नवरात्र में शक्ति पूजन और उसके बाद....
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साल में दो बार आने वाले नवरात्र हर किसी को कितनी सकारात्मकता और ऊर्जा दे जाते हैं, इसका अनुभव तो आपने भी किया होगा। नवरात्र चाहे चैत्र के हो या शारदीय, हर छः माह में आने वाले ये नौ दिन आगे आने वाले दिनों के लिए हमे नई आशा और ऊर्जा से भर देते हैं। इन नौ दिनों का समय चाहे कोई भी हो किंतु एक बात बड़ी ही सामान्य है और वह ये है कि इन नौ दिनों के बाद आपको मौसम बदला बदला सा मिलेगा। जैसे चैत्र के नवरात्र के साथ ग्रीष्म ऋतु का आना और शारदीय नवरात्र के साथ शरद ऋतु का आना। ऐसा लगता है कि ईश्वर हमें संदेशा देता है कि हम इन नौ दिनों में ध्यान, तप, सात्विकता से तैयार हो जाए प्रकृति के अनुरूप अपने को ढालने के लिए।
पूरे साल भर भले ही ईश्वर के आगे ना खड़े हों लेकिन नवरात्री में तो कोई विरला ही होगा जो माता के आगे हाथ जोड़े खड़ा ना मिला हो। हर किसी का शीश झुका होता है एक मूर्ति, एक फोटो, एक कागज के सामने और अगर कहीं भी नहीं गए तो भी मन ही मन तो माँ का सुमिरन तो होता ही है। कहने का अभिप्राय सिर्फ यही है कि हम किसी ना किसी रूप में आदि शक्ति को नमन तो अवश्य ही करते हैं। अब जब सभी लोग इन नौ दिन एक शक्ति के आगे नतमस्तक रहते हैं तो ये भी लोगों को अच्छे से समझ है कि ये आदि शक्ति भी एक नारी ही है, एक स्त्री शक्ति है जिसे हम इन नौ दिनों में अलग अलग स्वरूपों में पूजते हैं।
भारत जैसे देश में जब इतना सम्मान इतना पूजन एक स्त्री शक्ति को दिया जाता है तो फिर उसी देश में कहीं कहीं स्त्री के प्रति इतना क्रूर व्यवहार या कहें अत्याचार क्यों है? कहीं पर बलात्कार, तो कहीं पर मार, कहीं पर दहेज हत्या तो कहीं पर कन्या भ्रूण हत्या, कभी शरीरिक उत्पीड़न तो कभी सामाजिक उत्पीड़न और साथ ही साथ मानसिक उत्पीड़न भी। इतना क्रूर अत्याचार उसी शक्ति स्वरूपा एक एक स्त्री पर! क्या ये सही है? इतना मान सम्मान नौ दिन के लिए और उसके बाद! इन दिनों तो कन्याओं के प्रति स्नेह और श्रद्धा दोनों और भी बढ़ जाते हैं, लेकिन क्या नवरात्र के बाद भी हमारे अंदर ये भावनाएं ऐसे ही बनी रहती हैं?
एक नारी को ही क्यों, उस छोटी सी मासूम कन्या के हाल भी बेहाल से हैं जिन्हे हम अष्टमी और नवमी में अपने घर में बुला बुला कर उनके नन्हे-नन्हे पैरों को धोते हैं, उन्हे पूरे श्रद्धा भाव से घर में माँ के रूप में पूजते है, उन्हे जीमाते हैं, लाल चुनरी उढ़ाते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं। उसी मासूम सी कन्या को कुछ लोग बहुत ही बेरहमी से अपनी कुदृष्टि से मैला करते है। किसी की लाडली बिटिया को अपनी बुरी शरीरिक हवस के लिए शिकार करते हैं और उसके कोमल मन और शरीर दोनों का ह्रास करते हैं। ये इतने क्रूर होते हैं कि फूल जैसी सुकोमल बेटियों को मसलने के लिए लालायित रहते हैं।
कुछ ऐसे भी भक्त हैं जो माता को तो पूजते हैं, लेकिन गर्भ में आई कन्या को साक्षात देखना नही चाहते। ऐसा क्यों कर रहे हैं ये लोग? क्यों माँ के अनेक रूपों को नही पहचान रहे हैं, ये लोग? इन नौ दिनों में हर दिन तो माँ के अलग-अलग स्वरूपों को देखते हैं, उनको पूजते हैं लेकिन जब मैय्या जी का छोटा सा स्वरूप धरती पर जन्म लेता है तो कुछ तो इसे झाड़ियों में, कुछ कूड़े के ढे़र में, कुछ नालियों में तो कुछ इसे किसी भी इमारत के एक कोने में अनाथों की तरह छोड़ देते हैं। ये लोग तो भूल बैठे हैं कि यही देवी स्वरूप कन्या जिन्हे यही लोग कभी बोझ तो कभी कुकर्मों का दंड मानते है, नवरात्रि में इनके घर की शोभा बढ़ाएंगी।
आज नवरात्रि की पंचमी है अभिप्राय है कि आज नवरात्र का पाँचवा दिन है। इस दिन देवी के नौ रूपों में से स्कंदमाता की विशेष पूजा होती है। स्कंद कौन है? शिव पार्वती के संतान हैं भगवान कार्तिकेय जिन्हे स्कंद भी कहा जाता है। तो स्कंद की माता अर्थात स्कन्दमाता का पूजन होता है। देवी मोक्षदायनी स्कंदमाता से लोग धन, यश, मोक्ष के साथ साथ संतान प्राप्ति के लिए भी प्रार्थना करते हैं।
मनुस्मृति में कहा गया है कि
"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।"
(इसका अर्थ है कि जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं।)
मेरी भी माँ से एक प्रार्थना है कि माँ ऐसे लोगों को धन, यश, मोक्ष, संतान से पहले सद्बुद्धि दें कि आदि शक्ति माता को पूजने के पहले ऐसे लोग माता के साक्षात स्वरूपों को पहचाने और हर उस स्त्री, उस नारी, उस बालिका, उस कन्या का पूजन भले ही न करें लेकिन उनका सम्मान तो अवश्य करें, उनको धूप दीप, फूल हार की तो लालसा नही हैं, उन्हें सिर्फ श्रद्धा भाव से देखें अपनी कुदृष्टि से चोट न पहुँचाएं। अगर किसी भी कारण से इस नारी जाति को चोट पहुँचती है तो ये भी निश्चित है कि इसका सीधा दर्द आदि शक्ति माँ को पहुंचेगा।
नारी होना सिर्फ एक लिंग पहचान हो सकती है लेकिन स्त्री एक शक्ति है, इसका जितना पूजन और सम्मान होगा ये उतना फलेगी- फ़ूलेगी और ये भी अवश्य माने कि इसे अगर कुछेक लोग दबाते हैं तो ये शक्ति किसी और रूप में प्रकट होगी, जिसे संभालने के लिए फिर कोई महादेव नही मिलेगा।
इसीलिए, हे माँ जगदंबा! नारी के प्रति, शक्ति के प्रति ये श्रद्धा भाव केवल नवरात्र में ही नही अपितु नवरात्र के बाद भी बना रहे। आप सभी मानव जाति को सदमार्ग पर चलने की प्रेरणा दें, इस नवरात्र में सभी के घर हरियाली दें और सबका कल्याण करें।
जय माता दी।।
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Comments
Jai maat di
ReplyDeleteJai mata di
ReplyDeleteDurga Maa ki Jai
ReplyDeleteDurga maa ko jai
ReplyDeleteJai naari shakti
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