिए अभी भी युवा उत्साहित दिखते तो हैं लेकिन करियर के लिए विकल्प खेल को विकल्प नहीं मानते। 
      इस ओलंपिक में जाना कि अन्य देश के कुछ खिलाड़ी ऐसे भी थे जो पेशे से डॉक्टर या इंजीनियर भी हैं लेकिन खेल के प्रति अपने लगाव और निष्ठा से ओलंपिक तक पहुंचे हैं। हालांकि यह भी कहना गलत नहीं होगा कि कितने ही देश ऐसे भी हैं जिनकी जनसंख्या बहुत कम है इसीलिए वहां खेल के प्रति उत्साह, तरह तरह की सुविधाएं और आधुनिक प्रशिक्षण बचपन से ही दिए जाते हैं। ऐसे देश में खेलकूद भी उतना ही महत्वपूर्ण समझा जाता है जितना कि पढ़ाई। जबकि भारत एक विकासशील देश है और यहां के अधिकतर खिलाड़ी गरीब या निम्न मध्य वर्ग से ही आते हैं साथ ही खेलकूद में उतनी रुचि नहीं लेते हैं। उन्हें कई बार न तो उचित पोषण मिलता है, न उचित स्थान और न ही अनुभवी कोच और कई बार भौगौलिक विषमताएं ऐसी होती हैं कि उनमें स्टेडियम या अन्य सुविधाएं देना कठिन होता है फिर ऐसे में हमें इस प्रकार के अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में बहुत अधिक अपेक्षाएं रखना सही है क्या!! 

खेलों में बढ़ती संभावनाएं

      इसीलिए टोक्यो 2020 के ओलंपिक खेलों में जीते गए 7 पदक भी बहुत बड़ी उपलब्धि है। साथ ही समस्त प्रतिभागी और पूरी टीम प्रशंसा के पात्र हैं। एक और बात कि जिसप्रकार से सरकार और अन्य संस्थाएं खिलाड़ियों का सम्मान पदक, नौकरी, धन और अन्य लाभ देकर प्रोत्साहित कर रही है वह निश्चय ही आने वाले समय में भारत को और भी कई सुनहरे पंख देगा।
क्या ऐसा सोचा जा सकता है,,,

- विद्यालय में खेल एक अनिवार्य विषय बनाया जाए जहां बच्चों को कोई भी एक खेल का चुनाव आवश्यक हो।
- पढ़ाई के लिए जिस प्रकार की प्रतिस्पर्धा होती है वैसे ही खेल के प्रति भी हो।
- कॉलेज अपने विद्यालय के खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करे।
- अभिभावक बच्चों को केवल पढ़ाई के लिए ही नहीं बल्कि खेल के लिए भी प्रोत्साहित करें।
- सरकार खेल कूद को रोजगार के विकल्प के रूप में विकसित करे। 
- कोई भी राज्य किसी भी एक खेल को अपना राज्य खेल बना कर मजबूत युवाओं की टीम बनाएं। 
- गांव गांव तक ऐसे युवाओं को मौका दिया जाए जो सुविधाओं के अभाव में आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। 
- भौगौलिक विषमताओं के कारण अगर स्टेडियम बनना कठिन हो तो ऐसे प्रशिक्षण स्थल बनाएं जो अन्य खेलों के लिए उपयुक्त हों।
- प्रशिक्षण शुल्कमुक्त और सुविधाओं के साथ हो जहां खिलाड़ियों का चयन भी बिना भेदभाव के हो।
- खेल कूद का वित्तीय बजट बढ़ाकर ऐसी सुविधाएं उपलब्ध कराए जहां अच्छा पोषण मिले, प्रशिक्षण स्थल मिले, अनुभवी कोच मिले और प्रोत्साहन मिले।

    (वैसे यह तभी संभव है जब सरकार के पास खेल कूद के लिए पैसा भी हो जो शायद है भी। तभी तो ओलंपिक पदक विजेताओं पर धनवर्षा हो रही है। खैर, सोच रही हूं कि अगर इस तरह से पैसा अगर पदक के पहले भी खेल कूद पर किया गया होता तो शायद कुछ और एक खिलाड़ी भी आगे आए होते जो शायद अभी भी अपने खेत या सड़कों पर नंगे पैर दौड़ लगा रहे हैं या जमीन में भूखे ही कुश्ती लड़ रहे हैं या गहने या समान बेचकर अपना टूलकिट या खेल के उपकरण ले रहे हैं।) 

   आज भी देश में बहुत से ऐसे गंभीर पहलू हैं जिन्हें आजादी के बाद से हमारा देश अभी भी जूझ ही रहा है जैसे गरीबी, बेरोजगारी लेकिन यह कहना भी गलत नहीं यहां होगा की आजादी के बाद से हम तकनीकी और वैश्विक तौर पर आगे बढ़े भी हैं। यह सच है कि हम आजादी के साथ आगे बढ़ रहे हैं और इस वर्ष तो 75 वां स्वतंत्रता दिवस भी मना रहे हैं लेकिन कई प्रकार का बोझ अभी भी सिर पर लदा हुआ है और सच मानो तो बोझ के साथ किसी भी रेस में प्रतिभाग तो किया जा सकता है लेकिन जीता नहीं जा सकता और अब तो समय उड़ने का है इसलिए तैयार करें ऐसे भारत को जो केवल दौड़ न लगाएं बल्कि हर क्षेत्र के सुनहरे पंख लिए आजादी की उड़ान भरें।


स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं।।

   एक - Naari



Comments

  1. सटीक विश्लेषण...

    ReplyDelete
  2. Waah... bilkul sahi vichaar hai..bachcho ka khel khelne se kya bhawishya hoga. is par sochna to banta hi hai

    ReplyDelete
  3. बहुत ही सही विचार है,शिक्षा के साथ-साथ खेलो को भी महत्व देना चाहिए, पर हमे अधिकत्तर ये ही बताया जाता है "पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे तो बनोगे खराब"

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

उत्तराखंडी अनाज.....झंगोरा (Jhangora: Indian Barnyard Millet)

मेरे ब्रदर की दुल्हन (गढ़वाली विवाह के रीति रिवाज)

शिव पार्वती: एक आदर्श दंपति