Mother's Day Special...
Short Story (लघु कथा)
चूरमा...
क्या बात है यशोदा मौसी,, कल सुबह तो पापड़ सुखा रही थी और आज सुबह निम्बू का अचार भी बना कर तैयार कर दिया तुमने। अपनी झोली को भी कैरी से भर रखा है क्या?? लगता है अब तुम आम पन्ना की तैयारी कर रही हो?? (गीता ने अपने आंगन की दीवार से झाँकते हुए कहा)
यशोदा ने मुस्कुराते हुए गर्दन हिलाई ।
लेकिन मौसी आज तो मंगलवार है। आज तो घर से चूरमे की मीठी मीठी महक आनी चाहिए और तुम कैरी के व्यंजन बना रही हो। लगता है तुम भूल गई हो कि आज सत्संग का दिन है।
अरे नहीं-नहीं, सब याद है मुझे।
तो फिर!! अकेली जान के लिए इतना सारा अचार-पापड़। लगता है आज शाम के सत्संग में आपके हाथ का बना स्वादिष्ट चूरमा नहीं यही अचार और पापड़ मिलेगे।
धत्त पगली! "चूरमा नहीं,,,मेरे गोपाल का भोग!!" और सुन आज मै न जा पाउंगी सत्संग में।
क्या हुआ मौसी?? सब खैरियत तो है। इतने बरसों में आपने कभी भी मंगल का सत्संग नहीं छोड़ा और न ही चूरमे का भोग। सब ठीक तो है न??
सब खैरियत से है गीता रानी, आज तो मै और भी ठीक हो गई हूँ। (यशोदा तो जैसे आज नई ऊर्जा से भर गई थी, तुरंत उठकर गीता से बोली)
पता है तुझे आज गोपाल आ रहा है। मेरा बेटा गोपाल, वो भी बहु और मेरी नातिन के साथ।
अरे वाह, मौसी! आज तो फिर छप्पन भोग बनेंगे। तभी मै सोचूँ कि न आज कमर में दर्द है और न ही आपके घुटनों में। आज तो लगता है कि बुढ़िया मौसी जवान हो गई है। (गीता ने चुटकी लेते हुए कहा)
(आँखों में चमक और खुशी के साथ यशोदा झट से कहती है) अरे अब बुढ़िया हूँ या जवान। अपने बेटे-बहु को भूखा थोड़ी न रखूंगी और अपनी जस्सी भी तो पहली बार अपनी दादी के पास आ रही है। पता है तुझे, वो भी बिल्कुल मेरे गोपाल पर गई है, इसीलिए तो खाने की तैयारी कर रही हूँ। अभी तो बहुत कुछ बनाना है मुझे, कटहल की सब्जी, आलू का रस्सा, पुदीने की चटनी, करारी भिंडी, मीठे चावल, बूंदी रायता और भी बहुत कुछ, खासकर कि 'गोपाल का भोग'।
यानी की 'चूरमा'। गीता ने झट से कहा।
'चूरमा नहीं रे,,गोपाल का भोग'। और हां तेरे लिए भी बचा कर रखूंगी।
चलो अच्छा है मौसी, गोपाल को बारह वर्षों के बाद ही सही आपकी याद तो आई। (गीता ने गहरी सांस लेते हुए धीरे से कहा।)
यशोदा तुनक कर बोली... ऐसा नही है मेरा गोपाल। उसकी भी अपनी गृहस्थी है लेकिन विदेश में रहकर भी फोन पर बराबर मेरी सुध लेता रहता है। घर का सब राशन पानी, दवा, बिल सब वही तो करता है और हर महीने पैसे भेजता है वो अलग। अब तू जो भी कहे लेकिन मेरा गोपाल मेरे लिए सारी व्यवस्था करता है। मैं तो बस यही चाहती हूँ कि वो खुश रहे और क्या चाहिए मुझ बुढ़िया को।
अरे मौसी, आप बहुत भोली हो। मैं भी यही चाहती हूँ कि आप भी यूँ ही खुश रहो। चलो आज तो आप अपने रसोई और परिवार में व्यस्त रहोगी फिर भी जब मेरी जरूरत पड़े तो आवाज लगा देना।
दिन से इंतज़ार करते हुए अब रात होने वाली थी। सुबह जो यशोदा उगते सूरज जैसी चमक और ऊर्जा से भरी थी सांझ ढलते ही थकान और मायूसी के साथ ढल चुकी थी।
रात के दस बज चुके थे, यशोदा की आँखे अभी भी गोपाल की प्रतीक्षा में टिकी हुई थी। जैसे ही एक आहट हुई यशोदा दौड़ती हुई आरती की थाल लिए दरवाजे की ओर बढ़ी। दरवाजे पर गोपाल खड़ा था, गोपाल को देखकर यशोदा की आँखों से आँसू झरझर बहने लगे।
गोपाल बोल पड़ा...
