दिवाली: मन के दीप

दिवाली: मन के दीप

  दिवाली एक ऐसा उत्सव है जब घर ही क्या हर गली मोहल्ले का कोना कोना जगमगा रहा होता है। ऐसा लगता है कि पूरा शहर ही रोशनी में डूबा हुआ है। लड़ियों की जगमगाहट हो या दीपों की टिमटिमाहट हर एक जगह सुंदर दिखाई देती है और हो भी क्यों न! जब त्यौहार ही रोशनी का है तो अंधेरे का क्या काम।    
    असल में दिवाली की सुंदरता तो हमारे मन की खुशियों से है क्योंकि रोशनी की ये किरणें केवल बाहर ही नहीं अपितु मन के कोने कोने में पहुंच कर मन के अंधेरों को दूर कर रही होती है। तभी तो दिवाली के दीपक मन के दीप होते हैं जो त्यौहार के आने पर स्वयं ही जल उठते है। दिवाली का समय ही ऐसा होता है कि जहां हम केवल दिवाली की तैयारी के लिए उत्सुक रहते है। यह तो त्योहारों का एक गुच्छा है जिसका आरंभ धनतेरस पर्व से होकर भाई दूज तक चलता है। ऐसे में हर दिन एक नई उमंग के साथ दिवाली के दीप जलते हैं।
    ये दीपक नकारात्मकताओं को दूर कर हमें एक ऐसी राह दिखा रहे होते हैं जो सकारात्मकताओं से भरा हुआ होता है, जहां हम आशा और विश्वास की लौ जलाते हैं कि आने वाले दिन सुख और समृद्धि से भरे होंगे। दिवाली के इन दीपों की चमक पूरे वर्ष भर हमारे मन में दमकती रहती है। इसीलिए तो रोशनी के इस त्यौहार की प्रतिक्षा हर भारतीय पूरे वर्ष करता है और जब इसके आने का समय होता है तो इसकी तैयारी हर भारतीय पूरे उत्साह से करता है। इसी जोश और उत्साह के साथ कि आगे का समय भी दिवाली की चमक और जगमगाहट के साथ बना रहेगा, खुशियों से भरे मन के दीप वर्ष भर जलते रहेंगे और जब कभी कहीं अंधेरा होगा तो वहां भी मन के दीपों से रोशनी करते रहेंगे। 
   ढ़ेर सारी शुभकामनाओं सहित आप सभी को धनतेरस एवं दिवाली की हार्दिक बधाई!!


एक -Naari 

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