Teej Where Love Meets Devotion and Grace

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    तीज: सुहागनों का उत्सव (प्रेम, तप, समर्पण, श्रृंगार)       छाया: मोनिका ठाकुर, देहरादून   प्रकृति स्वयं माता पार्वती का एक रूप है इसलिए सावन माह में जहाँ हम भगवान् शिव की आराधना करते हैं  वहीं शिवा की पूजा का भी विशेष महत्व है। सावन माह में आने वाली तीज माता पार्वती को ही समर्पित पूजा है। इस दिन सुहागन महिलाएं  माता पार्वती से अपने सुहाग की लम्बी आयु और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत करती हैं।  पार्वती का तप:  पौराणिक कथानुसार माता पार्वती आदिदेव शिव से विवाह करना चाहती थी लेकिन शिव उस समय विरक्त थे। नारद मुनि ने बचपन से ही माता के अंदर शिव नाम के बीज बौ दिये थे इसलिए माता शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप करने का निर्णय लिया।     शिव महापुराण के द्वितीय पार्वतीखंड के बाईसवें अध्याय के अनुसार माता पार्वती ने अपने राजसी वास्त्रों को त्यागकर मौंजी और मृगछाला पहनी और गंगोत्री के समीप श्रृंगी नामक तीर्थ पर शंकर जी का स्मरण कर तप करने के लिए चली। तपस्या के पहले वर्ष माता ने केवल फल का आहा...

साल में एक बार (short story)

साल में एक बार (once in a year)

मनीष कहाँ है?? वो चल रहा है न हमारे साथ?? . .. अशोक ने सरिता से उत्सुकता से पूछा

अपने कमरे में और आप भी न! बार बार पूछने से उसका जवाब थोड़ी न बदलेगा। आपको पता तो है कि वो कहाँ मानता है ये सब। उसको पूजा पाठ, श्राद्ध सब दूसरी दुनिया की बातें लगती हैं। 

 हमारे साथ गया चलता तो गया जी का महत्व पता चलता कि वहाँ जाकर पिंडदान करने से 7 पीढी़ और 108 कुलों का उद्धार हो जाता है, मोक्ष मिलता है। वहाँ जाकर शायद मनीष के विचार भी बदल जाते और मुझे अपने बुढापे की तसल्ली भी हो जाती। 

रहने दीजिये, आप मनु के साथ कोई जिद्द न करें...

जिद्द नहीं है,,अधिकार है हमारा। (अशोक ने सरिता की बात काटते हुए कहा... ) 

 कोई बच्चा थोड़ी न है वो जो जबरदस्ती उठा के ले चले अपने साथ। शादी होने जा रही है उसकी। बहु लेकर आ रहा है हमारा मनु। 

(अशोक सिर झटकते हुए ) पता है, फ़िरंगन बहु। 

 सुनो जी, मैं मानती हूँ कि बहु अमरीका में पली बढ़ी हैं लेकिन जेनी को फ़िरंगन बहु कहना शोभा नही देता। आप चाहे जो भी बोलो लेकिन उसके दादा तो भारतीय ही हैं और सबसे अच्छी बात कि वो हिंदी बोलना भी सीख गई है इसलिए जेनी हमारे घर की बहु है, कोई फ़िरंगन नहीं। सरिता ने तुनक कर कहा...

  ठीक है भागवान! मान गया तुम्हारी बात लेकिन मनीष हमारी बात कब मानेगा?? अपनी संस्कृति से क्या सीखेगा??अपने पूर्वजों का पिंड दान करना कितना जरूरी है ये कब समझेगा?? 
  सरिता हमारी आने वाली पीढी को भी समझना चाहिए कि साल में एक बार आने वाले पितृपक्ष में अपने पितरों का श्राद्ध करना कितना महत्वपूर्ण है। 

समझ जायेगा...आप व्यर्थ में परेशान होते हैं?? 

अशोक गहरी सांस लेते हुए कहता है..घर से बाहर क्या गया घर की संस्कृति परंपरा सब घर के बाहर ही छोड़ आया। 
कैसे समझाऊँ कि मेरे पिता, दादा, परदादा सभी ने अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध कर्म किया अब मैं कर रहा हूँ लेकिन मेरे बाद...?? 
  मनीष ये सब बातें सुनकर अपने कमरे से तुरंत बाहर निकलता है ,,, पापा आप हमेशा गलत ही क्यों सोचते हैं। अभी से आप अपने बाद का सोच रहे हैं!! दादा परदादा ने जो किया वो उनके समय के हिसाब से ठीक रहा होगा लेकिन आप आज व्यवहारिक तरीके से सोचिये। मैंने गलत नहीं कहा कि गया जाकर पिंडा देने से बढ़िया है जीवित रहते ही बड़ों की सेवा कर लो।

