शिव के प्रिय नंदी
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सावन माह में शिव और शिव से जुड़े सभी नाम आनंददायी हैं। शिव को भजने या पढ़ने से कल्पवृक्ष के फल के समान हितकारी है, ऐसा शिव पुराण में कथित है।
जहाँ शिव है वहाँ उनके प्रिय भी हैं क्योंकि शिव अपने प्रिय को कभी अकेला नहीं छोड़ते। शिव के भक्त और शिव के प्रिय शिवमयी होकर सीधे भगवान शिव के ह्रदय में स्थान पाते हैं। ऐसे ही शिव के परम प्रिय गण नंदी भी हैं जो हमेशा शिव के साथ रहते हैं। बिना शिव के नंदी नहीं मिलेंगे
आपने भी तो हर शिवालय में नंदी महाराज को देखा होगा जो उतने ही पूजनीय हैं जितने की शिव। उन्हीं नंदीश्वर प्रभु की कथा शिव पुराण (शतरुद्र संहिता) से...
नंदी कैसे बने शिव के प्रिय गण...
नंदी से नंदीश्वर बनने की कथा...
एक समय ब्रहमचारि मुनि शिलाद पुत्र की कामना हेतु भगवान शिव का ध्यान करने लगे और अपने कठिन तप से शिवलोक को प्राप्त हुए। तब देवराज इंद्र उनके तप से प्रसन्न होकर उन्हें वर मांगने के लिए कहा। तब मुनि शिलाद ने एक अयोनिज (जो गर्भ से पैदा न हो) और मृत्युहीन बालक का वर माँगा जिसे देने में इंद्र भी समर्थ न थे। इंद्र ने मुनि को समझाया कि केवल भगवान शिव ही तुम्हारे इस व्रत को पूर्ण कर सकते हैं इसलिए तुम उन्हीं की शरण में जाओ और उनके अंश की कामना करो । तब मुनि शिलाद ने एक हज़ार वर्ष तक कठोर तप किया। इस तप से उनके शरीर पर दीमक का वास हो गया। यहाँ तक कि माँस, रक्त भी न रहा। इस कठोर तप से प्रसन्न भगवान शिव उमा सहित प्रकट हुए और मुनि को सर्वज्ञ और सर्व शास्त्रों से पारंगत पुत्र का आशीर्वाद दिया। इस पर मुनि ने अयोनिज और मृत्यु रहित पुत्र वर माँगा तो भागवान शिव ने एवमस्तु (ऐसा ही होगा) कहकर शिलाद को वर दिया।
प्रसन्न मुनि शिलाद ने अन्य ऋषियों को यह बात बताई और आंगन की खुदाई आरंभ की।
वहाँ से तीन नेत्र, चतुर्भुज और जटा मुकुटधारी दिव्य बालक की प्राप्ति हुई जिसकी सभी देवो ने स्तुति की। बालक को देख मुनि को बहुत आंनद हुआ इसलिए मुनि ने उस बालक का नाम नंदी (आनंद देने वाला) रखा। फिर नंदी जब मुनि की कुटिया में आये तो एक साधारण बालक का रूप ले लिया।
मुनि ने बालक को छोटी आयु में ही वेद और शास्त्र सभी का ज्ञान कराया। जब नंदी सात वर्ष के हुए तो मित्रा और वरुण नाम के दो महात्मा शिलाद मुनि के यहाँ पधारे। वहाँ वे दोनों नंदी के ज्ञान को देखकर बहुत आश्चर्यचकित हुए। उन्होंने बालक को बड़ा विद्वान माना और उसकी प्रशंसा की किंतु इसके साथ ही उन्होंने मुनि को बताया कि नंदी का जीवन अब केवल एक वर्ष ही शेष रहा है, क्योंकि नंदी अल्पायु है। जिससे मुनि को बहुत दुख पहुंचा और वे रोने लगे। उनके रुदन से नंदी को बहुत ठेस पहुंची। नंदी ने अपने पिता शिलाद मुनि को समझाते हुए कहा कि आप व्यर्थ शोक करते हैं। भगवान शिव सभी की रक्षा करते हैं।
नंदी ने भगवान शिव की पूजा आरंभ की और कठिन तप से मृत्यु को हराने का प्रण लिया।
नंदी के कठिन तप से शिव उमा सहित प्रकट हुए और नंदी को अक्षय और अपनी समीपता का वरदान दिया।
भगवन शिव नंदी से कहते हैं कि "तुम्हें मृत्यु का भय कैसा!! मित्रा और वरुण महात्माओं को मैंने ही भेजा था। तुम तो स्वयं मेरे ही समान हो। तुम अजर, अमर, अविनाशी, अक्षय, दुखरहित और मेरे प्रिय हो। इसलिए तुम्हारी मृत्यु नहीं है।"
ऐसे वचनों के साथ शिव ने अपनी जटा से एक माला नंदी के गले में डाल दी और निर्मल जल से 'नंदी हो' कहकर छिड़का। जहाँ पांच नदियाँ (जटोरका, त्रिस्तोता, वृृषभध्वंनि, स्वर्णोदका, जंबुका) बह चली और उस स्थान का नाम पंचनद पड़ा।
माता पार्वती ने नंदी को अपना पुत्र माना और भगवान शिव ने अपने प्रिय नंदी को गणों का अधिपति बनाया और प्रधान गण के रूप में नंदीश्वर नियुक्त किया। सभी देवी देवताओं ने नंदीश्वर का अभिषेक कर स्तुति की।
ब्रह्मा जी की आज्ञा से परम मनोहारी दिव्य देवी सुयशा से नंदीश्वर का विवाह हुआ और सभी लोकों में भगवान शिव के साथ उनके प्रिय नंदीश्वर को भी पूजा जाने लगा।
अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए नंदीश्वर का ध्यान किया जाता है क्योंकि शिव के समीप यही प्रधान गण हैं जो शिवभक्तों का ध्यान रखते हैं। इसलिए जब भी आप परेशान हो और आपकी बात कोई न सुने तो नंदी से जाकर कहिये,,, सब भला हो जायेगा।
जय नंदीश्वर महाराज!!
हर हर महादेव!!
एक- Naari
(केवल नासिक स्थित कपालेश्वर स्थित मन्दिर में शिव के साथ नंदी नहीं हैं।)
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Comments
Bahut achcha prasang...jai nandi maharaj,
ReplyDeleteOm Nam shivay🙏🌺...Jai nandeshwar Maharaj ki 🙏🌺 नदीश्वर maharaj sabhi manokamna purn kare🙏🌺
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