भीषण गर्मी के बाद बरसात का आना बहुत बड़ी राहत होती है। वो भी तब जब समान्यत: तापमान 40डिग्री से ऊपर चल रहा हो। ऐसे में सूखी धरती पर बारिश की बूंदें पड़ना मन को पूरी हरियाली से भर देता है।
इस गर्मी में एक समय पर लग रहा था कि हम गढ़वाल के चोली (चातक पक्षी, पपीहा) बन गए हैं जो आसमान की ओर बेचैनी से देखता रहता है और यही बोलता रहता है कि ‘सरग दिदा पाणी दे पाणी दे’ (आसमान भाई पानी दे , पानी दे)।
कहा जाता है कि चातक पक्षी के लिए स्वाति नक्षत्र की बूँद ही काफी होती है जो धरती पर बिना गिरे ही उसके गले को तृप्त करती है। उसके लिए केवल वही बूंद आवश्यक है फिर किसी साफ पानी की झील भी उसके कोई मायने नहीं रहती वैसे ही हमारे लिए भी बरसात का मौसम वर्ष भर के लिए हमें संतुष्ट करता है लेकिन समय से पहले और अधिक वर्षा हमारे लिए व्यर्थ है और साथ ही घातक भी।
झुलसा देने वाली गर्मी के बाद गीली धरती, नीला-काला आसमान, नहाये हुए पशु पक्षी, झूमते पेड़ और उसके साथ ही उड़ती हुई भीनी खुशनुमा हवाएं भला किसके मन को हर्षित नहीं करती!! ये हर प्राणी के जीवन के लिए राहत होती हैं। लेकिन आज के संदर्भ में राहत कब आफत बन जाए इसका भरोसा भी नहीं है क्योंकि जलवायु परिवर्तन (climate change) का असर हर जगह देखा जा रहा है। अब लगता है कि जितनी गर्मी उतनी बरसात और उतनी ही ठिठुरन भी, कभी जंगलों में आग तो कहीं भयंकर सूखा है तो कभी भयानक बाढ़ भी। सब कुछ अपनी दशा दिशा से अलग हो रहा है।
अत्यधिक गर्मी से झूझते झूझते अब बारिश होती है तो डर भी लगता है कि ये राहत के साथ किसी आफत को तो नहीं लायेगी?? अब जैसे देहरादून ही है। जहाँ के मौसम के लिए माना जाता है कि दो चार दिन तक अगर ऐसी गर्मी पड़ती है तो अगले दिन बारिश होना तय था लेकिन अब यहाँ भी अन्य शहरों की भाँति मौसम बदल रहा है। दिन तो गर्म थे ही साथ ही रात में भी गर्म हवाओं ने बेचैन किया। कारण तो बहुत सारे होंगे लेकिन जो सामान्यत: दिखाई देता है उसे आप भी मानते होंगे।
जैसे कि देहरादून के जंगल और बाग बगीचे तो बड़े बड़े प्लॉट्स में बदल गए फिर कंकरीट के भवनों में और उसमें रहने वाले असंवेदनशील लोगों से। साथ ही जो सड़क किनारे घने पेड़ भी थे वो चौङी सड़कों के लिए स्वाहा कर दिये क्योंकि यहाँ सरकार, सलाहकार या जनप्रतिनिधियों को लगा कि यहाँ तो ट्रैफिक कम है या तो फिर ट्रैफिक जाम है इसलिए सोचा कि मुख्य सड़कें चौङी कर दो ताकि सैलानियों की गाडियाँ और भी अधिक आयें और उउनकी रफ्तार भी खूब अच्छी हो, भले ही इसके लिए उन हरे भरे पेड़ों को काटना पड़े या फूंकना पड़े! अब इस हरियाली को काटकर बहुतों की जेब हरी तो हुई होगी लेकिन प्रकृति माँ को घाटा तो हुआ है। (पता नहीं क्यों लोग सुंदर हरियाली को काटकर दून घाटी को दून घाटा बनाने पर तुले हैं जहाँ प्राकृतिक संसाधनों का घाटा हुआ, प्राकृतिक सुंदरता का घाटा हुआ, सुहावने मौसम का घाटा हुआ, सांस्कृतिक सभ्यता का घाटा हुआ, राजनीतिक स्तर का घाटा हुआ, संवेदनशीलता का घाटा हुआ...!!)
जिन सड़कों पर यही पेड़ छाँव और ठंडी हवाएं देते थे वहीं गर्मियों में बिना पेड़ के ये सड़कें गरम तारकोल की भभके और गाड़ियों का काला धुँआ दे रहे हैं। (लगता है धरती पर पेड़ नहीं मकान उग रहें हैं और पशु पक्षी की जगह गाडियों का जन्म हो रहा है। )
लेकिन प्रकृति माँ के साथ छेड़छाड़ जलवायु परिवर्तन के रूप में केवल एक चेतावनी है। इसका स्वरूप आगे कितना विनाशकारी होगा इसका अंदाजा आप आजकल की भीषण गर्मी और भीषण वर्षा से लगा सकते हैं।
दुख होता है जब उन हरे भरे पेड़ों की जगह सूखे काले ठूँठ दिखाई देते हैं साथ ही एक डर भी लगता है कि जब अभी ही मौसम में इतना बदलाव है तो आगे प्रकृति माँ का क्या नया रूप सामने होगा?? अभी भी समय है थोड़ा सोचने, समझने और संवेदनशील बनने का और दून घाटी से दून घाटा कम करने का।
क्योंकि दून घाटी के देहरादून शहर की एक खास बात है कि आज भी थोड़ी सी बारिश में ही यहाँ का मौसम सुहावना हो जाता है और घाटी के साथ लगी पहाड़ियां अद्भुत सौंदर्य से भर जाती हैं। लेकिन कब ये पहाडियाँ समतल कंक्रीट में समा जाएं और इन पहाड़ियों का अद्भुत सौंदर्य भयानक किस्सों में बदल जाएं, उस समय का पता नहीं चलेगा इसलिए दून घाटा होने से पहले संभाल कर रखिये अपनी दून घाटी की हरियाली को।
SAVE TREES🌲🌳🌴
SAVE Environment
एक - Naari
Very nice article.
ReplyDelete#SaveGreenerySaveDoon
Very true. There is no remedy if greed. It leads to self devastation in the end.
ReplyDeleteSave Trees in Dehradun 🌳
ReplyDelete"Protect Our Green Legacy – Save Trees in Dehradun!"
Dehradun's verdant landscapes are not just beautiful; they are essential for our well-being and the environment. Our trees purify the air, provide shade, and support diverse wildlife. However, rapid urbanization is posing a serious threat to this green heritage. It's time to take collective action to preserve our natural surroundings.