  तो बेटा, करो न सेवा। बड़ों की बात मानना, अपने घर परिवार से मिली परंपराओं को आगे ले जाना, उनका मान सम्मान करना, ये भी तो सेवा है। (अशोक ने झुंझलाते हुए मनीष से कहा) 
 जीवित रहते हुए हमारी भावनाओं का तिरस्कार करके क्या सेवा होती है??अगर हम चाहते हैं कि हम श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों का पिंड दान करें और तर्पण दे तो क्या हम गलत है?? और अगर हम अपने बच्चों से ये आशा करते हैं कि हमारे बच्चे हमारे जाने के बाद अपने धर्म का पालन करें तो क्या ये गलत है?? 
 पापा, मैं तो बस यही मानता हूँ कि जो करना है सामने रहकर कर लो बाद में तर्पण, पूजा, पिंड, पंडित जिमाने से कोई फ़ायदा नहीं है। हमारे भारत में इतना अंधविश्वास भरा है कि गाय की रोटी, कुत्ते की रोटी, कौवे की रोटी और जाने क्या क्या हम अपने दादा परदादा के नाम से निकालते हैं। मरने के बाद क्या होगा क्या नहीं किसने देखा?? मरने के बाद औरों को खीर पूरी खिलाने से पीढ़ी का भला नहीं होगा। 

 सही कह रहे हो बेटा कि मरने के बाद किसने देखा लेकिन ये हमारी भावनाओं से जुड़ा है और प्रकृति के नियम से। यही सोचकर ये कर्म कर लो कि इससे किसी भूखे का पेट भर जायेगा नहीं तो पशु पक्षियों का ही भला हो जाएगा(अशोक ने मनीष को समझाते हुए कहा ) 

 पापा, इन सबमें समय बर्बाद करने से अच्छा है कि आगे बढ़ने पर ध्यान दिया जाए। मेरे लिए ये सब केवल एक रूढ़िवादी सोच, पुराने ख्याल, अंधविश्वास और आडंबर वाले कर्म कांड हैं। और इन्हीं सबके कारण आज हमारा देश विकसित नहीं हुआ। बाहर देश की सोच बहुत आगे की है इसलिए वो आगे बढ़ रहे हैं और हम पिछड़ी सोच के साथ रहकर पिछड़ ही गए। इसीलिए मुझे यहाँ रहना पसंद नहीं है।

 तभी सरिता के फोन की घंटी बजती है...
आप दोनों शांत हो जाइए,,बहु का वीडियो काल आ रहा है। 
जेनी: नमस्ते आंटी

सरिता: खुश रहो जेनी कैसी हो??

जेनी: बहुत अच्छी हूँ आंटी। मनीष बता रहा था कि अगले हफ्ते आप किसी जरूरी काम से गया जा रहे हैं। 

सरिता: हाँ बेटा बहुत जरूरी काम है। 

जेनी: मुझे पता है आंटी। मैंने जबसे अपने ग्रैंड पा (दादा जी) से गया के बारे में पूछा है तभी से वो बैचैन हैं, कहते हैं कि उन्हें बहुत पुराना लोन चुकाना है। 

सरिता: जेनी बेटा उसे लोन नहीं पितृ ऋण कहते हैं। 

जेनी: ओह सॉरी। आंटी, मैंने श्राद्ध के बारे में भी पढ़ा है। जैसे आप साल में एक बार श्राद्ध करते हो और अपने पूर्वजों को याद करते हो वैसे ही यहाँ हम लोग भी हर साल 'डे आफ द डेड' मनाते हैं। ये भी साल का एक जरूरी काम ही है जहाँ हम भी अपने पूर्वजों को याद करते हैं। उनके लिए पसंदीदा खाना पीना बनाते हैं और पूरी रात उनसे जुड़ी यादों का जश्न मानते हैं। बस मनाने का तरीका अलग होता है। 

सरिता: तुम सही कहती तो जेनी बेटा। 

जेनी: येस आंटी,,मम्मी पापा भी यही मानते है कि हमारे एनसेस्टर (पूर्वज) की ब्लेसिंग (आशीर्वाद) से ही हम आगे बढ़ते हैं इसलिए साल में एकबार तो उनको याद करना ही चाहिए और उनका भाग निकालना चाहिए। 
 इसीलिए आंटी अगले हफ्ते हम सभी गया आ रहे हैं, ग्रैंड पा को लेकर। 

मनीष निशब्द था और अशोक के चेहरे पर संतुष्टि की मुस्कान। 

एक -Naari


  

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