कैसी हो मां।
(यशोदा अपने आँसू पोंछते हुए बोली) बहुत अच्छी हूँ बेटा।
अब तुम रोती रहोगी या मुझे गले भी लगाओगी।
मेरे लाल गले भी लगाऊँगी और आरती भी उतारूंगी।
यशोदा ने अपने बेटे को गले लगाकर खूब स्नेह और प्यार किया और अगले ही पल वह उत्सुकता के साथ गोपाल से पूछती है।
बेटा, मेरी बहु और जस्सी कहाँ है?? तेरे साथ साथ अपनी बहु और नातिन की नज़र भी तो उतारनी है मुझे।
अरे मां, तुम्हे बताना तो भूल ही गया कि आज तुम्हारी बहु और जस्सी नहीं आ पाएंगे।
क्यों, क्या हो गया, सब कुशल तो है?? ( यशोदा ने घबराते हुए पूछा)
सब ठीक है माँ, वो दरअसल यहाँ पर गर्मी बहुत होती है न, और घर पर एयर कंडीशनर भी नहीं है। ऊपर से उन्हें गर्मी की आदत भी नहीं है इसलिए वो होटल में ही रुके हैं।
वैसे माँ, मैने कितनी बार तुमसे कहा कि ए सी लगवा देता हूँ लेकिन तुम मानी ही नहीं। फिर मुझे भी लगा जिसमें आप खुश है वही ठीक है।
यशोदा को मायूस देख कर गोपाल कुछ देर रुककर कहता..
आप दिल छोटा न करो, वो दोनों कल आपसे मिलने जरूर आएंगे।
बहु और नातिन को न देखकर यशोदा का मुंह उतर गया। उसने दुखी मन से पूछा
"और खाना...."
'खाना' तो मैं होटल में ही खा चुका हूँ। वो मां, सैंडी और जस्सी के लिए अभी यहाँ का खानपान नया है न इसलिए।
यशोदा की आँखे भर जाती है और वो भारी मन से आरती की थाल अपने लड्डू गोपाल के सामने रख देती है। तभी गोपाल कहता है।
मां, चूरमा की खुशबू आ रही है। अपने हाथ का बना चूरमा नहीं खिलाओगी क्या? वैसे, पेट तो भरा है लेकिन लगता है, कई वर्षों से भूखा ही हूँ इसलिए कटोरी भर के देना मेरा प्रिय चूरमा और हां, अपनी नातिन को देना मत भूलना, पता है न, वो तुम्हारे बेटे पर गई है।
ये सुनते ही यशोदा की आँखे खिल उठती हैं और एक संतुष्टि भरी मुस्कान के साथ अपने लड्डू गोपाल को देखकर कहती है,,,
"चूरमा नहीं,,,मेरे गोपाल का भोग।"
Happy Mother's Day..
एक -Naari
Very heart touching artical 🧡👌
ReplyDeleteNice
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