शिव कृपा: चोर से कुबेर तक
हिंदू धर्म में पवित्र माह सावन हमें भगवान शिव की ओर ले जाता है। यह माह शिव और शिवा (पार्वती, प्रकृति) की आराधना के लिए समर्पित है इसलिए सावन में शिव का पाठ करना विशेष फलदायी होता है क्योंकि यह हमें अध्यात्मिक और मानसिक रूप से शक्ति प्रदान करता है।
शिव का पाठ ही नहीं अपितु शिव का पूजन, स्मरण, मनन या श्रवण किसी भी भाँति से शिव नाम का लिया जाना सभी के लिए हितकारी होता है। शिव नाम से दुर्बुद्धि भी सद्बुद्धि में बदल जाती है।
शिव पुराण के एक प्रसंग में वर्णित गुणनिधि की कथा भी तो यही बताती है कि बिना भक्ति भाव के भी यदि ऐसा कोई कार्य किया जाता है जो शिव को प्रिय हो तो वह व्यक्ति भी शिव का प्रिय हो जाता है और उस कार्य का दुगना फल भगवान शिव उसे देते हैं।
शिव की कृपा: गुणनिधि की कथा:
काम्पिल्य नगर में यज्ञदत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसका एक पुत्र था जिसका नाम गुणनिधि था। यज्ञ दत्त वेद वेदांगों का ज्ञानी था लेकिन उसके पुत्र का मन वेद पाठ से विमुख था जिसके चलते वो बुरी संगति में पड़ गया। अज्ञानवश
गुणनिधि जुआरी और व्याभिचारी हो गया। फिर धीरे धीरे चोरी भी करने लगा। एकलौते पुत्र के प्रेम के चलते गुणनिधि की माता दक्षिणा उसे बहुत बार पिता के क्रोध से बचाती थी।
एक बार यज्ञ दत्त स्नान को गए तो अपनी रत्न जडित अंगूठी को अपनी पत्नी को संभालने के लिए दे दी जिसे उसने कमरे में रख दिया। इस अंगूठी को गुणनिधि ने घर से चुरा लिया जिसे उसकी माता ने देख लिया था। माता के लाख समझाने पर भी गुणनिधि की बुद्धि पर कोई प्रभाव नहीं हुआ और उसने यज्ञ दत्त की अँगूठी को जुए में हारकर बेच दी। यहाँ जब यज्ञ दत्त अपनी अंगूठी के बारे में अपनी पत्नी से पूछने लगे तो उसने अंगूठी को भूलवश कहीं खोने का बहाना बना दिया।
एक दिन संयोगवश यज्ञदत्त ने अपनी अंगूठी को किसी दूसरे के हाथ में देखा तो पता चला कि उसके पुत्र ने जुये में हारकर यह अंगूठी उसे बेची है और बताया कि घर का अन्य सामान भी गुणनिधि समय समय पर बेचता आया है।
यह सुनकर यज्ञ दत्त को अपने पुत्र गुणनिधि और अपनी स्त्री दोनों पर बहुत क्रोध आया। यज्ञ दत्त ने अपनी स्त्री को बहुत दुत्कारा कि तुम ब्राह्मण की स्त्री होकर भी झूठ बोलती हो और अपने पुत्र मोह के चलते उसे कुसंगति में भी साथ देती हो। तुम पर धिक्कार है।
इसी के साथ यज्ञदत्त का क्रोध बढ़ गया और उसने अपने पुत्र को घर से निकाल दिया। पिता के क्रोध के भय से वह जंगल की ओर दौड़ गया। दो दिन भूख प्यास से बेहाल रहने पर उसे नैवैद्य की खुशबू आने लगी। जो उसे शिवालय तक खींच लाई। यहाँ वो मूर्ति के पीछे छुप गया और भगवान को भोग लगाने वाले पकवान को खाने की प्रतिक्षा करने लगा।
वहाँ लोग भगवान शिव की षोडशोपचार पूजन करके नैवेद्य अर्पित करके शिव स्तुति कर रहे थे। शिव स्तुति करते करते रात में शिव भक्त सोने लगे तो दीपक की लौ भी बुझने लगी। गुणनिधि ने तुरंत अपने कुर्ते की बाँह फाड़कर दीपक की बाती बना ली ताकि अंधेरा न हो। जब सब लोग सो गए तो गुणनिधि ने नैवेद्य को चुराकर भागने लगा तभी उसका पैर एक भक्त को लग गया और वह जाग गया। सभी ने उसे चोर समझ कर पकड़ लिया और डंडो से तेज प्रहार कर दिये। प्रहार इतने तेज थे कि उसके प्राण जा रहे थे।
अब यमदूत उसे अपने साथ ले जा रहे थे तभी भगवान शिव ने अपने गणों को वहाँ भेज दिया और यमगणों को बताया कि यह अब शिव मय हो गया है क्योंकि इसने निराहारी रहकर भगवान शिव की स्तुति में सम्मिलित हुआ है, दीप प्रज्जवलित किया है इसलिए यह निष्पापी है और अब यह शिव प्रिय बन चुका है। शिवगणो की ऐसी वाणी सुनकर यम दूत चले गए और गुण निधि अब जीवनदान पाकर परम शिवभक्त बन गया। उसने शिव गुणगान किया और मंदिरों में दीप जलाये।
अनजाने मे की शिव भक्ति से भी उसका जीवन धन्य हो गया। यही गुणनिधि शिव कृपा से कालांतर में कलिंग देश के राजा अरिंदम के पुत्र दम हुए जो परम शिव भक्त थे और उसके बाद ब्रह्मा जी के मानस पुत्र पुलस्त्य से विश्रवा और विश्रवा के पुत्र कुबेर हुए। जिन्होंने दस हज़ार वर्षों तक अपनी कठिन तपस्या से शिव का सामीप्य प्राप्त किया। भगवान शिव के आशीर्वाद से वही गुणनिधि जो किसी काल में चोर था भगवान शिव की कृपा से यक्ष, किन्नरों के अधिदाता और धन के देव, कुबेर बन गए।
ओम् नमः शिवाय!!
एक -Naari
Very informative Reena ji🙏💐
ReplyDeleteBahut sunder jankari is bare me kuch pata nahi tha tumhari post pad ker pata chala 👌
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